प्रवीण दुबे। शिवराज जी के ताज़े जवान हुए पुत्र कार्तिकेय भी राजनीति में पदार्पण करने वाले हैं। अभी "लर्निंग लायसेंस" के लिए आवेदन किया है। ठीक-ठाक बोल लेते हैं। वाणी में ओज न के बराबर है लेकिन थोड़े तार्किक हैं।
बहुत चुपके से शिवराज जी ने उन्हें लांच किया है। कोई प्रचार नहीं, कोई ताम-झाम नहीं....खुद भी शिवराज उनकी पहली सभा में नहीं गए क्यूंकि आडवाणी प्रकरण के फ़ौरन बाद बेटे की लौन्चिंग के मायने कई तरह से निकाले जा सकते थे। हालांकि चार ख़ास सिपहसालारों को भेजा, जिन्हें अपनी अनुकम्पा से उन्होंने राज्य मंत्री का दर्ज़ा दिया हुआ है। वे मोबाइल से सी एम् हाउस को सुनाते रहे कि "बाबा" का भाषण कैसा है।
यहाँ सी एम् हाउस के दरबारी भी "साहब" को इत्मीनान कराते रहे कि "सर, बाबा में बहुत क्षमता है " कुल मिलाकर पहले मैच में बाबा को "हंड्रेड नॉट आउट" करार दे दिया गया। वैसे मुझे कतई इस बात को लेकर आपत्ति नहीं रही है कि राजनीति में परिवारवाद क्यूँ...? अरे जब संपेरे का बेटा बचपन से सांप पकड़ता है, नट का बेटा रस्सियों पे चलता है, पंडितो-पुजारियों का बेटा सस्वर संस्कृत में श्लोक पढता है, तो सी एम् का बेटा यदि राजनीति में आ रहा है तो बुराई क्या है..? मेरी तरफ से तो स्वागत है "छोटे शिवराज जी" आपका....।