अशोकनगर और इछावर: मध्यप्रदेश के दो शहर जहां सीएम कभी नहीं जाते

इछावर। कुछ दिन पहले आपने ट्रेंड देखा था- अशोकनगर आने वाला मुख्यमंत्री छह महीने से ज्यादा कुर्सी पर नहीं रह पाता। सीहोर जिले का इछावर भी अशोकनगर का ही भाई है। यहां आने वाले मुख्यमंत्री की कुर्सी भी एक साल के भीतर चली जाती है। इस मिथक के कारण ही शिवराज सिंह जब से मुख्यमंत्री बने, इछावर नहीं आए।

इछावर के इस मिथक को तोड़ने का प्रयास तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने 15 नवंबर, 2003 को किया था। वे इछावर में आयोजित सहकारी सम्मेलन में शामिल हुए थे। उन्होंने अपने भाषण में कहा था- मैं मुख्यमंत्री के रूप में इछावर के इस मिथक को तोड़ने आया हूं। इसके बाद हुए चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हुई और मिथक बरकरार रहा।

ऐन वक्त रद्द हुए शिवराज के दौरे: मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान का इछावर आगमन का कार्यक्रम कागजों पर तो कई बार बना, लेकिन अंतिम समय में यह बदल गया। असल कारण जो भी रहे हों, लेकिन जनता के बीच तो यही चर्चा होती है कि वे इस अभिशाप के कारण ही यहां आने से बचते रहे हैं। जनआशीर्वाद यात्रा और पानी की टंकी का भूमि पूजन आदि ऐसे कार्यक्रम थे, जिनमें उनका आना प्रस्तावित था लेकिन वे नहीं आए।

इन मुख्यमंत्रियों को गंवानी पड़ी कुर्सी

12 जनवरी 1962 को तत्कालीन मुख्यमंत्री

डॉ. कैलाश नाथ काटजू विधानसभा चुनाव के एक कार्यक्रम में भाग लेने इछावर आए। इसके बाद 11 मार्च 1962 को हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। मुख्यमंत्री होने के बाद भी वे जावरा विधानसभा सीट से चुनाव हार गए, उन्हें डॉ. लक्ष्मीनारायण पांडे ने पराजित किया था।

1 मार्च 1967 को पं. द्वारका प्रसाद मिश्र यहां आए। सात मार्च को नए मंत्रिमंडल के गठन से उपजे असंतोष के चलते कांग्रेस में विभाजन हुआ और मिश्र को मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा।

12 मार्च 1977 को कैलाश जोशी एक कार्यक्रम में भाग लेने यहां आए, लेकिन 29 जुलाई को उन्हें पद से हटना पड़ा।

6 फरवरी 1979 को वीरेंद्र कुमार सकलेचा तालाब का लोकार्पण करने आए। उन्हें 19 जनवरी 1980 को पार्टी के अंदरूनी कारणों की वजह से त्यागपत्र देना पड़ा।

15 नवंबर 2003 को दिग्विजय सिंह ने यहां आयोजित सहकारी सम्मेलन में शिरकत की, लेकिन अगले महीने हुए चुनाव में कांग्रेस जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा और उनकी कुर्सी जाती रही।

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