भोपाल। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष व सांसद नरेन्द्रसिंह तोमर एवं मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने आज पत्रकार वार्ता में कहा कि कांग्रेस के द्वारा जिन तकनीकों का इस्तेमाल चुनाव से पहले उत्तरप्रदेश में मायावती के विरूद्ध, आंधप्रेदश में जगन के विरूद्ध तथा गुजरात में नरेन्द्र मोदी के विरूद्ध किया गया। अब मध्यप्रदेश में वही तकनीकें इस्तेमाल करना शुरू कर दिया गया है।
चुनाव से पूर्व नरेन्द्र मोदी के गुजरात में सीबीआई के जरिए इतने छापे पडवाए गए कि लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया कि गुजरात में सीबीआई का एक्सटेंशन काउंटर खुल गया है। इसी प्रकार आंध्रप्रदेश में हुए उपचुनावों के पहले श्री जगन के विरूद्ध इन्कम टैक्स और सीबीआई के इतने छापे पडवाए गए ताकि उसकी छवि को धूल धूसरित कर कांग्रेस चुनावी फायदा ले सके। उत्तरप्रदेश में चुनाव होने के पहले एक के बाद एक छापे पड रहे थे। चुनाव होने के बाद इन छापों का पता ही नहीं लगा।
यह कांग्रेस की शैली रही है कि वह केन्द्रीय प्रवर्तन एजेंसियों का इस्तेमाल अपने राजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों को बदनाम करने, धमकाने या ब्लेकमेल करने के लिए करती है। वे नहीं जानते कि ऐसा कर वे देश समूचे प्रशासनिक तंत्र का राजनीतिकरण कर दे रहे हैं किंतु वे इतना अवश्य जानते है कि वे मध्यप्रदेश में अपने कुकर्मो और अकर्मण्यता के कारण जनाधार खो चुके है।
इसलिए कांग्रेस के नेता दिल्ली की राजनीति करते है और दिल्ली से राजनीति करते है। जनता से अपनी स्वीकृति और मान्यता प्राप्त करने की जगह वे सोनिया और राहुल गांधी से टिप्पस भिडाने में लगे रहते है। अपने कुषासन के कारण जनता का सामना करने की हिम्मत उनमें नहीं है। अतः वे दिल्ली से कुछ चुनिंदा लोगों और एजेंसियों को साधकर जनता का सामना न करने की क्षतिपूर्ति करते रहते है।
उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस के कुछ शीर्ष नेताओं की जिनमें प्रदेश के जनता के द्वारा खारिज कर दिए गए कुछ राजनीतिज्ञ भी शामिल थे। अभी हाल ही में दिल्ली में बैठक हुई जिसमें मध्यप्रदेश में भी उसी रणनीति पर काम करने का निर्णय लिया गया। इसके बाद नसरूल्लागंज में हुई कांग्रेस की सभा में दिग्विजय सिंह जी ने कहा कि शिवा कंपनी शिवराज की है। उसके चार दिनों बाद इन्कम टैक्स ने शिवा कंपनी पर छापा मारा। हालांकि वहां शिवराज के संबंध में कुछ नहीं मिला लेकिन एक अनुप्रास अलंकार को छापा मारने का आधार बनाना कांग्रेस के ही विकृत दिमाग की उपज कहा जा सकता है।
अब उसके बाद यह लोग आयकर के छापे में तथाकथित रूप से पाए गए एक कागज के आधार पर चाय की प्याली में तूफान लाना चाहते है। हाल में दो मंत्रियों और भाजपा के कुछ नेताओं के विरूद्ध षडयंत्रपूर्ण तरीके से अखबारों में नाम उछाले जा रहे है। जिन चीजों को स्वयं आयकर विभाग ने किसी तवज्जों के लायक नहीं माना और उसके आधार पर कोई करारोपण कार्यवाही नहीं की, उन चीजों को एक सुनियोजित साजिश के तहत कांग्रेस द्वारा हवा दी जा रही है। मात्र एक सादे कागज पर कुछ लिखे होने को स्वयं आयकर विभाग किसी कर कार्यवाही के योग्य नहीं मानता क्योंकि स्वयं आयकर विभाग के विरूद्ध पूर्व में चले प्रकरणों में न्यायालयो ने निम्नानुसार निर्धारित किया है -
1. असिस्टेंट कमिष्नर आफ इन्कम टैक्स वि. प्रभात आयल मिल्स (1995) 52 ज्ज्श्र ।ीक 533 में यह कहा गया कि मात्र डायरी प्रविष्टियां किसी विपरीत निष्कर्ष पर नहीं ले जा सकती।
2. कमिष्नर आॅफ इंकम टैक्स वि. मल्टी टेक आटो लि. (2008) 301 प्ज्त् 73 झारखण्ड प्रकरण में लूज दस्तावेजों के आधार पर आयकर की कार्यवाही को कानून की नजर में टिकने योग्य नहीं ;नदेनेजंपदंइसमद्ध पद ;जीम मलम व िसंूद्ध माना।
3. कमिष्नर आॅफ इन्कम टैक्स वि. खजान सिंह एवं ब्रदर्स (2008) 304 प्ज्त् 243 ;च्-भ्द्ध में ंतो डायरी प्रविष्टियों को काल्पनिक मानते हुए यह कहा गया कि उन प्रविष्टियों पर विष्वास किया ही नहीं जा सकता।
4. पूजा भट्ट वि. असिस्टेंट कमिष्नर इन्कम टैक्स प्रकरण में सर्च के दौरान पाए गए त्वनही दवजमे को व्यय के रूप में स्वीकार करने से इंकार कर दिया गया। -2
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5. एसके गुप्ता वि. डिप्टी कमिष्नर आॅफ इन्कम टैक्स के प्रकरण में 1999 ;63ज्ज्श्रद्ध ;क्मसण्द्ध 532 यह अभिनिर्धारित किया गया कि लूज शीट के आधार पर था फटे कागजों के आधार पर आयकर में जोडने की कार्यवाही नहीं की जा सकती।
6. अतुल कुमार जैन वि. डिप्टी कमिष्नरी आॅफ इन्कम टैक्स ;1999द्ध 64 ज्ज्श्र 786 ;क्मसीपद्ध में कहा गया था कि लूट शीट आॅफ पेपर अंकित कुछ अंकों के बारे में असंबंद्ध पूर्वानुमान या हवाई अटकलबाजी नहीं की जा सकती।
7. सबसे प्रसिद्ध प्रकरण ंतो हवाला केस का है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डायरी दो पक्षों के बीच किसी अनुबंध का परिणाम नही होती। उसमें न ंतो डेबिट होता है और न के्रडिट। अधिक से अधिक वे एक मेमोरेंडम मात्र है जिसे कोई व्यक्ति अपने लाभ के लिए लिखता है, किंतु उससे किसी अन्य स्वतंत्र साक्ष्य के अभाव में किसी दूसरे व्यक्ति के विरूद्ध इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। खासकर तब जब यह डायरी व्यापार के अनुक्रम में दिनानुदिन नहीं लिखी जा रही हो ंऔर उन पर किसी तरह की तिथि भी अंकित न हो और उस पर किसी व्यक्ति के नाम भी न लिखे हुए हो। मात्र दस्तावेजों की प्रस्तुति उसमें निहित विवरणों की सच्चाई का साक्ष्य नहीं होती। इनकी प्रकृति ही ऐसी है कि इन्हें याचिकाकताओं के विरूद्ध किसी तरह के विधिक साक्ष्य के रूप में नहीं देखा जा सकता।
इस मामले में उपरोक्त विधिक स्थिति के प्रकाष में कुछ और चीजें भी निवेदन करने योग्य है।
1. इस संबंध में आयकर विभाग द्वारा दोनों मंत्रियों से किसी तरह की कोई पूछताछ नहीं की गयी है।
2. इसका अर्थ यही है कि स्वयं आयकर विभाग उन्हें कोई महत्व नहीं देता।
3. किसी के पीठ पीछे एकतरफा तरीके से किसी के विरूद्ध उसे जवाब देने का मौका दिए बगैर कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता।
4. हवाला प्रकरण में ंतो फिर भी नामों के संक्षिप्ताक्षर थे किंतु इस मामले में ंतो वह भी नहीं है।
5. यहां ंतो मात्र एक कागज है जिस पर किसी के भी हस्ताक्षर नहीं है।
6. इस कागज पर किसी भी तरह की दिनांक अंकित नहीं है।
7. इस कागज पर लिखित अंक के आगे कोई इकाई नहीं लिखी गयी है। अतः इसके आधार पर किसी तरह की लायबिलिटी का अनुमान नहीं लगाया जा सकता।
8. इस कागज के आरंभ में ही त्मुनपतमउमदज शब्द लिखा है। यह स्थिति किसी तरह के भुगतान का उल्लेख नहीं है। त्मुनपतमउमदज हद से हद उसे लिखने वाले के मानसिक गुणा भाग का परिचायक है। त्मुनपतमउमदज शब्द डिमांग नहीं है। त्मुनपतमउमदज शब्द भुगतान भी नहीं है।
9. अभी हाल ही में एक अन्य प्रकरण में हाईकोर्ट ने आयकर विभाग से यही पूछा कि म्ज्ब् लिखे होने से वह उसे किंस आधार पर ब्भ् समझा। ब्भ् समझाने के आधार पर कैसे वह उसे कमिश्रनर हैल्थ समझा। कमिश्रनर हैल्थ समझने से कैसे वह उसे एक अधिकारी विषेष के रूप में समझा। आयकर के पास जिस तरह से तब उन प्रष्नों का जवाब नहीं था उसी तरह से आज भी इन प्रष्नों का जवाब नहीं है कि कैसे किलाग्राम को वह रूप्ये समझ सकता है।
10. यदि यह कागज किसी लेनदने का संकेत होतातो इसकी प्रविष्ठ किसी तरह के ऐसे अभिलेख मं क्यों नहीं है जिसे व्यापार के साधारण अनुक्रम में संधारित किया जाता है।
11. इस राषि के किसी तरह के वितरण के मामले में किसी भी तरह का कोई साक्ष्य नहीं है।
12. जिस जाॅली गाँव का नाम इस कागज पर अंकित है उस गांव की कोई भी खदान उस व्यक्ति को नहीं दी गई जिससे पास से इस कागज की बरामदगी बताई गई है। -3
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13. बल्कि मंत्री द्वारा निर्णय इस व्यक्ति की कंपनी के विरूद्ध हुआ है। जब किसी तरह का लाभ ही किसी को दिया ही नहीं गया है तो लेन-देन का या रिश्रवत का आरोप किस तरह से लगाया जा सकता है। क्या नेता प्रतिपक्ष यह कहना चाहते हैं कि संबंधित कंपनी अपने विरूद्ध निर्णय कराने के लिए पैसा दे रही थी। रिष्वत के किसी भी मामले में फनपक च्तव फनव जरूरी होता है। यानी यदि रिष्वत दी गई है तो उसके बदले में कोई लाभ दिया गया है। इस मामले में यह फनपक च्तव फनव है ही नही।
14. फिर डप्छ लिखने से यह कहाॅं सिद्ध होता है कि यह मंत्री श्री राजेन्द्र शुक्ला ही हैं। लेकिन कांग्रेस इस तरह की छलिया राजनीति करके सरकार के विरूद्ध एक कृत्रिम माहौल रचना चाह रही है।
15. यदि मात्र डायरी प्रविष्टि ही पर्याप्त है तो फिर दिग्विजय सिंह जी के नाम की प्रविष्टि सोम डिस्टलरी की डायरी में मिली थी और उनके विरूद्ध 5 लाख का नही बल्कि 10 करोड़ रूपये का भुगतान किया जाना अंकित था। उनके आबकारी मंत्री के नाम 2 करोड़ की प्रविष्टि थी। उनके समय में सोम डिस्टलरी को लाभ भी मिला। यानी फनपक चतव ुनव की स्थिति भी थी। तब तो दिग्विजय सिंह जी और कांग्रेस का स्टेंड कुछ दूसरा था।
16. और सबसे बड़ी बात यह है तथा जिससे इस मामले में राजनीतिक षड़यंत्र की बू साफ पता लगती है कि जिस कंपनी के यहा से यह कागज मिला है उस कंपनी के डायरेक्टर श्री अर्जुन सिंह तथा श्री अजय सिंह राहुल भैया की कंपनी में पार्टनर रहे है। यह खोज का विषय है कि क्या इन्होंने श्री अजय सिंह के कहने पर ही तो इस तरह की प्रविष्टि नहीं कर ली।
17. सबसे ज्यादा हास्यास्पद तो भाजपा के नेताओं पर यात्रा के लिए टिकिट खरीदने के आरोप हैं। जिन लोगों ने 2,86,000 करोड का कोयला घोटाला, 176000 करोड का 2जी घोटाला, हजारौं करोड़ का काॅमनवेल्थ घोटाला और ऐसे ही कई बड़े से बड़े घोटालों का कीर्तीमान बनाया है वे मध्यप्रदेष की जनता के आॅंखों में घूल झोकने के लिए टिकिट के मुद्देे उछाल रहे है।
18. कांग्रेसी जान रहे हैं कि चुनावी दौड़ में कांग्रेस बहुत पीछे छूट चुकी है। न केवल मुख्यमंत्री जी की लोकप्रियता को कोई जवाब नहीं हे वल्कि प्रदेष के विकास और जनता के कल्याण तथा सुषासन के किसी भी मोर्चे पर कांग्रेस अपने शासन को भाजपा के शासन के पासंग भी नही पाती। इससे उनमें हताषा बढ़ रही है और वे साजिषों की राजनीति पर उतर आए है। लेकिन मध्यप्रदेष की जनता उनकी असलियत को बहुत अच्छी तरह से समझती है। इसलिए वक्त आने पर ऐसी साजिषों का उन्हें मुहतोड़ उत्तर भी देगी।