भोपाल। मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार के लिए यह एक सनसनी पैदा कर देने वाली खबर है। जबलपुर हाईकोर्ट ने उसे आदेश दिया है कि वो आरटीआई कार्यकर्ता अजय दुबे को मंत्रियों की बौद्धिक रिपोर्ट सौंपे।
उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने 1-2 फरवरी, 2009 में पचमढ़ी की कार्यशाला में अपने मंत्रियों की भावना का स्तर जाना-परखा था। हालांकि यह और बात है कि सरकार ने कभी भी यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की।
पचमढ़ी में वर्ष, 2009 में हुई मंत्रियों की कार्यशाला का मकसद उन्हें सुशासन, पारदर्शिता, जवाबदेही, नेतृत्व क्षमता का पाठ पढ़ाना और उनकी भावनात्मक बुद्घि का स्तर जानना था। इसका आकलन करने के लिए आइआइएम अहमदाबाद की पूर्व फैकल्टी सदस्य इंदिरा पारिख और दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रो.गिरिश्वर मिश्र को बुलाया गया था। हालांकि सरकार ने कभी यह स्वीकार नहीं किया कि ऐसा कोई टेस्ट कराया गया था।
भोपाल के आरटीआई कार्यकर्ता अजय दुबे ने 4 फरवरी, 2009 को आरटीआइ के तहत पचमढ़ी वर्कशॉप पर हुए खर्च और सीएम सहित मंत्रिमंडल के आईक्यू टेस्ट (भावनात्मक बुद्घि) का ब्यौरा मांगा था। यह अपील सुशासन एवं नीति विश्लेषण स्कूल को भेजी गई थी, लेकिन अपीलीय प्राधिकारी अखिलेश अर्गल ने सिर्फ खर्च संबंधी जानकारी दी। इसमें बताया गया था कि वर्कशॉप पर करीब 8 लाख रुपए खर्च किए गए थे। लेकिन यहां आईक्यू टेस्ट की जानकारी देने से साफ मना कर दिया गया। जवाब में कहा गया कि यह निजी जानकारी है।
इस जवाब से असंतुष्ट आरटीआई कार्यकर्ता अजय दुबे ने मई 2009 में राज्य सूचना आयोग में दूसरी अपील दायर की। 9 मार्च, 2012 को अपने फैसले में आयोग ने निर्देश दिए कि 15 दिन में मांगी गई सूचना नि:शुल्क उपलब्ध करवाई जाए, जिसके बाद 16 मार्च, 2012 को सूचना अधिकारी ने दुबे को कोरियर से आईक्यू टेस्ट के दस्तावेज भेजे गए। हालांकि ये दस्तावेज भी अस्पष्ट थे।
इन दस्तावेजों में 'भावनात्मक बुद्घि-विवरण' नाम से आईक्यू टेस्ट की टेबल शीट थी, लेकिन कौन सी शीट किस मंत्री की है, यह नहीं बताया गया था। अनाम शीटों पर भावनात्मक अभिव्यक्ति, अन्य व्यक्ति की भावनात्मक चेतना, इच्छा, दूसरों के साथ संबंध, रचनात्मक असंतोष, दया, दृष्टिकोण, बोध, विश्वास, नियंत्रण और ईमानदारी जैसे 11 आयामों पर न्यूनतम दो अंक और अधिकतम 15 अंक दिए गए हैं। हालांकि यह स्पष्ट नहीं हुआ कि किसी मंत्री को कितने अंक मिले और कितने में से मिले।