राजेश शुक्ला/अनूपपुर। लगभग 13 वर्ष पूर्व कांग्रेस शासनकाल में जब आदिवासी और जनजातियों से परिपूर्ण नर्मदा अंचल को जिला बनाया गया था तो सरकार की मंशा थी कि आदिवासियों और जनजातियों को सुलभ और त्वरित न्याय मिल सके, परंतु इस नवगठित जिले का दुर्भाग्य है कि विकास की परिकल्पना काफी दूर है।
जिले की जनता जब से जिला बना है तब से जिले की अधोसंरचना की आश लगाये देख रहा है कि कब अनूपपुर पूर्ण जिला के रूप में अस्तित्व में आयेगा। यहां पर अभी जिला चिकित्सालय, विभिन्न विभागों के जिला कार्यालय और सबसे महत्वपूर्ण मांग रेलवे ओव्हर ब्रिज का इंतजार कर रही है।
इस जिले में दो भाजपा, एक कांग्रेस के विधायक हैं, जिसमें कोतमा और पुष्पराजगढ़ भाजपा के पास हैं एवं जिला मुख्यालय का प्रतिनिधित्व कांग्रेस विधायक व जिले का निर्माता बिसाहूलाल सिंह हैं, प्रदेश में भाजपा की सरकार है और यह सरकार का नारा है कि विकास हमारा काम है, परंतु हालात ये हैं कि सरकार की दूसरी पंचवर्षीय पूरी हो रही है, परंतु जिले में विकास के नाम पर कुछ नहीं है जिसे सरकारी की उपलब्धि माना जाये।
पहले तो यहां कपड़ों की तरह प्रभारी मंत्री बदले जाते थे, जिसपर विराम लगा तो जिसे प्रभारी मंत्री बनाया गया वे छ: माह में एक बार जिले में आकर बैठक कर और अपने साथ आये भाई, भतीजों व पार्टी के लोगों को सरकारी काम दिला कर रवाना हो जाते हैं और पीछे रह जाता है उन्हीं के लोगों का शासकीय कार्य देने की अधिकारियों की कार्यवाही, वहीं लोग यह मान रहे हैं कि प्रभारी मंत्री की बैठकों का औचित्य केवल शासकीय कार्यक्रमों में आकर सिर्फ कोरम पूरा करना मात्र है।
अगर हम जिला योजना समिति की पिछली बैठकों के प्रस्तावों पर कार्यवाही की प्रगति देखें तो प्रभारी मंत्री ने बैठक की अध्यक्षता करते हुये जिला चिकित्सालय और रेलवे ओव्हर ब्रिज के निर्माण हेतु सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर दिया तथा अधीनस्थ कर्मचारियों को पंद्रह दिवस के अंदर कार्यवाही का निर्देश दिया था, परंतु छ: माह बीत जाने के बावजूद भी बात वहीं की वहीं है, ऐसा लगता है कि जिले के अधिकारी प्रभारी मंत्री की बातों को कोई तबज्जो नहीं देते हैं, नहीं क्या मजाल कि जिस कार्य योजना समिति में लाकर समय सीमा में पूरा करने की बात कह जाये उसे अधिकारी न करें, कहीं न कहीं यह प्रभारी मंत्री की अक्षमता को दर्शाता है।
जिला मुख्यालय में लगभग 20 हजार जनता निवास करती है। जहां विद्युत सप्लाई व्यवस्था शहरी क्षेत्र और ग्रामीण क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। अटल ज्योति का सही परिणाम जिले में ही दिखाई पड़ता है, कब और कितने देर तक बिजली बंद रहे कोई गारंटी नहीं है, यहां पानी सप्लाई व्यवस्था नगरपालिका द्वारा की जाती है । पुरानी बस्ती स्थित दुलहा तालाब से केवल एकमात्र बोर से सप्लाई व्यवस्था संचालित है।
आलम यह है कि लोगों को चार-चार दिनों तक केवल दस से पंद्रह मिनटों के लिये मिलता है जिससे जनता अपनी प्यास बुझा रही है। जिले के लोग जिला बनने के बाद जिले के विकास में जिला चिकित्सालय का न होना व मुख्यालय में उत्कृष्ट विद्यालय के अलावा कमजोर बच्चों के लिये कोई अतिरिक्त हायरसेकेण्ड्री ना होना यह सरकार की विकास को चिढ़ा रहा है कि आदिवासी बाहूल्य जिले में शिक्षा और चिकित्सा जैसी महत्वपूर्ण मूलभूत सुविधाओं को ना दे पाना यह सरकार और पार्टी से जुड़े जनप्रतिनिधियों की अक्षमता का प्रतीक है।
इन्हीं मूलभूत सुविधाओं के कारण कोई इस जिले में रहना नहीं चाहता लोग दूसरे जिलों से अप-डाऊन कर कार्यालयों में कार्य कर रहे हैं। शाम ५ बजे के बाद पूरा जिला अधिकारियों से खाली हो जाता है। इसका कारण यहा पर एक भी ऐसी शैक्षणिक संस्था ढंग की नहीं है, जहां पर बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जा सके। जिला बनने के बाद लोगों को आशा थी कि यहां पर केंद्रीय विद्यालय खुल जायेगा, परंतु जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के कारण वह भी नहीं खुल सका। ऐसा कोई विद्यालय नहीं है जहां सी.बी.एस.सी. पैटर्न की शिक्षा लागू हो, जबकि यहां पर रेलवे, बैंक, कॉलरी और शासकीय राज्य सरकार के कर्मचारी हैं। परंतु ये सभी अपना परिवार यहां नही रख पा रहे हैं। और जो लोग हैं वह भी परेशान है कि बच्चों को अच्छी शिक्षा कैसे दें। मुख्यालय से लगभग दो सौ बच्चे प्रतिदिन दूसरे जिले में पढाई करने जाते हैं ५० कि.मी.तक प्रतिदिन आवागमन करने के बाद इन नौनिहालों की हालत क्या होती है ये इन बच्चों से पूछिये पर इस ओर ध्यान देने वाला कोई नहीं है।
जिले में जमुना कॉलरी को छोड़ दें तो एक भी खेल मैदान नहीं है, जहां राज्य स्तरीय टूर्नामेंट और खेल आयोजन कराये जा सकें। नक्सल प्रभावित जिला घोषित होने के बाद भी इस जिले को खेल आयोजनों से दूर रखने का औचित्य समझ में नहीं आता और इसमें कोई सार्थक पहल भी दिखाई नहीं पड़ती। समस्याओं का अंबार लगा हुआ है। स्वमेव हो रहे विकास कार्यो के बीच आम आदमी घोषणाओं और बैठकों का दौर भी देख रहा है पर प्रशासन की गंभीरता और विकास कार्यो के प्रति उदासीनता के बीच आज भी यह आदिवासी जिला जहां था वहीं खड़ा है।
छत्तीसगढ़ सीमा से लगा होने के कारण और नक्सल प्रभावित होने के कारण ना सिर्फ प्रशासनिक अधिकारी वरन जनप्रतिनिधियों को भी अधिक जिम्मेदारी से काम करना चाहिये । गांवों के साथ-साथ नगर और कस्बों के लिये कार्य योजना बनाई जानी चाहिये, यहां पदस्थ अधिकारी स्वयं ही सारे निर्णय करके अव्यवस्था पैदा कर रहे हैं। उदाहरण स्वरूप नगर पालिका अनूपपुर के परिसीमन के प्रस्ताव अभी तक अधर में लटका हुआ है। नपा अधिकारियों ने नवीन परिसीमन के लिये मुख्यालय से जुड़े नौ गांव को नगरपालिका सीमा में जोडऩा चाहते है जिसमें दमना, सकरिया, बैरीबांध, परसवार, करहीबाह, सीतापुर, बरबसपुर, हर्री एवं बर्री को जोड़कर नगर की सीमा को बढ़ाना चाह रहे हैं, परंतु सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अभी इस प्रस्ताव को राजधानी नहीं भेजा गया है, जबकि इन गांवों को नगरपालिका की सीमा में ना जोड़कर इसे पूर्वत ही रखा जाये। और इस संबंध में नगर के लोगों से चर्चा कर ही कुछ किया जाये।
छ:-छ: माह की अवधि में योजना समिति की बैठक करने की शासन द्वारा योजना होगी पर प्रभारी मंत्री इस बीच में जिले में घटनायें और योजनाये छ: माह का इंतजार नहीं करती। इस बीच हजारों लोग अपनी समस्या और पीड़ा लेकर कहॉ जायें। जनसुनवाई और अधिकारी से समस्या पूरी तरह हल नहीं होने पर उसे जिले के प्रभारी मंत्री से मिलने के लिये छ: माह का इंतजार कठिन है।
नई बैठक से पहले मंत्री जी को पिछले बैठक के प्रस्तावों में प्रगति और उसके क्रियान्वयन का परीक्षण भी करना जरूरी है ताकि जान सके कि यहां कितना विकास हो रहा है। इसके साथ ही प्रभारी मंत्री को जिले की जनता से मिलने का समय भी देना चाहिये ताकि जनता उनसे अपना दुख दर्द बता सके। तभी सही मायने में यह जनता की सरकार होगी अन्यथा सब बेईमानी है।