अब तो खुला कर दो देह व्यापार तभी रुकेगे बलात्कार...?

हर रोज मासुम नाबालिग बच्चियों के साथ हो रहे बलात्कार और उसके बाद उनकी हत्या के प्रयास दिल दहला रहे है दुध पीती बच्चियों के साथ दुष्कर्म की घटनाओ ने आज हमारे सभ्य समाज को कटघरे में खडा कर दिया है यह वही समाज है जो वेश्यावृती और देहव्यापार को तो गलत मानता है मगर महीलाओ के छोटे होते कपडो को सही मानता है,
जो आधुनिकता की अंधी दौड मे दौडने वालों को तो सम्मानित करता है मगर पौराणिक सभ्यता और हमारी सभ्य शालिन संस्कृति पर उगंलिया उठाता है...। आज स्थिती यह है कि हर रोज एक मासुम का बलात्कार होता है और हमारा सभ्य समझदार कहलाने वाला समाज बस मोमबत्तीया जला कर इतिश्री कर लेता है और सरकारे कठोर कदम उठाने की बात कह कर मामले को शांत कर देती है ये घटनाक्रम हर बलात्कार के बाद होता है मगर नतिजा सीपर का सीपर होता है हमे ये बात समझ में नही आती है कि जब आदमी को भुख लगती है तो खाना घर पर न मिले तो बाजार में खरीद कर खा लेता है प्यास लगे तो घर में पानी न हो तो बाजार से खरीद कर पी लेता है फिर काम वासना की भुख को शांत करने का कोई माध्यम घर में या बाजार में नही होगा तो आप ही बताओ इसके बाद क्या होगा...? 

वही होगा जो अभी हो रहा है क्योकि आज पुरे बाजार काम वासना से भरे पडे है तरह तरह व्‌यंजनो के भांति काम वासना बढाने वाले सामानो से टी.वी. सिनेमा और आधुनिक समाज भरे पडे है...। जब टीवी पर किसी चीज का आकर्षक विज्ञापन आता है तो वो सामान बाजार में आसानी से उपलब्द हो जाता है जिसे आदमी खरीद कर अपना काम चला लेता  है लेकिन जब टीवी के विज्ञापनो, सिनेमाओ और सभ्य समाज में अद्र्धनंगे बदन लिए लोग आते है और लोगो की काम वासना बढाने का कृत्य करते है तब ऐसी कोई भी चीज या सामान बाजार में नही मिलता जिसे काम वासना से पीड़ित व्यक्ति खरीदे ले...? 

फिर वही सब कुछ होता है जो हो रहा है... आधुनिकता और पाश्चात संस्कृति को बढावा देने वाला यह सभ्य समाज आधा अधुरा काम करता है जो नग्नता को तो बढावा देता है मगर वेश्यावृत्ती और देहव्यापार को गलत मानता है और फिर ये भी न्याय संगत बात नही की किसी भुखे के आगे आप गुलाब जामुन की थाल लेकर धुमों और वो जामुन बाजार में खरीदने पर भी न मिले...? मेरी ये बात शायद सभ्य समाज के कथित समाज सेवीयो को सही न लगे मगर वास्तविकता यही है जिसे कोई झुठला नही सकता...। क्योकि भुखे शेर को तो देख कर हमला करने से पहले आप मार सकते हो मगर काम वासना के भुखे भेडिये को आप पहचान तो ठीक शिकार करने से पहले मार भी नही सकते हो... ऐसे में और कोई रास्ता हो तो आप ही बता दो ताकि इन मासुम बेटियो को बचाया जा सके इन काम वासना के भुखे भेडियों से...।

“जब भी किसी मासुम का बदन छल्ली होता है दिल मेरा बड़ा रोता है और यह कहता है कि यही सभ्य समाज की पहचान है आफत में मासुम बच्चियों की जान है आज इंसान कम ज्‌यादा हैवान है कब रुकेगा ये सिलसिला क्या किसी जबावदार के पास कोई ठोस जवाब है... हो तो दो जवाब आज, क्योकि अब बर्दाश्त होता नही हैवानियत का ये नंगा नाच है...?

उमेश नेक्स
रिपोर्टर मो.
9424538555











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