राकेश दुबे@प्रतिदिन। देश नई इबारत लिखने को तैयार है | राज्य और केंद्र में अपने को मजबूत मानने वाले दलों के लिए तो यह अवसर सुखद कम दुखद ज्यादा दिखाई दे रहे है | तीसरे मोर्चे का उदय कहने को अभी नहीं हुआ है, परन्तु “पूत के लक्षण” से जुडी कहावत की भांति यह जुड़ाव उस प्रकाश में निर्मल नहीं दिखाई देता है, जो सरकारी आईने केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो से उत्सर्जित है |
इस प्रकाश को भिन्न-भिन्न कसौटियों से लेकर देश का सर्वोच्च न्यायालय तक एक विशेष रंग में रंगा हुआ साबित कर चुके है | प्रश्न देश और उसके सामने खड़ी चुनौतियों का है और चिंता देश के भविष्य की है |
यह चिंता यूँ ही नहीं है | इसके पीछे दो ठोस कारण है, पहला- वंशवादी मोह और दूसरा- समग्र चिन्तन का अभाव | तीसरे मोर्चे के पैरोकारों में सबसे आगे दिख रहे मुलायम सिंह की तो सारी राजनीति अपने परिवार के ही इर्दगिर्द है | नवीन पटनायक का आधार बीजू पटनायक का कृतित्व है | जयललिता और मायावती के परिवारवाद की श्रंखला तो दोस्तों तक को लाभान्वित करने तक फैली हुई है | फिर ये कैसे से भ्रष्टाचार से लड़ेंगे | समग्र चिन्तन इनके लिए कांग्रेस और भाजपा से दूरी के अतिरिक्त और कुछ नहीं है | विश्वव्यापी समस्याओं और उससे प्रभावित देश की समस्याओं की जगह इनके चिन्तन परिदृश्य से कहीं झलकता तक नहीं है |
जनता सत्ता की बारहखड़ी बदलने को तैयार है और यही कहीं से भारत का अभ्युदय होगा | राजनीतिक दलों ने यदि खुद को नहीं बदला तो २०१४ बहुत कुछ बदल देगा देश में छोटे-छोटे समीकरण उभरेंगे और देश की राजनीति हमेशा “बैसाखीमय” कहलायेगी |
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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rakeshdubeyrsa@gmail.com
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