ऐसा क्या कर डाला कृष्ण ने कि 4 हजार डॉक्टर निकल पड़े हड़ताल पर

भोपाल। मप्र शासन के 4 हजार सरकारी डॉक्टरों ने सरकार को 10 जुलाई को सामूहिक छुट्टी में जाने का नोटिस दिया है। सरकारी डॉक्टरों ने एक संघर्ष समिति बनाई है। इस समिति ने 10 जुलाई को सामूहिक अवकाश तथा विधानसभा घेराव का नोटिस दिया है। यह नोटिस डॉक्टर्स डे की पूर्व संध्या को समिति ने जारी किया है।

डॉक्टरों की संघर्ष समिति ने एक विधिक कमेटी भी तैयार की है जो सरकार के साथ आर-पार की लड़ाई लड़ेगी। उनका यह विरोध किसी और मांग को लेकर नही बल्कि प्रमुख सचिव स्वास्थ्य प्रवीर कृष्ण की पूरे प्रदेश में घूमती छड़ी को लेकर है जो कभी भी किसी भी डॉक्टर पर जा पड़ती है।

मप्र के प्रमुख सचिव स्वास्थ्य प्रवीर कृष्ण ने सरकारी अस्पतालों का कायाकल्प कर दिया है। शासकीय अस्पताल में सभी को बेहतर चिकित्सा सुविधा मिले इसके लिए वह प्रदेश के सभी अस्पतालों में जाकर व्यवस्थाओं को दुरुस्त करा रहे हैं। उनकी सक्रियता के कारण अस्पताल में निश्चित समय तथा पूरे टाइम डाक्टरों तथा स्टाफ को डियुटी देना पड़ रही है। प्रवीर कृष्ण के प्रयास से आम जनता का भरोसा एक बार फिर सरकारी अस्पतालों पर बढ़ा है। जिसके कारण सरकारी अस्पतालों में रोगियों की संख्या भी काफी बढ़ी है। मप्र के सरकारी डॉक्टरो को इससे बड़ी परेशानी हो रही है।

सरकारी डॉक्टरों ने सरकारी अस्पतालों के रोगियों को चिन्हित कर उन्हें निजी नर्सिंग होम अथवा अपनी निजी प्रैक्टिस के साथ-साथ पैथालॉजी जांच अस्पताल से बाहर होने पर उन्हें भारी कमीशन और भारी कमाई होती थी। बाहर से मरीजों को दवाइयां लेना पड़ती थीं। इसमें भी डाक्टरों का कमीशन तय था। अब अस्पतालों में नि:शुल्क दवा उपलब्ध है। प्रमुख सचिव स्वास्थ्य ने इससे डाक्टरों की काली कमाई पर रोक लगी है। सतत निरीक्षण के कारण अब डॉक्टर अपनी मनमानी नहीं कर पा रहे हैं। जिसके कारण वह प्रमुख सचिव स्वास्थ्य के विरोध में खड़े हो रहे हैं। मध्यप्रदेश में सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर कई वर्षो से एक ही स्थान पर डटे हुए हैं। राजनैतिक एवं प्रशासनिक संरक्षण के कारण डॉक्टर सरकारी अस्पतालों में कम, निजी अस्पतालों में ज्यादा सेवाएं देते हैं। सरकारी अस्पतालों में माइनर तथा मेजर आपरेशन लगभग बंद हो गये थे। सरकारी डॉवटर आपरेशन के लिए मरीजों को निजी नर्सिंग होम में ले जाने की सलाह देते थे। इसी तरह पैथोलाजी जांच, एक्सरे इत्यादि हमेशा बाहर से जांच कराना पड़ती थी। इसमें डॉक्टरों को 30 से 50 फीसदी का कमीशन मिलता था। प्रमुख सचिव स्वास्थ्य ने सरकारी अस्पतालों की सारी व्यवस्थाएं दुरुस्त कराई हैं।

डॉक्टर से लेकर आशा कार्यकर्ता तक सभी को अपनी डियुटी और जिम्मेदारी के लिए पाबंद कर रहे हैं। मानव सेवा में चिकित्सकीय भूमिका की अनिवार्यता तथा रोगियों के प्रति डॉवटरों की शपथ के अनुसार उनमें सेवा भाव पैदा करने की कवायद से मप्र के डॉक्टर उनके खिलाफ लामबंद हो रहे हैं। डॉक्टर अपनी सामूहिक ताकत से भले पुराने ढर्रे को लागू करने में सफल हो जाएं किन्तु जनता के मन में डॉक्टरों के प्रति जो रोष पनप रहा है उसे डाक्टर नजरंदाज कर रहे हैं। डाक्टरों को आर्थिक एवं शारीरिक रूप से जनता के गुस्सा का शिकार होना ही पड़ेगा। विगत वर्षो में डॉक्टरों, नर्सिंग होम तथा निजी अस्पतालों में रोगियों के परिवारजनों तथा भीड़ ने हमला कर कई बार अपना रोष जताया है। उससे डाक्टरों को समझ लेना चाहिए कि वह समय रहते नहीं बदले तो उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। आम आदमी अब उन्हें भगवान नहीं यमराज मानने लगा है।


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