भोपाल। पटरी पर लाश पड़ी थी और आसपास भीड़ भी जमा थी, फिर भी डबलडेकर ने ब्रेक नहीं लगाए और लाश के ऊपर से गुजर गई। घटना इन्दौर में रेलवे यार्ड के पास रविवार सुबह करीब 10 बजे की है।
घटना सुबह करीब दस बजे की है। श्यामाचरण शुक्ला नगर निवासी 30 वर्षीय धनराज पिता नंदकिशोर नायक यार्ड के पास से पटरी पार कर रहा था, तभी वह इंदौर-उदयपुर ट्रेन की चपेट में आ गया। ट्रेन के पहियों से उसके शरीर के टुकड़े हो गए। सूचना मिलने पर शासकीय रेलवे पुलिस के एएसआई जेपी शुक्ला, सिपाही दिलीप चौधरी व आरपीएफ का एक सिपाही मौके पर तो पहुंचे लेकिन लाश के टुकड़े उठा लें, ऎसी हिम्मत नहीं हुई। दिल दहला देने वाले दृश्य को देखने के लिए लोगों की भीड़ तो जरूर लगी लेकिन लाश के टुकड़ों को उठाने के लिए कोई आगे नहीं आया।
दूसरी ट्रेन भी लाश से गुजरी
लाश करीब 40 मिनट तक पटरी पर ही पड़ी रही। तभी उसी पटरी से निकलने के लिए इंदौर से भोपाल जाने वाली डबल डेकर ट्रेन आ गई। स्पीड पहले थोड़ी कम हुई, फिर ये ट्रेन भी लाश के टुकड़ों के ऊपर से गुजर गई। पहले से ही कटी लाश के और टुकड़े हो गए।
पुलिस का झूठ
इस बारे में एएसआई शुक्ला का कहना है कि उन्होंने बच्चे से लाश नहीं उठवाई। सब झूठ है। वहां काम चल रहा है। बच्चा घटनास्थल पर पहुंच ही नहीं सकता। हमने और चौधरी ने ही लाश उठाई है। जबकि "पत्रिका" में छपी एक खबर में साफ दिख रहा है कि बच्चा लाश के टुकड़े उठा रहा है। ऎसे में पुलिस का झूठ साफ पकड़ में आता है।
रेलवे की लापरवाही
इस मामले में रेलवे प्रबंधन की लापरवाही भी सामने आई। जब एक ट्रेन से कटने के बाद युवक की मौत हो गई और लाश पटरी पर पड़ी थी, ऎसे में उस ट्रैक पर दूसरी ट्रेन क्यों गुजार दी? इससे पहले से कटी लाश कई और टुकड़ों में बंट गई। सवाल यह भी है, मौके पर पहुंचे सिपाहियों ने क्या स्टेशन प्रबंधक को इसकी सूचना नहीं दी या सूचना के बावजूद प्रबंधक ने लापरवाही बरती।
इसी तरह पहले भी बच्चे से उठवाया था कटा सिर
दो साल पहले भी इसी तरह 12 वर्षीय बच्चे फिरोज से रेलवे पुलिस ने कटा सिर उठवाया था। उसके बाद रेलवे पुलिस अफसर हरकत में आए थे और रेलवे टीआई सहित घटना के समय थाने में तैनात पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई भी की थी। तब डॉक्टर ने कहा था कि अक्सर कटी लाश देखकर बच्चों की मानसिक स्थिति खराब हो जाती है। फिरोज के साथ भी यही हुआ।
कतराते... आंखें मूंदते समेटे लाश के टुकड़े
पुलिस वालों का कलेजा काम नहीं आया तो उन्होंने 14 साल के संजय नाम के एक बच्चे को बुलाया। वह डरा... सहमा। उसने एतराज जताया, लेकिन जब एएसआई समेत तीनों ने आंखें दिखाई तो बच्चे ने आंखें मंूदकर कटे पैर उठाकर थैले में डाले। उसके हाथ खून से सन गए। एक सिपाही ने जरूर आखिरी वक्त पर लाश के बड़े हिस्से को उठाने में मदद की। जैसे ही लाश का आखिरी टुकड़ा बच्चे ने थैले में डाला, वह बिना कुछ बोले वहां से भाग गया।
इस मामले में डीएसपी को जांच करने के निर्देश दिए हैं। यदि पुलिसकर्मी दोषी पाए गए तो उन पर विभागीय कार्रवाई की जाएगी। -
आरसी बुर्रा, रेलवे एसपी