प्रतिदिन@राकेश दुबे। मध्यप्रदेश, राजस्थान,छतीसगढ़, दिल्ली और मिज़ोरम के चुनाव हो गये| नतीजे भी आ गये, कांग्रेस के लिए यह परिणाम संतोषजनक नहीं हैं और अगर यह भी कहे, इसके बाद कांग्रेस में भीतरी असंतोष और बढ़ा है तो भी गलत नहीं होगा|
कसक भजपा के मन में भी है और कांग्रेस के मन में भी है, “आप” पार्टी के जीतने और उसके बाद ‘न लेना न देना’ की नीति के कारण | कांग्रेस के कुछ नेता आप के सर्वव्यापी होने के खतरे को भी महसूस कर रहे है| लोकसभा चुनाव के पहले तीसरे मोर्चे की गूंज भी तेज़ हो रही है |
सबसे पहले मध्यप्रदेश | भारतीय जनता पार्टी के कुशल चुनाव प्रबंधन के आगे कांग्रेस का “राजा-महाराजा” फार्मूला फेल हो गया | भाजपा में कुछ दमदार मंत्री खेत रहे और उनकी दम पर प्यादे से फर्जी बने लोग अब अपने बचाव में अदालतों की शरण ले रहे हैं | इनमें से कुछ तो इसके बावजूद भी ‘सैयां भये कोतवाल अब डर काहे का” की धुन पर नाचते हुए मध्यप्रदेश पुलिस के उन अधिकारियों को आँखे दिखा रहे जो आचारसंहिता के दौरान कुछ मामलों की जाँच पूरी कर डालना चाहते थे | अब तक एस टी ऍफ़ की धुन नाच रहे लोग अब एस टी ऍफ़ को नचाने का शोर मचा रहे हैं |मुख्यमंत्री की शपथग्रहण का समारोह मध्य प्रदेश में १४ दिसम्बर को होगा, समारोह की तैयारियों से भाजपा के कुछ सादगी पसंद नेता नाखुश हैं |
मध्यप्रदेश कांग्रेस की हालत तो और दयनीय है | पहले तो शिकायत भी करते थे,अब तो उससे भी गये | सत्यव्रत चतुर्वेदी जहाँ दिग्विजय सिंह को षड्यंत्रकारी बता रहे हैं, वहीं दिग्विजय खेमा सुरेश पचौरी को नाकारा साबित करने में लगा है, तो कोई कांतिलाल भूरिया की कांति क्षीण होने का दावा कर रहे हैं | सीधे चुनाव में हारे कांग्रेस के तथाकथित बड़े नेताओं के लिए भी यह चुनाव आईना है और १० जनपथ के लिए सबक | जिन नेताओं की अपने गाँव में कोई पूछ नहीं है उनका दिल्ली दरबार में क्या काम है ?
देश के सामने लोकसभा के चुनाव आ रहे और देश का लोक इन राज्यों के चुनाव को भ्रम man रहा है | उसका मानना है की यह नतीजे चाहे मध्यप्रदेश, राजस्थान या छतीसगढ़ के हों यह किसी दल का समर्थन नहीं है |यह तो विकल्पहीनता और चुनाव प्रबन्धन का कमाल है |
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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rakeshdubeyrsa@gmail.com
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