भोपाल। मालवा की संस्कृति से लोगों को जोडऩे के लिए मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में सांझा फूली कार्यक्रम बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। मालवा की इस अनोखी परंपरा के तहत कुंवारी कन्याएं पूरे 16 दिन संजा देवी की पूजा-अर्चना करती है।
मालवी लोक परंपरा में भित्तीय चित्र-चित्रण को संजा कहा जाता है। मालवा क्षेत्र में संजा का तात्पर्य लोक देवी से भी है। इस देवी की कई लोक कथाएं प्रचलित है। मालवांचल के संजा पर्व के दौरान 16 दिनों तक भित्तीय चित्रण संजा से जुड़े लोकगीत भी गाए जाते हैं।
कुंवारी कन्याएं ही मनाती है यह पर्व: मान्यतानुसार संजा देवी की पूजा-अर्चना के बहाने कुंवारी लड़कियां अपने पितरों को भी याद करती हैं। रोजाना वे गोबर से भित्तीय पर लीपकर विभिन्न आकृतियां बनाती है, इन आकृतियों को वे फूलों की पंखुडिय़ों से सजाती है। इस तरह एक साधारण सी कलाकृति को रंग-बिरंगी बनाया जाता है।
ये शामिल है इस परंपरा में: मालवा के लोग सैकड़ों वर्षों से इस परंपरा को मनाते आ रहे हैं। इसमें मुख्यरुप से स्वावलंबन, सक्रियता, चुस्ती, लीपने की पद्धति, आकृतियां बनाना और उसे सजाना, गीत गाना, पूजा पद्धति आदि शामिल है। घर की कुंवारी लड़कियां इन परंपराओं बचपन से ही सीखती हैं।
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| यह हैं वे खास चित्र |
यह हैं वे खास चित्र: यहां बनाए गए भित्तीय चित्र बंदनवार शुभ सूचक का प्रतीक है। जो घर के बाहर चौखट पर बनाए जाते हैं। मान्यतानुसार बंदनवार लगाने के घरों में खुशहाली एवं समृद्धि का वास हमेशा रहता है।
यह है इस परंपरा में खास: इस परंपरा के तहत लड़कियां रोजाना अपने घर की दीवार पर गोबर से शुभ प्रतीक बनाती हैं। पूजा-अर्चना के बाद अगले दिन उसी कलाकृति को प्रवाहमान जल से मिटा दिया जाता है और उसके स्थान पर दूसरी कलाकृति बनाई जाती है। इस तरह पूरे 16 दिन तक कुंवारी लड़कियां अलग-अलग शुभ प्रतीक बनाती हैं।
पितरों से मांगती है सफल जीवन का आशीर्वाद: संजा देवी की पूजा अर्चना पितर पक्ष के दौरान ही की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान हमारे पूर्वज किसी न किसी रूप में हमारे आस-पास होते हैं। ऐसे में कुंवारी लड़कियां पितरों की पूजा कर उनसे समृद्ध जीवन और खुशहाली का आशीर्वाद मांगती है। संजा देवी की इस खास पूजा से पितर प्रसन्न होकर मनोकामना पूरी करते हैं।
