पेड़ के नीचे लगता है इस पार्टी का प्रदेश कार्यालय

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भोपाल| मध्य प्रदेश में तमाम राजनीतिक दलों का दफ्तर कॉरपोरेट रूप लेता जा रहा है, जहां आधुनिक सुविधाओं की भरमार होती है। लेकिन इस बीच एक ऐसी पार्टी भी है जिसका दफ्तर इन सुविधाओं से दूर पेड़ की छांव तले चल रहा है। यह है राज्य की गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोंगपा), जिसके तीन सदस्य साल 2003 में हुए चुनाव में विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहे थे।

राज्य में कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से लेकर अन्य छोट-मोटे दलों के दफ्तर भी भव्य इमारतों में चल रहे हैं। इन दलों ने सरकार की ओर से मिली जमीन पर अपनी इमारत बना ली है या उनकी पार्टी को दफ्तर चलाने के लिए सरकारी इमारत मिली हुई है। इसके विपरीत गोंगपा को कार्यालय के लिए यह सुविधा नहीं मिल पाई है।

राजधानी भोपाल के न्यू मार्केट इलाके में सरकारी आवासों की कॉलोनी में एक पेड़ के नीचे हर रोज का नजारा निराला होता है, यहां सुबह से ही लोगों की भीड़ जमा होने लगती है, जो देर शाम तक चलती है। यहां से गोंगपा का प्रदेश कार्यालय चलता है। यहां पार्टी के कार्यकर्ता अपने नेताओं के साथ बैठकर पार्टी चलाते हैं और विधानसभा चुनाव की रणनीति बनाते हैं।

गोंगपा ने वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में राज्य के महाकौशल से लेकर विंध्य क्षेत्र तक अपनी उपस्थिति का एहसास कराया था। इस चुनाव में गोंगपा के तीन विधायक जीतकर आए थे और आठ स्थानों पर इसने जीत के समीकरण बिगाड़े थे। पार्टी की ताकत बढ़ने के साथ दूसरे दलों ने उसमें फूट डाल दी और वर्ष 2008 के चुनाव में पार्टी टूट गई। इसी का नतीजा रहा कि इसका एक भी उम्मीदवार 2008 में जीत हासिल नहीं कर पाया।

गोंगपा के उपाध्यक्ष गुलजार सिंह मरकाम का कहते हैं कि पहले उनके दल का दफ्तर भी हुआ करता था, लेकिन सरकार ने वर्ष 2008 के बाद दफ्तर छीन लिया। उनके पास इतना पैसा नहीं है कि वे निजी भवन में अपना दफ्तर चला सकें। मरकाम कहते हैं, "दूसरे दलों को वैध-अवैध तरीके से मदद मिलती है, लेकिन हमारे साथ ऐसा नहीं है। लिहाजा हमें दफ्तर पेड़ के नीचे बैठ कर चलाना पड़ रहा है।"

गोंगपा ने इस बार जनता दल (युनाइटेड) के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। दोनों दलों में सीटों का बंटवारा भी हो चुका है। मरकाम को उम्मीद है कि आगामी चुनाव में चौंकाने वाले नतीजे सामने आएंगे और महाकौशल, विंध्य व निमाड़ में कांग्रेस व भाजपा के बाद उनका गठबंधन तीसरी ताकत के तौर पर उभरेगा। गोंगपा पूरी तरह जनजातीय बाहुल्य इलाकों में सक्रिय है और उनकी समस्याओं को लेकर लड़ती रही है। यही कारण है कि इस दल का जनजातीय इलाकों में प्रभाव है।
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