भोपाल। बिहार में मिड डे मील खाने से 22 बच्चों की मौत के बाद केंद्र सरकार की इस योजना पर बड़े सवाल खड़े रहे हैं। ऐसा नहीं है कि पहली बार ऐसी कोई घटना हुई, लेकिन राज्य सरकारों तथा केंद्र की लापरवाही, भ्रष्टाचार ने इस योजना का न केवज बंटाधार कर दिया बल्कि बच्चों के स्वास्थ्य से भी खिलावाड़ हो रहा है।
मिड डे मील बांटने में लापरवाही, भ्रष्टाचार सिर्फ बिहार तक ही सीमित नहीं बल्कि एमपी में हालात बदतर हैं। सुशासन का दम भरने वाले शिवराज सिंह चौहान के इस राज्य में न्यूज चैनल सीएनएन आईबीएन ने पड़ताल की तो पता चला कि इस राज्य में मिड के मील के नाम पर 500 करोड़ रुपये बोगस कंपनियों को दे दिये गये। ये हाल तो तब है कि मध्य प्रदेश में लगभग 80 लाख बच्चे कुपोषित हैं। इनमें से 52 फीसदी ग्रामीण इलाकों से हैं।
फर्जी कंपनी का सच
चैनल को जानकारी मिली कि मप्र एग्रो इंडस्ट्री डेवलेपमेंट कॉर्पोरेशन ने तीन संयुक्त वेंचर बनाए। कॉर्पोरेशन ने खाना बनाने और स्पलाई करने की जिम्मेदारी ली। कॉर्पोरेशन ने इन वेंचर में 11 फीसदी की हिस्सेदारी रखी। इसमें से एक वेंचर फर्जी दस्तावेज से बना था। सितंबर 2008 में राज्य कृषि उद्योग विकास निगम ने अखबार में एक टेंडर आंमत्रित किया था। इस टेंडर के मुताबिक निगम ने भोजन बनाने और सप्लाई करने के लिए एक एससी, एसटी पाटर्नर की मांग की थी। इसमें इंदौर की एक कंपनी अनिल उद्योग को चुना गया लेकिन बाद में यह पता पड़ा कि कंपनी का मालिक तो राहुल जैन है।
कंपनी के मालिक के पास फर्जी दस्तावेज
एमपी एग्रो-न्यूट्रो फूड्स लिमिटेड कॉरपोरेट मंत्रालय में भी दर्ज थी, लेकिन जांच के बाद यह पता चला कि इस कंपनी का ऑफिस वहां से ऑपरेट होता है जहां अनिल इंडस्ट्री का ऑफिस है। कॉरपोरेट मंत्रालय से पाए गए दस्तावेजों से यह साफ होता है कि राहुल जैन की पहुंच मंत्रियों तक है तभी वह मिड डे मील भोजन की योजना में घालमेल करने में सफल हुआ है।