भोपाल। गुजरात के कवार्ट्ज कारखानों में उचित सुरक्षा इंतजामों के कथित अभाव के चलते सिलिकोसिस से दम तोड़ने वाले मध्यप्रदेश के प्रवासी मजदूरों की तादाद में लगातार इजाफा हो रहा है लेकिन ऐसे 238 मृत मजदूरों के सगे-संबंधियों को गुजरात सरकार द्वारा आर्थिक मुआवजा देने की राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की सिफारिशें पिछले तीन साल से धूल खा रही हैं।
सूत्रों ने बताया कि मध्यप्रदेश के झाबुआ के मुख्य चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ) ने एनएचआरसी को सूचित किया है कि इस आदिवासी बहुल जिले में सिलिकोसिस के कारण 10 और प्रवासी मजदूरों की मौत हो गयी है। इसके बाद गुजरात सीमा पर स्थित जिले में सिलिकोसिस के कारण जान गंवाने वाले प्रवासी मजदूरों की संख्या बढ़कर 98 पर पहुंच गयी है।
सूत्रों ने बताया कि झाबुआ के साथ मध्यप्रदेश के अलीराजपुर और धार जिलों में भी प्रवासी मजदूरों की सिलिकोसिस से दर्दनाक मौतें हुई हैं। इनमें से ज्यादातर मजदूर आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखते थे।
एनएचआरसी ने वर्ष 2010 में गुजरात सरकार से सिफारिश की थी कि वह सिलिकोसिस के कारण मरे 238 प्रवासी मजदूरों के परिजन को तीन-तीन लाख रुपये का मुआवजा दे लेकिन गैर सरकारी संगठनों का आरोप है कि गुजरात सरकार ने लाइलाज बीमारी से इन मजदूरों की मौत पर ‘अमानवीय रुख’ बरकरार रखते हुए इस अहम सिफारिश को अब तक अमली जामा नहीं पहनाया हैै।
पश्चिमी मध्यप्रदेश में आदिवासियों के बीच काम कर रहे संगठनों में शामिल ‘सिलिकोसिस पीड़ित संघ’ के प्रमुख कार्यकर्ता अमूल्य निधि ने बताया, ‘‘एनएचआरसी की सिफारिश के मुताबिक गुजरात सरकार को सिलिकोसिस के शिकार होकर मरने वाले 238 प्रवासी मजदूरों के परिवारों को कुल सात करोड़ 14 लाख रुपये देने थे लेकिन पड़ोसी मध्यप्रदेश के इन पीड़ित परिवारों के प्रति गुजरात सरकार का अमानवीय रवैया पिछले तीन साल से कायम है. इन परिवारों को गुजरात से मुआवजे के रूप में अब तक एक रुपया तक नहीं मिला है.’’
उन्होंने आरोप लगाया कि विकास के चमकदार दावे करने वाली गुजरात सरकार सिलिकोसिस से मध्यप्रदेश के प्रवासी मजदूरों की मौत के गंभीर मामले में एनएचआरसी की सिफारिशों की लगातार अवहेलना कर रही है।
अमूल्य ने वर्ष 2012 में किये गये गैर सरकारी सर्वेक्षण के हवाले से बताया कि पिछले तीन दशक के दौरान मध्यप्रदेश के झाबुआ, अलीराजपुर और धार जिलों में सिलिकोसिस से पीड़ित मजदूरों की कुल संख्या बढ़कर 1,701 पर पहुंच चुकी है, जिनमें से 503 की मौत हो चुकी है. इनमें वे 238 प्रवासी मजदूर शामिल हैं, जिनके बारे में पहले ही आधिकारिक पुष्टि हो चुकी है कि उन्होंने इस लाइलाज बीमारी के चलते दम तोड़ा था।
उन्होंने बताया कि ये गरीब मजदूर गुजरात सीमा से सटे मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल जिलों से ताल्लुक रखते थे और पलायन करके पड़ोसी राज्य के कवार्ट्ज कारखानों में रोजगार के लिये पहुंचे थे.
वैसे एनएचआरसी ने वर्ष 2010 में यह अनुशंसा भी की थी कि मध्यप्रदेश सरकार राज्य के 304 सिलिकोसिस पीड़ित श्रमिकों के पुनर्वास की योजना तैयार करे.
बहरहाल, अमूल्य कहते हैं, ‘‘मध्यप्रदेश में सिलिकोसिस पीड़ित श्रमिकों की मदद के लिये कुछ कदम तो उठाये गये हैं. पर एनएचआरसी की सिफारिश को उचित और प्रभावी ढंग से अमल में नहीं लाया गया है.’’
मध्यप्रदेश में सिलिकोसिस से प्रवासी श्रमिकों की मौतों पर एनएचआरसी की सिफारिशें ‘खेडू़त मजदूर चेतना संघ’ से जुड़े जुवान सिंह की दायर शिकायत पर कार्यवाही के बाद सामने आयी थीं.
इस संगठन ने गुजरात के क्वार्ट्ज कारखानों में जरूरी इंतजामों की कमी से सिलिकोसिस के शिकार प्रवासी मजदूरों की मौत की ओर एनएचआरसी का ध्यान खींचा था.
‘खेडू़त मजदूर चेतना संघ’ ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि मध्यप्रदेश के मजदूर इसलिये सिलिकोसिस के शिकार हुए, क्योंकि गुजरात में कारखाने चलने के दौरान निकलने वाली सिलिका की धूल से उनके बचाव के लिये कोई इंतजाम नहीं किया गया था.