भोपाल। युवक को पुलिस हिरासत में प्रताड़ित करने के मामले में मध्य प्रदेश सरकार को पीड़ित व्यक्ति को 25 हजार रुपए मुआवजा देने का निर्देश दिया हैं। मंडला पुलिस ने 10 दिनों तक अवैध रूप से युवक को हिरासत में प्रताड़ित करने के मामले को गंभीरता से लेते हुए राज्य सरकार को पीड़ित व्यक्ति को 25 हजार रुपए मुआवजा देने का निर्देश दिया हैं।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश राजेन्द्र मेनन और एके शर्मा की युगलपीठ ने कल दिये अपने आदेश में कहा है कि आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ विभागीय जांच जारी है। इसलिए राज्य सरकार पीड़ित को मुआवजे के तौर पर 25 हजार रूपये का भुगतान करे।
युगलपीठ ने यह भी आदेश जारी किए हैं कि ट्रायल कोर्ट की सुनवाई जारी रहेगी। याचिका की सुनवाई के बाद युगलपीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता महिला के पति को मंडला पुलिस ने दस दिनों तक अवैधानिक तरीके से अभिरक्षा में रखकर उसको प्रताड़ित किया।
जबलपुर निवासी कुसुम सोनी की तरफ से दायर की गई याचिका में कहा गया था कि मंडला के टिकरिया थानान्तर्गत एक सर्राफा व्यापारी के साथ 3 जून 2012 को 6 लाख रुपए नकद व 600 ग्राम सोने की लूट हुई थी. पुलिस को लूट की वारदात में कुसुम के भाई की तलाश थी.
मंडला पुलिस 4 जून को जबलपुर आकर उसके पति हरीश उर्फ बब्लू सोनी को गिरफ्तार कर ले गयी थी. अगले दिन मंडला पुलिस की एसआई दुर्गेश नंदनी दो महिला आरक्षक के साथ आकर उसे भी गिरफ्तार कर लिया था.
पूछताछ के दौरान टिकरिया थानाप्रभारी डीएस धुवे सहित अन्य पुलिसकर्मियों ने प्रताड़ित किया था. याचिका में कहा गया कि पूछताछ के बाद पुलिस ने 7 जून की सुबह उसे रिहा कर दिया था, लेकिन पुलिस उसके पति को हिरासत में रखकर प्रताड़ित किया.
पुलिस ने उसके पति को आरोपी बनाते हुए 15 जून को अदालत में पेश किया. पति को अवैध रूप से हिरासत में रखने के खिलाफ उसने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी. उच्च न्यायालय ने मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी मंडला को जांच के निर्देश दिए थे.
दंडाधिकारी के समक्ष महिला एसआई दुग्रेश नंदनी ने यह बात स्वीकार की थी कि 5 जून को वह कुसुम सोनी को अभिरक्षा में लेकर टिकरिया थाने आयी थी. इसके बाद ड्यूटी में मंडला वापस आ गयी थी. इस दौरान महिला का पति भी पुलिस अभिरक्षा में था.
इसके अलावा जेल रजिस्टर में भी इस बात का उल्लेख था कि हरीश के शरीर में सात जगह चोटों के निशान थे, जो ताजा थे.यह रिपोर्ट मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी मंडला ने उच्च न्यायालय में पेश की थी.