गोपनीयता की शपथ का मजाक उड़ा रहे हैं मध्यप्रदेश के मंत्री

भोपाल| मध्य प्रदेश में संवैधानिक व्यवस्थाओं का जमकर मजाक उड़ाने का दौर जारी है। इन दिनों कैबिनेट (मंत्रिपरिषद) की बैठक से पहले ही बैठक में होने वाले फैसले आम कर दिए जाते हैं। इसमें प्रशासनिक अमले के जिम्मेदार अफसरों से लेकर सरकार के मंत्री तक के शामिल होने का अंदेशा है, क्योंकि उनके सहायोग के बिना यह संभव ही नहीं है।

किसी भी सरकार की मंत्रिपरिषद की बैठक में होने वाले फैसले गोपनीय व अहम माने जाते हैं, क्योंकि वे मंत्रियों के बीच चर्चा के बाद ही लिए जाते हैं। इसलिए बैठक से पहले इनके लीक न होने देने की जिम्मेदारी संबंधित अफसरों व मंत्रियों पर होती है। मगर मध्य प्रदेश में इन दिनों कैबिनेट की होने वाली बैठक के एक दिन पहले ही सारे फैसले आम चर्चा में आ जाते हैं। 

जिस दिन बैठक होनी होती है, उसी सुबह पूरे प्रदेश के लोगों को अखबारों की सुर्खियों के चलते पता चल जाता है कि कैबिनेट की बैठक में कौन-कौन से फैसले होन वाले हैं।  कैबिनेट की बैठक की प्रक्रिया के मुताबिक एक प्रेसी जिसे एजेंडा कह सकते हैं, तैयार किया जाता है, जिसे मंत्रिमंडल के सदस्यों तक बैठक से पहले भेजे जाने की पंरपरा है। साथ ही एक शर्त भी होती है कि प्रेसी किसी भी हालत में लीक नहीं होनी चाहिए।  

राज्य के वरिष्ठ पत्रकार लज्जाशंकर हरदेनिया कहते हैं कि कैबिनेट प्रेसी एक गोपनीय दस्तावेज होता है और बैठक से पहले उसके विषय मंत्री के अलावा किसी की भी जानकारी में नहीं आने चाहिए। राज्य की पत्रकारिता में दशकों से सक्रिय हरदेनिया बताते हैं कि पहले प्रेसी के बारे में जानकारी हासिल करना आसान नहीं था। वर्तमान में जो हो रहा है वह संविधान की भावना के खिलाफ है। 

मंत्री गोपनीयता की शपथ लेता है और अगर वही फैसले लीक कर रहा है तो यह शपथ का मजाक है। वरिष्ठ पत्रकार शिवअनुराग पटैरिया कहते हैं कि कैबिनेट की बैठक से पहले प्रेसी का लीक होना सैधांतिक तौर पर और संविधान की मर्यादा के खिलाफ है। यह इसलिए हो रहा है क्योंकि लोगों ने परंपराओं व मान्यताओं को तिरोहित कर दिया है। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह का कहना है कि राज्य में मंत्रिपरिषद की बैठक अपना महत्व खो चुकी है। 

संवैधानिक संस्थाओं को भाजपा सरकार मजाक बनाने पर तुली है। मंत्रिपरिषद की बैठक में होने वाले फैसले पहले कभी भी आम नहीं हुए है, मगर आज मंत्रिपरिषद की हर बैठक के फैसले पहले ही चर्चा में आ जाते हैं। सिंह का आरोप है कि बीते नौ वषरें में भाजपा ने संवैधानिक संस्थाओं के औचित्य पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। मानवाधिकार आयोग की अनुशंसाएं फाइलों में बंद रह जाती हैं, सूचना आयोग में आयुक्तों के पद नहीं भरे जाते, लिहाजा आम आदमी को सूचना के अधिकार का लाभ ही नहीं मिल पा रहा है।

जानकारों का मानना है कि बैठक से पहले फैसले एक रणनीति के तहत लीक कराए जाते हैं। मंत्रिपरिषद के कुछ मंत्री जब किसी फैसले को विवादित बनाना चाहते हैं तो उसे बैठक से पहले ही जोर शोर से प्रचारित करते हैं, वहीं सरकार की वाहवाही वाले फैसले लीक कर दिए जाते हैं।  बीते सप्ताह हुई कैबिनेट की बैठक से पहले ग्वालियर में सिंधिया एज्यूकेशनल सोसायटी को पुरानी दर पर जमीन देने के फैसले का पहले ही लीक होना इस तरह का ताजा उदाहरण है।  बैठक मे इस मामले का विरोध हुआ और फैसला नहीं हो पाया।  

यहीं पर एक मामला सरकार की वाहवाही वाला भी है, जिसे बैठक से पहले ही लीक कर दिया गया। पुलिस कर्मियों की भर्ती व संविदा शिक्षकों की नियुक्ति से सम्बधित फैसले को बैठक से पहले ही लीक कर दिया गया था।  कैबिनेट की बैठक से पहले लीक होने वाले फैसलों की बढ़ती संख्या से संविधान की व्यवस्था तो भंग हो ही रही है साथ ही सरकार की कार्यप्रणाली भी सवालों के घेरे में है कि अगर मंत्रियों को भेजी जाने वाली प्रेसी ही लीक हो रही है तो उसके अन्य दस्तावेज कितने सुरक्षित होंगे।
भोपाल समाचार से जुड़िए
कृपया गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें यहां क्लिक करें
टेलीग्राम चैनल सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें
व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए  यहां क्लिक करें
X-ट्विटर पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
फेसबुक पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
समाचार भेजें editorbhopalsamachar@gmail.com
जिलों में ब्यूरो/संवाददाता के लिए व्हाट्सएप करें 91652 24289

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!