भोपाल। अध्यापक मोर्चे के संरक्षक श्री मनोज मराठे ने अध्यापक मोर्चे की हड़ताल समाप्ति के बाद से अध्यापको के संगठनो के नेताओ और सरकार के बीच कब-कब सकारात्मक चर्चा हुई? इस चर्चा में किस-किस बात पर सहमति हुई? और किस-किस बात पर सहमति नही बनी ? किस किस दिनांक को चर्चा हुई? चर्चा में कौन कौन प्रतिनिधी शामिल थें? वास्तव में चर्चा हुई या नही इस बात का पत्र लिखकर सूचना के अधिकार के तहत मुख्यमंत्री कार्यालय और पी0एस0 श्री मनोज श्रीवास्तवजी के कार्यालय से जानकारी मांगी गई है।
जिससे इस बात का खुलासा हो जायेगा कि हमारे नेता अध्यापको के साथ कितना सच कितना झूठ बोल रहे है? हमारी भ्रांतिया जो मन में है साफ हो जायेगी अर्थात् दुध का दूध और पानी का पानी।
कोर कमेटी की मीटिंग स्वागत येाग्य कदम
श्री मराठे ने अध्यापक कोर कमेटी द्वारा 9 जून को अध्यापको के आंदोलन की अगली रणनीति को तैयार करने के लिए बुलाई गई बैठक को स्वागत येाग्य कदम बताया और कोर कमेटी के साथ प्रत्येक ब्लाक से कम से कम सभी पदाधिकारी और 50-50 की संख्या में अध्यापको ने शामिल होने की आषा की साथ ही प्रत्येक संगठन के प्रदेष से लेकर जिले व ब्लाक स्तर के सभी पदाधिकारीयों ने इस मिटिंग में बिना कोई बहाना और तेरा मेरा छोड़कर अपनी जिम्मेदारी और अपने परिवार के भविष्य को सामने रखकर अनिवार्य रूप से अपनी जिम्मेदारी निभाये तो कोर कमेटी भी निष्चित समय निष्चित व्यवस्था के साथ प्रत्येक संगठन के पदाधिकारी को उसके प्रतिष्ठा के हिसाब से आमंत्रित करें और प्रदेश के एक एक आम अध्यापक को आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रत्येक जिले के जिला पदाधिकारी को आंदोलन की जानकारी भरा प्रेस नेाट जारी करने के निर्देश दे ताकि मिटिंग व आंदेालन की रूपरेखा सही दिषा में तय हो।
जिससे प्रत्येंक जिले से सरकार को भी यह समाचार पहुचे कि अब अध्यापक पहले से बड़ा आंदोलन करने जा रहे है इसलिए सरकार भी आंदोलन के भय से जैसा कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी स्वयं कह रह है छत्तीसगढ से अच्छा दूंगा के आदेश जारी करें नहीं तो यह आंदोलन छत्तीसगढ़ ही नही अब तक प्रदेश का सबसे बड़ा अध्यापको का आंदोलन होगा।
जैसा कि अध्यापको के सबसे पुराने नेता मुरलीधर पाटीदार घोषणा कर चुके है पर अलग-अलग घोषणा करने की बजाय सभी संगठनो ने 9 जून को एक साथ आकर मोर्चे के बैनर पर आंदोलन करने का निर्णय लेना चाहिए। कही से भी किसी भी प्रकार से अध्यापक संवर्ग के संगठनो ने फूट की बू नही आना चाहिए, नहि तो हो सकता है 2018 तक सिर्फ इंतजार ही इंतजार और अत्याचार ही अत्याचार सहना पड़े। यदि हम संगठीत रहे तो 2018 नही 8 दिन 8 घंटे व 8 मिनट में भी हमें समान कार्य समान वेतन के आदेश मिल सकते है। बस केवल हमारे संगठीत होने की देरी है। ?
महत्वपूर्ण पदो में आखिर शिक्षक ही संविदा क्यों है ?
देश में रक्षा सुरक्षा और शिक्षा के साथ न्याय व्यवस्था महत्वपूर्ण है जहां रक्षा की जिम्मेदारी सेना के पास है तो सुरक्षा पुलिस व न्याय व्यवस्था न्यायालय विभाग के पास है इन तिनों विभागो के लिए योग्य और होनहार अभ्यर्थी तैयार कर शिक्षक ही देता है किंतु इन विभागो ने संविदा पर नियुक्ति न होकर नियमित पदो पर भर्ती की जाती है।
केवल शिक्षकों को ही संविदा तो उससे भी नीचे अतिथि के नाम पर भर्ती कर इतना आर्थिक व नैतिक अपमान क्यों किया जा रहा है इसके लिए भी उच्च स्तर पर चर्चा होनी चाहिए। बहरहाल जो भी हो 15 मार्च के बाद सकारात्मक चर्चाओं का सच्चा झूठा दैार पाटीदार व दूबे जी द्वारा चलाया गया जो 10 मई तक चला जो नकारात्मक सिद्ध हेा रहा है उसके बाद अचानक आम अध्यापको द्वारा आंदोलन के लिए सकारात्मक प्रयास प्रारंभ किये गये जो वास्तव में सकारात्मक होने के साथ साथ फलदायी ही नजर आ रहे है।
संगठनो के नेताओं के लिए यह चेतावनी भी है चाहे वो पाटीदार जी हो, दुबे जी हों, या शर्मा जी। अब भी मोर्चा संभाल लो नही तो आम अध्यापक खुद अपनी लड़ाई लड लेगा और तुम तुम्हारी फूट की खांई में खुद दूर तक नजर नही आओगे। अब आंदोलन तो होगा ही होगा, चाहे इसमें कोई नेता होगा या न होगा।
सरकार भी लग रही है निर्णय के मूड में प्रदेश के मुख्यमंत्रीजी द्वारा हमेशा यह कहते आना कि मैं अध्यापको का वेतन अच्छा करने जा रहा हू तो खरगोन आम सभा के बाद से छतरपूर तक की सभाओं में अध्यापको से मुलाकात के बाद अध्यापक बंधुओं से यह समाचार प्राप्त होना कि मुझे आप लेागों कि फिकर है मेरा पूरा ध्यान है मैं छत्तीसगढ से कुछ अच्छा ही देने जा रहा हूं और इसके आदेश शीघ्र प्रसारित कर दूंगा इससे ऐसा लग रहा है कि हमारी मीटिंगों और आंदेालनो की रणनीति के बाद सरकार भी लग रही है शीघ्र निर्णय के मूड में
‘‘चिरागो की लौ से सितारो की लौ तक कही दूर शाम तो होगी मुसाफिर तुम भी हो मुसाफिर हम भी है फिर भोपाल के आंदोलन में मुलाकात तो हेागी ही होगी ’’
आपका
मनोज मराठे
अध्यापक मोर्चे के संरक्षक
मो. 98266-99484