राकेश दुबे प्रतिदिन। और बड़े बे आबरू होकर, राजीव शुक्ला ने इस्तीफा दे दिया। विरोध स्वरूप तो अजय शिर्के और संजय जगदाले ने इस्तीफा दिया था। अरुण जेटली तो किसी और ही मिट्टी के बने हैं लेकिन, श्रीनिवासन तो बेशर्म के पौधे से निकले किसी पदार्थ से बने है, डटे है पूरा बोर्ड घर चला जाये, हम टस से मस नहीं होंगे। भारत में कुछ नई परम्पराएँ निर्मित हो रही है। दामाद मजे कर रहे हैं। बेटे बेटी ज्ञान बाँट रहे हैं। सास हो या ससुर, दामाद को बचाते हैं राजनीति का मैदान हो या क्रिकेट का, ख़ैर !
यहाँ खेल दूसरा है, बोर्ड के अफसरों में सब सचिन तेंदुलकर तो नहीं है जिन्हें शर्म आ जायें। यह खेल कोई आज से नहीं चल रहा है। मध्यप्रदेश के शहर इंदौर में पानी पत्रे के सट्टे का विकल्प क्रिकेट का सट्टा बना और पहले कुछ और अब बहुत से खिलाडी इस खेल में शामिल है, दुकानों पर कम अब संसदीय प्रतिष्ठानों में भी उनका दबदबा है और इस धंधे में ज्यादा मुनाफा है। इस कारण जीवन में जिनने खेल के मैदान की सूरत नहीं देखी। वे किसी-न-किसी खेल संघ के सर्वेसर्वा हैं।
यह सब खेल के नाम पर कलंक है। देश में खिलाडी अपने मेडल बेचकर अपना गुजारा करते हैं ऐसे किस्से अख़बारों में छपते है, देसी खेलों की गला घोंटती खेल नीति तैयार होती है, गडबडी होने पर रस्म अदायगी के लिए जेल फिर सम्मान सहित वापिस खेल। इस बार पांसा उल्टा बैठा है, अब तेरा क्या होगा श्रीनिवासन ?