अब कलेक्टर के पास नहीं रहेंगे खनन लीज के अधिकार

भोपाल। रेत और गिट्टी जैसे माइनर मिनरल के खनन के लिए लीज की मंजूरी का अधिकार कलेक्टरों के हाथ से निकलने जा रहा है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा प्रदेश सरकार की याचिका खारिज होने के बाद तकरीबन साफ हो गया है कि छोटे से छोटे क्षेत्र में भी खनन के लिए पर्यावरण की स्वीकृति जरूरी होगी।

इतना ही नहीं, राज्य सरकार के प्रावधानों के तहत 0 से 5 हेक्टेयर तक के क्षेत्र में खनन की जो मंजूरी पहले जिला स्तर पर कलेक्टर की अध्यक्षता में बनी कमेटी करती थी, वे प्रकरण भी अब स्टेट इनवायरमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट अथॉरिटी (सिया) के पास भेजे जाएंगे।

उल्लेखनीय है कि एनजीटी में राज्य सरकार ने याचिका लगाई थी कि खनन लीज के दौरान पर्यावरण से जुड़े सारे बिंदु प्रदेश सरकार ने प्रावधान में शामिल कर रखे हैं। इसलिए मप्र को एनजीटी के उस आदेश से मुक्त रखा जाए, जिसमें कहा गया है कि 0 से 50 हेक्टेयर तक के क्षेत्र में खनन के लिए पर्यावरण स्वीकृति सिया से और इससे अधिक क्षेत्र में खनन के लिए स्वीकृति केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से लेना जरूरी होगा, लेकिन एनजीटी ने राज्य सरकार की यह याचिका गुरुवार को खारिज कर दी।

इधर, केंद्र सरकार ने भी 9 सितंबर को नोटिफिकेशन जारी कर साफ कर दिया कि किसी भी तरह के खनन के लिए पर्यावरण स्वीकृति जरूरी होगी। प्रदेश सरकार के खनिज विभाग ने इस संबंध में भी एक पत्र केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को लिखा है, लेकिन मंत्रालय ने अभी तक इसका जवाब नहीं दिया है।

यह था राज्य सरकार का प्रावधान
खनन लीज की मंजूरी जल्दी से जल्दी हो, इसलिए राज्य सरकार ने मार्च 2013 में अधिकारों का विकेंद्रीकरण कर दिया। जिला स्तर पर कमेटी बनाई गई और कलेक्टर को स्वीकृति के अधिकार दिए। इससे यह फायदा हुआ कि बालाघाट, मंदसौर या मुरैना जैसे दूर-दराज के जिलों के छोटे खननकर्ता जिलों तक ही सीमित रहे। उन्होंने भोपाल के चक्कर नहीं लगाना पड़ा। राज्य सरकार ने यह प्रावधान 27 फरवरी 2012 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के परिप्रेक्ष्य में किया था।

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