चुनाव आयोग पुलिस विभाग को समझता क्या है ?

भोपाल/ राजगढ़। निष्‍पक्ष चुनाव कराना चुनाव आयोग की जवाबदारी है ना कि पुलिस की। पुलिस विभाग आख़िर कितना दबाव झेले। सिर्फ़ इसलिए कि हम क़ानून एवं व्यवस्था बनाए रखना चाहते हैं,  इसके लिए हम क्‍या अपना स्‍वाभिमान गिरवी रख कर नौकरी करें।

"मेरी लडाई मेरे एसपी, आईजी या विभाग से नहीं है। मेरी शिकायत यह है कि दूसरे अधिकारी पुलिस विभाग को समझते क्‍या है, हम लोग 20 से 22 घंटे नौकरी करते हैं उसके बाद भी दबाव झेलते हैं।"यह पोस्ट मंगलवार को अमृता ने अपनी फेसबुक वाल पर शेयर की है।

राजगढ़ जिले के मलावर थाने की प्रभारी अमृता सोलंकी ने। उनके साथ चुनावी ड्यूटी के वक्त चुनाव पर्यवेक्षक ने अभद्रता की थी। इस अपमान से आहत अमृता ने 26 नवंबर को अपना इस्तीफा पुलिस विभाग को भेज दिया था। अब वे फेसबुक पर मुखर हैं और उनकी पोस्ट पर कई सरकारी कर्मचारी और पुलिसकर्मी अपनी आपबीती पेश कर रहे हैं।
 
अपने पद से इस्तीफा देने के बाद महिला पुलिस अधिकारी अमृता सोलंकी इन दिनों मीडिया की सुर्खियों में हैं। एक चैनल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने खुलासा किया है कि जिस पर्यवेक्षक की गाड़ी उन्होंने रोकी थी, वह आधी रात को कहां से लौट रहे थे? इसकी जांच करने की बजाए प्रशासन ने मेरे खिलाफ ही एक्शन ले लिया। आला अधिकारियों ने अपनी नौकरी बचाने के लिए एक छोटे कर्मचारी की बलि चढ़ा दी। अपने साथ हुए इस अन्याय से नाराज अमृता ने कहा कि मैं महिला बाद में हूं एक पुलिस अधिकारी पहले हूं।

उधर एडिशनल एसपी राकेश सिंह ने माना कि गाड़ी रोकने से नाराज चुनाव पर्यवेक्षक गया प्रसाद के दबाव के चलते यह फैसला लिया गया। पर्यवेक्षक ने रात को ही अमृता की शिकायत कर दी और तत्काल एक्शन लेने का दबाव बनाया। घबराए एसपी ने रात को ही आईजी से फोन पर बात कर इस मामले में मार्गदर्शन करने को कहा। आईजी ने तत्काल एसपी से कहकर अमृता को लाइन अटैच करने का आदेश दे दिया।इस संबंध में अमृता ने सोमवार दोपहर 3 बजे महिला आयोग में शिकायत दर्ज कराई है।


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