राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारत के रक्षा मंत्री द्वारा संसद में दिए गये वक्तव्य के बाद क्या यह सुनने की गुंजाईश बची है पाकिस्तान पडौसी है और राजनीतिक तरीके से चर्चा से कोई समाधान निकलेगा | आठ माह में १७ हमले और जघन्यतम हत्याओं के दोषी से किस तरह के संबंधों के निर्वाह ? सामान्य बुद्धि से परे बात है | कारण जो साफ दिखाई देता है, वह विदेश नीति के आवरण में छिपा है |
याद करें पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री राजा अशरफ परवेज़ का आतिथ्य | पाकिस्तान से रिश्तों में सतर्कता बरतना चाहिए । पिछले अनुभव खराब रहे हैं। १९४७ से अब तक का सारा इतिहास पाक की बदनीयती का गवाह है, पता नहीं वह कौन सी ताकत है , जो सरकार को तवारीख की किताबों के खूनआलूदा वर्क पलटने से रोकती हैं । समझदार लोगों की सलाह उन्हें पसंद नहीं आती ।
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री युसूफ राजा परवेज़ की अजमेर यात्रा की रोशनाई अभी सूखी नहीं है,इस यात्रा में राजा परवेज़ का ख़ैर-ए-मकदम करने वालों में भारत के विदेश मंत्री अगुआ थे । शहीदों की सिरकटी लाशें इंसाफ मांग रही थीं,गरीब नवाज़ के आस्ता के मुतवल्ली समझा रहे थे और मियाँ खुर्शीद राजा परवेज़ को बिरयानी खिला रहे थे । सरबजीत की हत्या क्या थी? जिद और धोखे के अलावा कुछ नहीं । पूर्व प्रधानमंत्री स्व. लाल बहादुर शास्त्री की ताशकंद यात्रा का किस्सा अब भी वतन परस्तों के खून को खौला देता है | सही मायने में पाकिस्तान को समझाइश नहीं “सबक” देने की जरूरत है |
