Anil Nema/मध्यप्रदेश सरकार का 32 अरब 70 करोड़ रूपये का अनुपूरक बजट मंगलवार को विधानसभा मे पेश कर दिया गया। जैसी उम्मीद थी ठीक वैसा ही हुआ,‘अध्यापकों के लिये सरकारी खजाने' में फूट कौड़ी भी नही ’दादा जी जाते-जाते सच्चाई से वाकिफ कराके गये परन्तु अतिविश्वासी हमारे अध्यापक नेताओं ने न कोई आन्दोलन करने की रूपरेखा बनाई और न ही अध्यापकों को एकजुट करने की रणनीति बनाई।
सरकार अपना काम पहले ही कर चुकी है, संविलयन के नाम पर,8 10,12 साल वालों में फूट डाली जबाकि संविलयन का मुददा ही गायब है। विगत चार माह की तैयारी में सरकार ने अध्यापकों को एंकाकी कर दिया है स्थिति ये है कि आज आम अध्यापक के पास ऐसा कोई नेता नही बचा जो सरकार के खिलाफ आन्दोलन का शंखनाद कर सके।
दुबे गुट,पाटीदार गुट सरकार के खिलाफ खामोश है ,भूमिगत है, कुछ सरकार द्वारा प्रायोजित नेता सरकार की चमचागिरी,उनके अभिनंदन करने में लगे है । सरकार की अस्पष्ट नीति ,कथनी और करनी में अंतर ,घोषणावीर की कुटनीति से आम अध्यापक आहत है।
सरकार को यदि अध्यापकों के हित में कुछ करना होता तो सरकार इन चार माह में संयुक्त मोर्चा,संविदा शिक्षक संघ ,अध्यापक कोर कमेटी और आम अध्यापक को एक साथ एक मंच पर बुलाकर वार्ताओं के कई दौर के बाद एक बीच का रास्ता निकलकर अध्यापकों को संतृष्ट कर सकती थी। जैसा छत्तीसगढ़ में में हुआ था परन्तु इस अतिविश्वासी सरकार के मंत्री पहले ही कह चुके है कि ये ‘‘तीन हजार रूपये वाले हमारा कुछ नही कर सकते ’।
सरकार जानती है कि कुछ अध्यापक नेताओं को हम खरीद कर,किस्तों का रसायन पिलाकर इस चुनाव को तो निकल लेंगे । तारीख पर तारीख के बाद आखिर तारीख में हजार दो हजार की बृद्धि कर ‘‘राज्य शिक्षा सेवा‘‘ का फंड थोपकर इनको संतृष्ट कर देंगें।
जो सरकार अध्यापकों को चपरासी से कम वेतन देकर मानसिक व आर्थिक शोषण कर रही है, जो सरकार 17 साल के अध्यापकों को क्रमोन्नति के नाम पर उनके वेतन में 25 रूपये की वृद्धि कर वाह वाही लूटती है,ट्रान्सफर पालिसी,पेंशन,बी मा, एच.आर.ए., प्रमोशन के नाम पर जो अध्यापकों के साथ छलावा कर रही है वो सरकार अध्यापक हितेषी नही,अध्यापक विरोघी है।
अब तारीख का इंतजार हम न करें ,अब जो अध्यापक जंहा है,जिस हालात में है उसी स्थिति में अविलम्ब आन्दोलन का सूत्रपात कर दे। आन्दोलन के लिये किसी नेता की जरूरत अब नही है। और न ही अब अध्यापकों को सरकार के सामने जाकर गिड़गिड़ाना है।
अब आन्दोलन के पहले चरण में अध्यापक अपनी पीड़ा से पहले अपने परिवार के सदस्यों को अवगत करावे,फिर अपने विद्याथियों के पालकगण के बाद ,17 साल के शोषण की दास्ता अपने मित्रों से ,स्कूल के अन्य सदस्यों से ,पी.टी.ए. के सदस्यों से ,मध्यान्ह भोजन वाले स्व-सहायता समूह के सदस्यों से,किराना की सामग्री,गल्ला क्रय करने वाली दूकान के दूकानदार से,सेठ साहूकर से लेकर आम जन तक अपने शोषण और सरकार की दोहरी नीति की दास्तां सुनकर अध्यापक अपने पक्ष में माहौल तैयार करें।
माहौल इतना जबरदस्त होना चाहिये कि आम आदमी ये समझ सकें कि वर्तमान शिक्षा की दुर्दशा के लिये कौन जबाबदार है। आन्दोलन के दूसरे चरण में अध्यापक गण प्रदेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के महासचिव / उपाध्यक्ष को पोस्ट कार्ड में
पत्र लिखकर ‘‘ शिक्षा विभाग में संविलयन ‘‘ व ‘‘समान कार्य -समान वेतन ’’ की मांग को कांग्रेस के घोषणा पत्र में शमिल करने का आव्हान करें।
दुष्यंत कुमार जी की चार लाइन याद आती है- इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है, नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है। एक चिनगारी कही से ढूँढ लाओ दोस्तों, इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है। एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी, आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है।
अनिल नेमा
आम अध्यापक