राकेश दुबे प्रतिदिन। और इन पंक्तियों के छपने तक नरेन्द्र मोदी भारतीय जनता पार्टी के ही नहीं एन डी ए के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित हो जायेंगे | भारतीय जनता पार्टी के पितामहद्वय में से एक अटलबिहारी वाजपेयी तो पहले से ही नेपथ्य में थे, दूसरे लाल कृष्ण आडवानी आज संघ के मोदी समर्थन के कारण नेपथ्य में जाने को मजबूर हो गये |
भारतीय जनता पार्टी यह प्रहसन आपसी जिद और मूल्यों के मतभेद के कारण लम्बा खिंचा और मोदी के विरोध में आडवाणी के साथ खड़े उनके सिपहसलार एक- एक करके धराशायी होते रहे और इसी बीच मोदी शिवसेना और अकाली दल का समर्थन पाने में कामयाब हो गये और यही से बाज़ी पलट गई |
राजनाथ सिंह, अरुण जेटली और नितिन गडकरी पहले ही संघ की भाषा और संकेत समझ गये थे और संघ के आदेश के कारण आडवाणी के मान मनौव्वल में उनके घर के फेरे लगाते रहे और जब वे नहीं पसीजे तो दूसरे विकल्प पर विचार हुआ और डॉ मरली मनोहर जोशी के सागर मध्यप्रदेश में मोदी के समर्थन बयान देना पड़ा | इस बयान के दो अर्थ थे डॉ जोशी की संघ के निर्णय के प्रति प्रतिबद्धता और मोदी विरोधी मध्यप्रदेश के नेताओं को स्पष्ट चेतावनी | गौर तलब है की मध्यप्रदेश से ही आडवाणी ने मोदी विरोधी राग छेड़ा था | इस राग में शिवराज ने पिछले सप्ताह तक जुगलबंदी की थी |
सुषमा स्वराज वैसे भी संघ के निर्णयों से बंधी नहीं है | आडवाणी में उनकी आस्था भी इस विषय को लेकर दोपहर तक ही टिक सकी | भविष्य, पार्टी अर्थात संघ के निर्णय के साथ उन्हें नजर आया और वे पार्टी के साथ हो गई | अनंत कुमार तो वैसे भी संघ के निर्णयों के खिलाफ नहीं जाते हैं और शत्रुघ्न सिन्हा का जादू भाजपा के सर से उतर गया है | अब प्रश्न आडवाणी और उनके सम्मान का था |
संघ ने मोदी के दिल्ली आने के पूर्व कह दिया था की “कोई भी ऐसी शब्दावली का प्रयोग न हो जिससे आडवाणी को ठेस पहुंचे,इसका विशेष ध्यान रखा जाये|” आडवाणी के नजदीक सुधीन्द्र कुलकर्णी कल भाजपा को मोदी बाँट रहे हैं कहकर गायब हो गये हैं | अब आडवाणी नितांत अकेले हैं | मोदी के सामने आडवाणी से बड़ी चुनौती चार विधानसभा चुनाव है | यही से उनकी यात्रा दिल्ली की ओर शुरू होगी या पुन:गुजरात | कुछ और निर्णय लेने के लिए नरेंद्र मोदी को कलेजा कठोर करना होगा |वैसे भी कोई चीज़ यूँ ही नहीं मिलती और यह तो देश की गद्दी का सवाल है |