राकेश दुबे@प्रतिदिन। देश के बड़े राजनैतिक दलों द्वारा हमेशा प्रजातंत्र की दुहाई तो दी जाती है, पर प्रजातांत्रिक पद्धति से यह कोसों दूर होते जा रहे हैं| उनका उद्देश्य ऐन-केन-प्रकारेण कुर्सी हथियाना ही रह गया है|
दोनों बड़े दलों के कुछ बड़े नेता पूरी ताकत से चुनाव के पूर्व प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित करने के लिया दबाव बना रहे है| यह कदम लोकतंत्र की राह से अलग जाकर कहाँ मिलेगा ? कहीं भी मिले पर पर प्रजातंत्र की राह से भटका हुआ है और रहेगा|
अब राज्यसभा में भारतीय जनता पार्टी के नेता और सर्वोच्च न्यायालय के वकील अरुण जेटली ने अपनी पार्टी के हित में ऐसी दलील दी है जो पूरी तरह से अलोकतांत्रिक है| संवैधानिक कितनी है, उनसे बेहतर व्याख्या कौन कर सकता है ? उनकी दलील जवाहरलाल नेहरु, इंदिरा गाँधी और अटलबिहारी वाजपेयी के चुनाव पर टिकी है|
वे चाहते हैं कि जल्दी से जल्दी नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया जाये| ऐसा ही पिछले आम चुनाव में भाजपा ने किया था और पूरी दिल्ली ही नहीं प्रदेशों की राजधानी तक अगले प्रधानमंत्री के “फीलगुड” पोस्टर लटक गये थे| कांग्रेस में भी कुछ नेता राहुल बाबा को प्रधानमंत्री मान बैठे है| यह कुछ भी हो सकता है, पर प्रजातंत्र तो बिलकुल नहीं|
लोकतंत्र का अर्थ सर्वोच्च पदों के चयन में एकदम साफ है, चुने हुए जन प्रतिनिधियों द्वारा सदन के नेता का चयन| यह परम्परा प्रधानमंत्री से लेकर सरपंच तक एक सी है| अगर वहाँ कुछ बदल कर नई परिपाटी डाली तो शायद आप चुनाव जीत जाये, परन्तु यह परम्परा स्थापित करने से प्रजातंत्र की हत्या का दोष भी आपके ही माथे पर होगा |
