राकेश दुबे@प्रतिदिन। आज मध्यप्रदेश के बहाने से पूरे देश की बात| राजनीति के गहन अन्धकार या यूँ कहे पटरी से उतरती राजनीति को दिशा दिखाने की फिर से एक पहल “लोक उम्मीदवार” बिजावर से शुरू हुई है| मेरी पूर्ण आस्था इस चिर परिचित प्रयोग और सदिच्छा इसके परिणाम में हैं,डर प्रयोग की असफलता का भी नहीं है| परिणाम का और उसके बाद की परिस्थिति का है|
ऐसा प्रयोग भोपाल में कर्मचारी नेता स्व. मोहनलाल अष्ठाना की मृत्यु के परिणाम स्वरूप जनता उम्मीदवार के रूप में हुआ था और उसके परिणाम स्वरूप भारतीय जनता पार्टी को सर्वाधिक बार जीतने वाले बाबूलाल गौर मिले पर भारतीय जनता पार्टी और बाबूलाल गौर की रूचि इस विषय को आगे बढ़ाने में नहीं रही और प्रयोग निजी लाभ का उपकरण बन कर समाप्त हो गया|
बिजावर में युवकों का एक समूह लोकतंत्र को पार्टियों के चंगुल से निकलने के लिए संघर्षरत है| मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड का एक चुनाव क्षेत्र है बिजावर| इस समूह में देश के विभिन्न क्षेत्र से आये वे युवा है, जिनकी कोई पार्टी नहीं है | स्व. जयप्रकाश नारायण उनके आदर्श है तो महात्मा गाँधी की “हिन्द स्वराज्य” उनका धर्म ग्रन्थ|
वर्तमान लोकतंत्र अर्थात दलीय लोकतंत्र की दुर्गन्ध तो देश में सब महसूस कर रहे है| दल के भीतर घुटन महसूस कर या इससे निजात पाने के लिए पिछले दो दशकों से बहुत से प्रयोग हुए और अभी हो भी रहे हैं| जैसे के एन गोविन्दाचार्य, जैसे पी राजगोपाल,जैसे आंध्र में डॉ जयप्रकाश, पार्टी के लोभ लालच से दूर लोकतंत्र के लिए संघर्ष कर रहे हैं| इन्ही की अगली पौध ये युवा हैं| “अगली पंक्ति हमेशा खाद बनती है|” इस वाक्य को भूलकर चुनाव में उतरे दलों के लिए बिजावर प्रकाश दीप हो सकता है, प्रत्याशी जीत के बाद किसी राजनीतिक दल का दत्तक न बने इसकी सतर्कता भी जरूरी है|
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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rakeshdubeyrsa@gmail.com
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