भोपाल। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए अच्छी खबर है। भाजपा और आरएसएस के बीच समन्वयक की भूमिका निभाने वाले आरएसएस के सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी की भाजपा में भूमिका अब सीमित होने की संभावना है।
ऐसा होता है तो इसका असर मध्यप्रदेश की राजनीति पर भी पडऩा तय है। सनद रहे पिछले दिनों प्रभात झा एवं उमा भारती की धमाकेदार वापसी के पीछे सुरेश सोनी ही थे। इसके अलावा मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के विरोधियों के शक्तिकेन्द्र भी एकमात्र सुरेश सोनी ही थे। वो शिवराज के पीछे केवल इसलिए पड़े रहते थे क्योंकि शिवराज सिंह, आडवाणी कोटे के सीएम थे, जबकि मोदी सोनी की पॉकेट वाले।
दरअसल, भाजपा के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी के भाजपा के सभी पदों से इस्तीफे की प्रमुख वजहों में एक सुरेश सोनी का भाजपा में बढ़ता हस्तक्षेप है। आडवाणी ने खुद संघ प्रमुख मोहन भागवत से इस बारे में पहले भी शिकायत की थी। सूत्रों के मुताबिक, संघ प्रमुख से सोनी की भूमिका सीमित होने का आश्वासन मिलने पर ही आडवाणी ने कथित तौर अपना रूख बदला है।
मोदी को भाजपा की चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाए जाने के मामले में भी सुरेश सोनी की भूमिका सबसे अहम रही। संघ ने सोनी से कहा था कि मोदी के नाम पर सर्वसम्मति बनाने के बाद ही फैसला लिया जाए, लेकिन सोनी ने ऐसा किए बगैर ही पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह से मोदी के नाम का एलान करवा दिया।
सूत्रों के मुताबिक, सोनी की यही मनमानी आडवाणी को नागवार गुजरी और उन्होंने पार्टी पदों से इस्तीफा दे दिया। अब आडवाणी की 18 जून को संघ प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात होनी है। सूत्रों की मानें तो तब सोनी का वजन कम करने पर बात हो सकती है। सूत्रों के मुताबिक, राजनाथ सिंह को अध्यक्ष बनवाने में भी सोनी की अहम भूमिका रही।
अध्यक्ष पद से नितिन गडकरी की विदाई के बाद आडवाणी वेंकैया नायडू को अध्यक्ष के रूप में देखना चाहते थे, लेकिन यहां भी सुरेश सोनी की मर्जी हावी रही और अध्यक्ष की कमान राजनाथ के हाथों में गई। इतना ही नहीं, आडवाणी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को संसदीय बोर्ड में जगह दिलाना चाहते थे, लेकिन इसमें भी वे मात खा गए। बताया जाता है कि सोनी के इशारे पर ही राजनाथ ने शिवराज को संसदीय बोर्ड से दूर रखा। इन सभी प्रकरणों के बाद गोवा में जो कुछ हुआ, उससे आडवाणी को लग गया कि सोनी की मनमानी रोकने के लिए उन्हें अब निर्णायक कदम उठाना ही पड़ेगी और उन्होंने इस्तीफे का ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया।
सौंपा था समन्वय का काम, करने लगे इंटरफियरेंस
मालूम हो, सुरेश सोनी भाजपा और संघ के बीच समन्वय का काम देखते हैं। संघ की ओर से बाकायदा उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी गई है। इस भूमिका में आने के बाद से सोनी की भाजपा के फैसलों में दखलंदाजी लगातार बढ़ती रही है।
यहां तक कि वे पार्टी के रोजमर्रा के फैसलों में भी हस्तक्षेप करते रहे हैं। मध्यप्रदेश में तो कहा जाता है कि उनकी मर्जी के बगैर भाजपा में पत्ता तक नहीं हिलता है। प्रदेश की ही पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती खुद तत्कालीन संघ प्रमुख कुप्प सी. सुदर्शन से उनकी कुछ मौकों पर लिखित शिकायत तक कर चुकी हैं।