राकेश दुबे@प्रतिदिन। बड़ा गुमान था, हम से बढ़ कर कोई नही| उच्चतम न्यायलय ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8[4] को रद्द कर दिया है| सरकार को आज फैसले का स्वागत भी करना पड़ा है| तत्काल प्रभाव से लागू फैसला उच्चतम न्यायालय का है, केन्द्रीय सूचना आयोग का नहीं, जिसे सही होते हुए भी गलत साबित करने पर वे लोग पिल पड़े थे|
जो हमेशा नागरिकों के लिए अलग और अपने लिए अलग कानून की मांग करते है| पारदर्शी रहना नहीं चाहते, ईमानदार है नहीं और उपदेश ईमानदारी के देते हैं|
आज से 2 साल की सज़ा पाए जन प्रतिनिधि को तुरंत निलम्बित कर दिया जायेगा| पहले यहाँ से सज़ा तो वहाँ अपील वहां भी सज़ा कायम तो आगे अपील और सदन की सदस्यता बरकरार, और चुनाव भी लड़ेंगे सब करेंगे लेकिन अदालत ने जो कहा वह नहीं करेंगे| कानून को घर की खेती समझ लिया था| अभी भी इस फैसले के खिलाफ कुछ पेशबंदी जरुर करेंगे| अपने वेतन, भत्ते और सुविधा के लिए इनकी एकता कमाल की होती है| देश की एकता कैसे बंटी रहे, इनका गुप्त एजेंडा होता है|
उच्चतम न्यायलय बधाई का पात्र है, ऐसे ही सद्प्रयासों से देश में कुछ बदलेगा क्योंकि कभी हम सत्ता में कभी तुम सत्ता में एक दूसरे के कवच बनने वाली इस जमात पर नियन्त्रण ऐसे ही होगा और देश बनेगा|
