अनिल नेमा। भैया आज ‘‘टोपी’’ पर ट्विटर व सोशल मीडिया में लम्बी बहस चल रही है । रजा मुराद ने कहा कि ‘‘टोपी’’ पहनना ठीक है,पहनाना गलत है। 17 साल से ये नेता और अफसर हमारी बिरादरी को ‘‘टोपी’’पहना रहे है,याद करो पिछले चुनाव के पूर्व जब अध्यापकों ने ,संविदा साथियों ने भोपाल में जंगी प्रदर्शन किया,पुलिस ने शिक्षकों की गरिमा के विरूद्ध लाठी से हमारीपिटाई की ,दौड़ा-दौड़ा कर मारा । प्रदर्शन के बाद कई शिक्षकों का निलम्बन हुआ।
मुझे याद है उस जंगी प्रदर्शन में हमारे छिन्दवाड़ा के श्री संजय मोहोड़ जी पुलिस की लाठी का शिकार हुई थे,करीब 3 माह अस्पताल की टिकिट के साथ सरकार ने निलम्बन का पत्र भी अस्पताल पहुंचाया था। ऐतिहासिक आन्दोलन से हमें लग रहा था कि अब शोषण का अंत होगा परन्तु सरकार ने चुनाव के समय ‘‘टोपी’’ पहना दी ।
होना था शिक्षाकर्मियों का शिक्षा विभाग में संविलयन परन्तु सरकार के अफसरों ने डंडी मारते हुये एक नया संवर्ग बना दिया ‘‘अध्यापक संवर्ग ’’। सरकार ने वाह-वाही लूटने के लिये संदेश दिया कि हमने कर्मी कल्चर समाप्त कर दिया है परन्तु वास्तव में कर्मी कल्चर समाप्त नही किया शिक्षाकर्मी की ‘‘टोपी’’ का नाम बदलकर
अध्यापक रख दिया । जो सुविधाये व सम्मान शिक्षकों को प्राप्त है अध्यापक आज भी उससे महफूज है।
फिर 2013 के विधानसभा चुनाव नजदीक आये हमारे साथियों ने फिर आमरण अनशन, हड़ताल व गांधीवादी तरीके से आन्दोलन किया, हमारे साथियों की 20से 30 दिनों की पगार काट ली गई । मानसिक वेदना के दौर से गुजरते हुये, दुखी होकर कई साथियों ने आत्महत्या कर इस मानसिक वेदना से निजात पा ली ,कई साथी आज तक आस लगाकर बैठे है कि शिवराज सरकार अबकी बार कोई ‘‘टोपी’’ नही पहनायेगी।
परन्तु सरकार ने पुरानी टोपी का रंग फिर बदला और अब उसे ‘‘राज्य शिक्षा सेवा’’का नाम देकर अध्यापक बिरादरी के सिर के ऊपर रख दी । महोदय कब तक ये टोपी का चक्कर चलेगा । हमें शिक्षकों का सम्मान चाहिये, हमें शिक्षा विभाग में संविलयन चाहिये ।
‘‘किस्तों की टोपी ’’,‘‘राज्य शिक्षा सेवा’’ की टोपी से अध्यापकों का जनादेश खंडित हो रहा है। महोदय बस हमें आप टोपी न पहनाये हम वादा करते है कि सुस्पष्ट जनादेश से हम आपको पगड़ी पहनायेंगे।
अनिल नेमा
आम अध्यापक
