राकेश दुबे@प्रतिदिन। चुनाव आयोग नोटिस देकर पूछे या कोई नेता हलफ उठाकर,शपथ लेकर भी, कभी यह सच नहीं बतायेगा,उसने चुनाव में कितना निवेश किया और किस-किस से निवेश कराया है |कोई भी चुनाव तयशुदा राशि से नहीं लड़ा जा रहा है |
न आय, अपराध और जानकारियां ही ठीक दी जा रही हैं| शपथ पत्र का मूल्य मजाक या सनसनी के अतिरिक्त कुछ नहीं बचा है | और इस हमाम में सब की दशा एक जैसी है, सबको सब दिखाई दे रहा है और सब न दिखने का नाटक कर रहे हैं |
आज एक समझदारी की बात आई है, जो इस चुनाव की गाड़ी को पटरी पर ला सकती है| लेकिन,उसे कोई मानेगा नहीं | बात नरेंद्र मोदी ने दोहराई है, इसलिए अब इसे साम्प्रदायिक भी कोई कह दे तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए | बात पते की है | इससे, चुनाव के पहले की टोपी-गमछा तुष्टिकरण राजनीति, चुनाव के पहले बंटने वाली शराब,कंबल और नकदी का व्यवहार रुकेगा और किसी सिंह,पंवार या मुंडे को जवाब भी नहीं देना होगा | नरेंद्र मोदी ने दोहराया है “अनिवार्य मतदान और राइट टू रिजेक्ट” | देश के कई विचारक और चिंतक पहले ही यह सब कह चुके हैं |
इसे तब भी किसी ने नहीं माना था | चुनाव निवेश का वह धंधा बन गया है, जो समाज सेवा, देश प्रेम जैसे सब्जबाग दिखा कर पीढियों को अकूत दौलत दिलाता है| एक दो अपवाद को छोड़ दें , बिना कोई काम करे, राजनीतिज्ञों की पूंजी हर साल 100 प्रतिशत तक कैसे बढती है | आंकड़े हर सदन में हैं | देश का हर आदमी जानता है “मुंडे” का जवाब क्या होगा ?
