भोपाल। खंडवा की जेल से फरार हुए खूंखार सिमी आतंकवादी के मामले में संदेह पुख्ता होता जा रहा है कि वो अचानक मौका पाकर फरार नहीं हुआ बल्कि जेल विभाग की मदद से बाहर निकला है।
खंडवा जेल से भागे सिमी आतंकियों को जिस बैरक नं. 2 में रखा गया था, उसकी निगरानी विकलांग और बीमार प्रहरी के जिम्मे थी। वॉकर और बैसाखी के सहारे चलने वाले प्रहरी को गर्दन घुमाने तक में दर्द होता है। ऐसी घोर लापरवाह व्यवस्था में जो होने का खतरा होता है वही मंगलवार तड़के हुआ।
छह आतंकी बड़ी आसानी से जेल से भाग गए, लेकिन प्रहरी को न आहट सुनाई दी न कुछ दिखाई दिया। यह भी तब हुआ जब प्रहरी वॉच टॉवर के नीचे था। ऐसा पॉइंट जहां से जेल में बंद कैदियों की सारी हलचल देखी जा सकती है।
जेल के निलंबित उपअधीक्षक सुनील शर्मा ने महज इतना सा सरकारी बयान दिया कि 'अपंग प्रहरी की तैनाती पहले के जेल अफसरों के समय से होती रही है।' इसके बाद उन्होंने सरकार को कोसते हुए कहा कि कि स्टाफ की कमी है और व्यवस्था में खामियां। सुधार जरूरी है।
प्रहरी की जुबानी न आहट सुन पाया, न कुछ देख पाया
घटना वाली रात 12 से 4 बजे बजे तक जेल में मेरी डच्यूटी थी। मैं यहां 30 साल से पदस्थ हूं। सब कैसे हो गया नहीं बता सकता क्योंकि आतंकी कब मेरे सामने से गुजर गए, मुझे पता ही नहीं चला। न आहट सुन पाया न किसी को देख सका। सालभर पहले ही मेरा सी 5 (गर्दन की पाचंवीं हड्डी) का ऑपरेशन हुआ है, गर्दन भी ठीक से घुमा नहीं सकता। पूरे शरीर की नसें दर्द करती हैं। हमारी और भी मजबूरियां हैं। हाथ में डंडा तक नहीं रहता। रायफल अंदर ले नहीं जा सकते। क्षमता से ज्यादा कैदी रखे हुए हैं। भदौरिया गैंग के आरोपी भी बंद हैं। खूंखार आरोपियों को यहां नहीं रखा जाना चाहिए क्योंकि वैसी सुविधाएं नहीं हैं।
डीके तिवारी, प्रहरी
डॉक्टर ने बताया- बीमारी गंभीर सी-5 में तकलीफ के कारण मरीज को गर्दन हिलाने में दर्द होता है। शरीर भी सुन्न पड़ जाता है।
डॉ. प्रशांत मिश्रा
कुल मिलाकर पुलिस विभाग में जिन कर्मचारियों को आफिस में लिपकीय कार्य के लिए लगाया जाना चाहिए था उनकी ड्यूटी सिमी जैसे आतंकवादी संगठन के खूंखार नेताओं की निगरानी पर लगाया जाना महज एक इत्तफाक नहीं बल्कि सोची समझी साजिश है एवं जेल के उपअधीक्षक का इस गंभीर घटना पर एक सामान्य प्रतिक्रिया देना यह जता रहा है कि इस साजिश के तार राजधानी तक जुड़े हुए हैं।
