राकेश दुबे@प्रतिदिन। मध्यप्रदेश में एक पाठ जुड़ना और निकलना,बिहार के एक मंत्री का दिन में कुछ कहना शाम को माफ़ी मांगना, उत्तर प्रदेश और गुजरात की प्रशासनिक पहेली| ऐसी घटनाएँ है, जिन्हें सरकारों की बदहवासी या अहंकार की संज्ञा दी जाये| वैसे इन घटनाओं के पीछे रही मंशाओं को सद इच्छा तो कतई नहीं कहा जा सकता| राजनीति की भाषा में कुछ घटना तुष्टिकरण है, तो कुछ अहंकार|
सबसे पहले मध्यप्रदेश| सरकार को न तो समाज ने मदरसे में गीता पाठ जोड़ने को कहा था, न भारतीय जनता पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र में ही ऐसा कोई वादा था और न राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आग्रह ही था| फिर किस महान आत्मा के महान सुझाव को मानकर निर्णय ले लिया| पहले उसे उचित ठहराया,तर्क भी दिया की सिर्फ गीतापाठ नहीं और भी कुछ जोड़ा गया है| फिर न जाने क्या सोचकर सिर्फ गीतापाठ निकलने के आदेश हो गये| राजनीति की भाषा इसे तुष्टिकरण कहेगी, अगले कदम की आलोचना अभी से हो रही है| वह है मुख्य सचिव के लिए अधिकारी का चयन| भाजपा का एक खेमा एक विशेष अधिकारी के पक्ष में है और एक उसी अधिकारी के विरोध में| पक्षधरों का मानना है की इससे वोट बैंक पर असर पड़ेगा|
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने मंत्री भीमसिंह की ओर से माफ़ी मांग ली है| भीम सिंह ने कहा था कि सेना और पुलिस में तो लोग मरने के लिए जाते हैं| बिहार में आज कोई मंत्री शहीद जवानों के शवों को सलामी देने नहीं पहुंचा| जो शेष था,वह भीम सिंह ने कर दिया| बोलने के मामले में नीतीश कुमार कमजोर नहीं है उन्होंने इशरत जहाँ को बिहार की बेटी घोषित किया है| चुनाव तक उसके नाम पर कोई स्मारक या पुरुस्कार घोषित हो जाये , तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए| उत्तरप्रदेश में तो सरकार ने साफ कह दिया है कि “उन्हें अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों की जरूरत नहीं है| गुजरात में राज्यपाल द्वारा नियुक्त लोकायुक्त ने असहयोग की आशंका के कारण पदभार ग्रहण करने में असमर्थता जताई है| सोचिये ये सब क्या है ? और देश का इसमें कितना भला है|
