राकेश दुबे@प्रतिदिन। मोदी जोर आजमाइश करते हुए दिल्ली की ओर चल पड़े हैं । दिल्ली कल भी जितनी दूर थी, आज भी उतनी ही दूर है ।जितनी शक्ति और सामर्थ्य को लेकर वे भारतीय जनता पार्टी का चेहरा बनने के अश्वमेध पर निकले थे भारतीय जनता पार्टी के दो फोरमों में शामिलकर उनके अश्व को थामने के प्रयास शुरू हो गये हैं । उनके अश्व की वल्गाएँ दिल्ली के नेताओं ने थाम रखी है और चाबुक एन डी ए के नेता फटकार रहे हैं ।
भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह भी सवालों के घेरे में हैं । पहला - 14 दशमलव 28 प्रतिशत विकास दर कायम करने वाले शिवराज सिंह में क्या योग्यता कम थी , जो उन्हें भारतीय जनता पार्टी के बड़े फोरमो में स्थान नहीं दिया गया । दूसरा - स्वयं राजनाथ सिंह, विनय कटियार ,डॉ मुरली मनोहर जोशी और वरुण गाँधी क्यों कम दिखे ,जो अमित शाह की जरूरत उ.प्र में आन पड़ी । दोनों के जवाब उनके पास नहीं है । और अगर हैं भी तो .............!
अभी तो मोदी को संसदीय बोर्ड और निर्वाचन समिति में उन लोगो से जोर आजमाइश करना होगी , जो आडवाणी समर्थक कहे जाते हैं । यह मोदी के अग्निपरीक्षा है एक और अपने तो दूसरी और वलय में शामिल एन डी ए के साथी , मीडिया ने अपना रुख खेमों के हिसाब तय कर लिया है और वलय के सारे योद्धा उसी के अनुरूप व्यूह रचना में लगे हैं ।