राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारतीय जनता पार्टी की जल्दी होने वाली कार्यकारिणी यदि प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का नाम घोषित करे और वह नाम लालकृष्ण आडवाणी हो तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। उसकी पृष्ठ भूमि तैयार हो चुकी है जो थोड़ी बहुत कोरकसर थी वह ग्वालियर में खुद आडवाणी ने और जनता दल यू ने पूरी कर दी है ।
ग्वालियर में आडवाणी ने नरेंद्र मोदी और शिवराज सिंह की तुलना करके अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की । इस तुलना का अर्थ भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने कुछ यूँ लिया है- उनका मानना है कि आडवाणी का प्रमाणपत्र किसी भी चुनाव को जिताने का रामबाण नुख्सा है । पहले यह गुजरात में उपयोग किया गया अब मध्यप्रदेश में इसका उपयोग होगा ।
यहाँ तक तो बात ठीक है । पर इसके आगे की बात कुछ सीधी नहीं है,जिसकी प्रतिध्वनि यह निकलती है कि "नरेंद्र मोदी को तो सम्पन्न राज्य मिला था " "शिवराज ने विकास किया है "। मोंटेक सिंह अहलुवालिया के वाक्य को दोहराने के पूर्व कुछ आंकड़े देख समझ लिए जाते तो बेहतर था। अवर्षा ,बेरोजगारी, भूख से व्याकुल बुन्देलखण्ड में 'रियो और टिंटो' के खेल के पीछे के मंसूबे समझे जाते .गेहूं की खरीदी को लेकर चिल्लाते प्रतिपक्ष की आवाज़ को सुना जाता , महिलाओं की दुर्दशा पर सडक पर लगे बैनर देखे जाते तो अच्छा होता । ख़ैर ।
शायद यह सब इसीलिए हो रहा है कि लक्ष्यपूर्ति का साधन कैसे तय हो। गुजरात उपप्रधानमंत्री बना चुका है , मध्यप्रदेश से इस तरह की चुनौती कभी बने उसके पूर्व नरेंद्र मोदी के बहाने सबक और प्रस्तावक पक्का । जद यू भी खुश और मैं भी खुश ।
