श्याम जाटव/नीमच। जिले में जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं भाजपा और कांग्रेस के चयन की प्रक्रिया लगातार विकट होती जा रही है और प्रक्रिया के अंतिम दौर में पहुंचने की खबरें आ रही है।
कांग्रेस ने अपने पूर्व निर्धारित मापदंड के अनुसार टिकट चयन प्रक्रिया को लगभग अंतिम रूप दे दिया है और स्क्रीनिंग कमेटी और कांग्रेस के क्षत्रपों के बीच में इस बारे में सहमति बनने के आसार बन गए हैं। मापदंडों के हिसाब से पैनल की सूची तैयार है जिसे 28 सितंबर को स्क्रीनिंग कमेटी के समक्ष रखा जाएगा।
भाजपा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा के नेतृत्व में ढाई वर्ष पूर्व से ही चुनाव की रणभेदी और चुनाव प्रबंधन एवं चुनाव के उम्मीदवार की चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी, लेकिन इसके बाद भी सबसे ज्यादा असमंजस इसी जिले में है।
ढाई साल से भाजपा में वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथसिंह से लेकर प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्रसिंह तोमर, मुख्यमंत्री चौहान, झा, मुरली मनोहर जोशी, अरविंद मेनन, कप्तानसिंह सोलंकी व रघुनंदन शर्मा जैसे लोग जिले में निरंतर दौरे करके भाजपा की साख बचाने के लिए एडी-चोटी का जोर लगा रहे हैं, लेकिन स्थानीय अकर्मण्य नेतृत्व के कारण उम्मीदवार चयन की ढाई वर्ष की प्रक्रिया के बाद भी आज भी प्रक्रिया प्रारंभिक स्तर पर ही नजर आती है।
मनासा में नहीं चला परिवारवाद
जानकारी के अनुसार 2008 के चुनाव में भाजपा ने जावद और नीमच विस सीट जीती थी। मनासा में भारतीय जन शक्ति के उम्मीदवार के कारण भाजपा तीसरे स्थान पर आकर अटक गई थी। मनासा वहीं जगह है जहां से वर्तमान मुख्यमंत्री श्री चौहान के राजनीतिक गुरू पटवा ने अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया था, लेकिन श्री पटवा के साथ भी दुर्भाग्य रहा कि 1977 से बाद से आज तक वे या उनके परिवार का कोई व्यक्ति वहां से चुनाव नहीं जीत सका।
जिले में हालत पतली
सूत्रों की माने तो 5 वर्षों में स्थानीय नेतृत्व की कमी, प्रशासनिक अक्षमता, कानून व्यवस्था की लचर स्थिति, स्थानीय भ्रष्टाचार, जमीन माफियाओं को संरक्षण देने वाले के कारण भाजपा की स्थिति डांवाडोल व आम लोगों में असहनीय हो गई है। जिससे प्रदेश स्तर से लेकर केंद्रीय स्तर के नेताओं में भाजपा की नर्सरी कहलाने वाले जिले में हालत पतली हो गई है। यह दुर्भाय रहा है कि इस जिले में दो या तीन परिवार ने अपने खुद के वर्चस्व को बनाए रखने के लिए नए नेतृत्व को उभरने नहीं दिया। फिर चाहे वह सखलेचा, चाहे पटवा या नीमच में शिवाजी रहे हो। इन्होंने केवल अपनी व्यक्तिगत राजनीति को चमकाया। युवाओं को या नई पीढ़ी को इस लायक नहीं बनाया कि वह चुनावी मैदान में उतर सके।
क्षेत्र मे सखलेचा का विरोध
उम्मीदवारों की बात करें तो केवल जावद सीट पर वर्तमान विधायक ओमप्रकाश सखलेचा का टिकट अंतिम रूप से तय माना जा रहा है और जिस तरह से सखलेचा तैयारी कर रहे हैं इससे स्थिति स्पष्ट है कि उनका विरोध स्थानीय स्तर पर लोग कर रहे है। 26 सितंबर को भोपाल में जावद क्षेत्र के करीब 100 पूर्व व वर्तमान भाजपा पदाधिकारियों ने लिखित में शीर्ष नेताओं से सखलेचा को टिकट नहीं देने की वकालत की।
निर्दलीय से खतरा
मनासा विस क्षेत्र की स्थिति जैसा की उपर बताया कि 2008 में भाजपा यहां पर तीसरे स्थान पर रही थी। यहां श्री पटवा व मारू परिवार के बीच जो मनमुटाव है वह जगजाहिर है और पटवा परिवार अपनी आत्म संतुष्टि के लिए पार्टी को ताक में रखकर मानमाने निर्णय करता रहा है। जिसके कारण भाजपा की यह स्थिति हुई है। वर्तमान में स्थिति स्पष्ट है कि वहां निर्दलीय रूप में मारू परिवार से कोई व्यक्ति चुनाव लड़ेगा। लोगों को कयास है कि इससे भाजपा को फिर खामियाजा भुगतना पड़ेगा। टिकट की दौड़ में प्रमुख रूप से पूर्व गृह मंत्री कैलाश चावला, भाजपा जिलाध्यक्ष मंगल पटवा और पूर्व विधायक स्व. राधेश्याम लढ़ा के पुत्र राजेश लढ़ा के नाम आ रहे हैं। अभी भी माना जा रहा है कि टिकट वितरण पूर्णत: श्री पटवा के निर्देश अनुसार ही दिया जाएगा। इसके अलावा चावला की उम्र, स्वास्थ्य और बाहरी होने के कारण जहां उनकी छवि में कमी आई है। राजेश लढ़ा माहेश्वरी समाज के होते हुए अपने पिता के नाम को कितना भुना सकते हैं यह भविष्य के गर्भ में है। यह निर्विवाद सत्य है कि माहेश्वरी समाज का मनासा विस क्षेत्र में राजनीतिक रूप से दोनों पार्टियों में पकड़ है।
23 साल से कांग्रेस का कब्जा
नीमच विस क्षेत्र में 2008 में चुने हुए वरिष्ठ नेता स्व. खुमानसिंह शिवाजी के निधन के बाद यहां स्थिति विचित्र हो गई है। विस में ग्रामीण एवं शहरी इलाके दोनों आते हैं और यहां पर चुनाव टिकट की लड़ाई शहरी विरूद्ध ग्रामीण की है। जहां ग्रामीण इलाकों में परम्परागत भाजपा वोट लेती आई है और जनपद से लेकर जिला पंचायत से लेकर मंडी कमेटी में अपना वजूद कायम कर रखा है। वहीं शहरी इलाकों में विगत 23 वर्षों से नपा पर कांग्रेस का कजा है। टिकट की दौड़ में प्रमुख रूप से पूर्व विधायक व पूर्व जिलाध्यक्ष दिलीपसिंह परिहार, नपा उपाध्यक्ष महेंद्र भटनागर, व्यापारी संघ अध्यक्ष राकेश भारद्वाज व रवींद्र मेहता कानाम चर्चा में है। वहीं ग्रामीण क्षेत्र के पवन पाटीदार और हेमलता धाकड़ का नाम है।
पार्टी की विडंबना
श्री परिहार के साथ विडम्बना रही कि 2003 का चुनाव साढ़े 24 हजार से जीतने के बाद भी पार्टी ने उन्हें इस लायक भी नहीं समझा था कि उन्हें दुबारा टिकट दिया जाए और बुजुर्ग नेता शिवाजी को टिकट दे दिया था। जो परिस्थितियां पिछले चुनाव में श्री परिहार के खिलाफ थी वे आज भी उनके खिलाफ है। श्री भटनागर विगत 9 साल से नपा के उपाध्यक्ष है। लेकिन उनके खाते में एक भी उपलधि ऐसी नहीं है जिसमें लगेे कि उन्होंने नीमच के लिए कुछ किया है। विपरित इसके उन पर समय-समय पर आरोप लगते रहे हैं कि यह भू माफिया से गठबंधन करके कांग्रेस की नपा में समन्वय करके जमीन हड़पने का काम ही करते हैं। ग्रामीण क्षेत्र से ईश्वरसिंह पहलवान जिला पंचायत व मंडी में इनकी पत्नी अध्यक्ष रही और 2008 में भाजश से उम्मीदवार भी थे, लेकिन जमीन घोटाले से लेकर कई अन्य कारणों से शहर व ग्रामीण में अलोकप्रिय है। राकेश भारद्वाज ने 10 वर्षो में मंडी व्यापारी संघ के अध्यक्ष के रूप में शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई। नीमच विधानसभा में जाति समीकरण देखते हुए ब्राह्म्ण मतदाताओं की तादाद अ'छी है। इसलिए भारद्वाज उनकी पहली पसंद हो सकती है।