राकेश दुबे प्रतिदिन। बहस जारी है| अब मुद्दा राहुल के तेवर हैं, 15 अगस्त को मोदी के तेवर थे| व्यक्ति और संस्था एक ही है| व्यक्ति मनमोहन सिंह और संस्था प्रधानमंत्री पद| आज राजनीति में आये प्रदूषण को दूर करने में कार्यरत अनेक लोगों में ये दो भी हैं|
दोनों के नाम की तरह काम करने के तरीके और औजार हथियार अलग-अलग है पर मकसद अभी तक एक मालूम होता है| मकसद वही है जो देश के सर्वोच्च न्यायलय के निर्णय और केन्द्रीय सूचना आयोग के उन फैसलों में छिपा है, जिन्हें बदलने के लिए नागनाथ और सांपनाथ मिलकर मर्सिया गा रहे हैं| इन फैसलों में अंतर्निहित ध्वनि देश की जनता की आम आवाज़ है|
आज देश का हर मतदाता/बुद्धिजीवी यह मान रहा है की दागियों को राजनीति से बेदखल करना चाहिए| इसके विपरीत सारे राजनीतिक दल अपने छोटे-बड़े दागियों के दाग धोने के लिए अध्यादेश के हथकंडे अपना रहे हैं | किसी की भी कमीज़ साफ नहीं है और न्यायलय द्वारा आये निर्णय के स्वच्छ नीर को, गटर के गंदे पानी से बदलने को ये उतारू हैं| भारत के राष्ट्रपति ने अपने अनुभव और ज्ञान के तहत सवाल पूछे तो राहुल ने अपनी उम्र, अनुभव और आदत के अनुरूप एक शब्द में सब कह दिया जो कहने में बड़े-बड़े डर रहे थ |
अब पता नहीं क्यों भाजपा के पेट में दर्द हो रहा है| आज उसे प्रधानमंत्री पद की गरिमा याद आ रही है| १५ अगस्त को नरेंद्र मोदी ने भी तो ऐसे ही प्रधानमंत्री को ललकारा था, तब कहाँ थे ? सच मायने में मन मोहन सिंह देश के सबसे असफल प्रधानमंत्री साबित हुए हैं| उन्हें यात्रा समाप्ति के साथ इस्तीफा भेज देना चाहिए | सवाल मोदी और राहुल द्वारा कही गई बातों का नहीं देश के हर नागरिक को हक है की वो पूछे कि “हे ! प्रधानमंत्री, देश की यह दुर्गति क्यों ?”