राजौरा कांड: आयकर विभाग के खिलाफ अफसरों की गिरोहबंदी गलत

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बादल सरोज/ आय से अधिक मामले में इनकम टैक्स के छापे में नामजद हुए एक आईएएस अधिकारी के कथित समर्थन में आईएएस अधिकारी असोसिएसन का इकठ्ठा होना और इनकम टैक्स विभाग पर "दबाब" बनाने की कोशिश करना, एक दुर्भाग्यजनक गिरोहबंदी का आभास देता है और अनेक जरूरी सवाल खड़े करता है। 

न्यायालय की तथाकथित "क्लीन चिट" का पुनरीक्षण सक्षम न्यायालय का काम है, मगर कुछ काम विशेषज्ञता की दरकार रखते हैं। जैसे देश के सर्वोत्तम न्यायाधीशों की अब तक की सबसे बड़ी -पंद्रह जजों की- संविधान पीठ भी गठित कर दी जाए तो भी वह कोलेस्ट्रोल के बारे में अंतिम निर्णय नहीं सुना सकती। यह काम, इस विधा में प्रशिक्षित युवा चिकित्सक ही कर सकता है। लिहाजा, जांच का काम उन्हें ही करने दिया जाए जो इसके लिए प्रशिक्षित हैं। इस प्रक्रिया के पूरा होने के पहले ही इनकम टैक्स विभाग-जो देश में अपनी साख बचा कर रखने वाली गिनी-चुनी बची  संस्थाओं में से एक है-के पीछे हाथ धोकर पड़ जाना, डराने धमकाने की परिधि में आता है।

यह बेहतर होगा कि ऐसे मामलों में मध्यप्रदेश की आई ए एस अधिकारी असोसिएसन खुद आगे आये और अपने खुद के लोकपाल का गठन करके हर साल दस सबसे भ्रष्ट आई ए एस अधिकारियों की सूची जारी करे। ऐसा करने  से इस नौकरशाही के प्रति लोगों में विश्वास पैदा होगा-और काली भेड़ों को अलग थलग किया जा सके।

मि. नरोन्हा से लेकर श्री बुच तक इस प्रदेश में साख और प्रतिबद्दिता वाले अनेक आई ए एस हुए हैं। मगर हाल के दौर में ऐसे चरित्र वाले व्यक्तियों की संख्या में उल्लेखनीय गिरावट आई है।  बेहतर होगा कि आई ए एस अधिकारी असोसिएसन  इस बारे में आत्मविश्लेषण करके उसमे सुधार के उपाय तलाशने में अपनी ऊर्जा खर्च करे। वरना श्री थेटे का तर्क कि "उनके पास तो सुप्रीम कोर्ट की क्लीन चिट है," का जवाब ढूंढना मुश्किल हो जाएगा । सवाल यह भी है कि जो रवैया किसी राजौरा के प्रति अपनाया जा रहा है वह क्या आई ए एस अधिकारी असोसिएसन को  अरविन्द जोशी और टीनू जोशी के मामले में भी नहीं अपनाना  जाना चाहिए।उनको भी तो, हो सकता है,नाजायज प्रताड़ित और परेशान किया जा रहा हो ? यूँ भी न्याय प्रणाली कहती है कि जब तक साबित न हो जाये तब तक कोई मुजरिम नहीं है  !!

आई ए एस अधिकारी असोसिएसन भ्रष्टाचार न करने कि हिदायत अपने माननीय सदस्यों को देगी यह आशा करना तो कुछ ज्यादा होगा किन्तु कुछ खर्चो और मदों को कमीशन के दायरे से बाहर रखने के "निर्देश" तो उसे जारी करने ही चाहिए। इनमें रोजगार गारंटी योजना, बाढ़-सूखा-प्राकृतिक आपदा राहत, वृद्दावस्था व विधवा व विकलांग पेंशन आदि कुछ हो सकते हैं।

बादल सरोज
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी केन्द्रीय समिति सदस्य एवं मध्यप्रदेश राज्य सचिव

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