भोपाल। अंतत: चुनाव आयोग ने डिजिटल मीडिया का लोहा मान ही लिया, हालांकि भारत में डिजिटल मीडिया का चेहरा फेसबुक है अत: आयोग ने उसे सोशल मीडिया कहकर संबोधित किया है, परंतु यह जरूर मान लिया है कि भारत की 543 लोकसभा सीटों में से 162 सीटों के नतीजों को प्रभावित करने का दम डिजिटल मीडिया में है।
इसी के साथ चुनाव आयोग ने शुक्रवार दिनांक 25 अक्टूबर 2013 से सोशल मीडिया को भी आचार संहिता के दायरे में ले लिया है और इसके लिए गाइडलाइन जारी कर दीं हैं। इससे पूर्व हम यहां बताना चाहेंगे कि सरकारी संस्थान सोशल मीडिया को मजाक और चुटकुलों का अड्डा मानकर चल रही थी। निर्मल बाबा की पोल खोलने से लेकर अन्ना हजार के आंदोलन को सफल बनाने तक तमाम मामलों में सोशल मीडिया ने भारत की पारंपरिक मीडिया को पछाड़ा परंतु फिर भी उसकी ताकत पर भरोसा नहीं किया जा रहा था। आज चुनाव आयोग ने गाइडलाइन जारी करके यह प्रमाणित कर दिया कि डिजिटल मीडिया एक ताकतवर माध्यम है और लोगों को प्रभावित करने में सफल हो रहा है। इस स्वीकृति और प्रमाणिकरण के हम हम बेव जर्नलिस्ट चुनाव आयोग का शुक्रिया अदा करते हैं।
अब पढ़िए सोशल मीडिया के बारे में जारी की गईं गाइडलाइंस
चुनाव आयोग ने कहा है कि चुनाव में पारदर्शिता और बराबरी के मुकाबले को बनाए रखने के लिए सोशल मीडिया पर नियंत्रण की जरूरत है। आयोग ने सोशल मीडिया को पांच वर्गों में बांटा है -
1- साझेदारी वाला प्रोजेक्ट मसलन विकीपीडिया
2- ब्लॉग और माइक्रो ब्लॉग्स मसलन ट्विटर
3- कंटेट कम्यूनिटीज मसलन यू ट्यूब
4- सोशल नेटवर्किंग साइट्स मसलन फेसबुक
5- वर्जुअल गेम वर्ल्ड मसलन ऐप्स
देनी होगी सोशल मीडिया की जानकारी
आयोग की नई गाइडलाइंस के अनुसार सभी कैंडिडेट को नामांकन करते वक्त फॉर्म 26 के तहत अपना टेलिफोन नंबर, ई-मेल अकाउंट के अलावा सोशल मीडिया एकांउट के बारे में भी जानकारी देनी होगी। साथ ही सोशल मीडिया पर किया जाने वाला प्रचार चुनावी खर्च में शामिल होगा। टीवी और अखबारों में जिस तरह राजनीतिक दलों के विज्ञापन पर नजर रखी जाती है वही सिस्टम सोशल मीडिया पर लागू होगी। चुनाव आयोग ने कहा कि सभी उम्मीदवार अपने चुनावी खर्च में सोशल मीडिया पर किये गये खर्च भी शामिल और इसकी जानकारी अपने खाते में दे। इस खर्च में पेज बनाने में, इसके लिए वेब डिवेलपर, सोशल अभियान चलाने के लिए रखे गये लोगों के वेतन और दूसरे मदों पर किया गया खर्च शामिल होगा। साथ ही जिस तरह भाषणों और सार्वजनिक जगहों पर दिये गये नेताओं के बयान पर आयोग की नजर होती है और यह आदर्श आचार चुनाव संहिता के दायरे में आती है उसी तरह सोशल मीडिया पर भी उनके बयानों पर नजर रहेगी।
मोदी रन पर भी आयोग की नजर
सूत्रों के अनुसार नई गाइडलाइंस आने के बाद हाल में पॉपुलर हुए तमाम ऑनलाइन गेम पर भी नजर रहेगी। नरेन्द्र मोदी पर बना वीडियो गेम मोदी रन बहुत लोकप्रिय हो रहा है और लाखों डाउनलोड भी हुए हैं। इस गेम में नरेन्द्र मोदी तमाम बाधाओं को पार करते हुए जीतते हैं। वहीं आप पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल पर बना गेम भी बहुत लोकप्रिय हो रहा है। वहीं अगले कुछ दिनों में कई और गेम के लांच होने की योजना थी। अब आयोग इन गेम को फंड करने वाले स्रोत की जांच कर सकता है।
फर्जीवाड़ा नहीं चलेगा
आयोग ने यह भी कहा है कि इस मामले में फर्जीवाड़ा नहीं चलेगा। दरअसल ऐसी शिकायतें भी आई हैं कि कई नेता और दल प्राक्सी नामों से सोशल मीडिया पर अपना अभियान चलाते हैं। इनकी सत्यता जांचने के लिए आयोग एक्सपर्ट की मदद लेगी। आयोग इसके लिए आईटी मंत्रालय को सहयोग देने के लिए अलग से पत्र लिख रही हैं।
सोशल मीडिया का दम
दरअसल हाल के दिनों में सोशल मीडिया के भारतीय राजनीति में बढ़ते प्रभाव की कई रिपोर्ट सामने आई है। एक रिसर्च के अनुसार अगले लोकसभा चुनाव में 162 सीटों के नतीजे सोशल मीडिया प्रभावित करेंगे। हाल ही में गूगल की आई एक रिपोर्ट में भी सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव का जिक्र किया गया है। तमाम राजनीतिक दल इससे खुद को जोड़ने में लगे हैं और राज्य से लेकर जिला स्तर तक सोशल मीडिया तक जोड़ा है।