भोपाल। बैंक से चेक बाउंस होने पर अब आरोपी को अदालत में नहीं घसीटा जा सकेगा। सरकार जल्द ही नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट में संशोधन करने जा रही है। इसके बाद बैंक चेक बाउंस मामलों में आरोपी को अदालत में नहीं घसीट सकेगा। इस तरह के सभी मामलों का निपटारा लोक अदालतों के तहत होने वाले सेटलमेंट, आर्बिट्रेशन के जरिए होगा।
ऐसा अनुमान है कि देश भर की अदालतों में लंबित मामलों में से 30 फीसदी से ज्यादा चेक बाउंस या ट्रैफिक चालान से जुड़े हैँ। इनकी तादाद में कमी लाने के लिए यह कदम उठाया जा रहा है।
एक्ट में बदलाव को लेकर कानून मंत्रालय, वित्त और परिवहन मंत्रालयों के साथ विचार-विमर्श कर रहा है, ताकि इन दोनों श्रेणियों के तहत आने वाले मामलों को अदालत में न भेजा जाए। अगर ऐसे किसी मामले में आपराधिक मंशा शामिल हैं तो वह जरूर अदालत में ले जाया जा सकता है।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि सभी चेक बाउंस के मामले अपराधिक नहीं होते। अगर अकाउंट में चेक काटने जितनी राशि नहीं है और इसके बावजूद चेक देते हैं तो यह मामला अपराधिक श्रेणी में रखा गया है। सरकार ने इस कानून का बैंकों और वित्तीय संस्थानों की ओर से दुरुपयोग किए जाने के आरोप को भी गलत ठहराया है।
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए हलफनामे में केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने कहा था कि बैंकों की पहली प्राथमिकता अदालत में जाए बिना विवाद को समझौते के आधार पर निपटाने की रहती है।
वित्त मंत्रालय ने निगोशिएबल इन्स्ट्रूमेंट एक्ट, 1881 की धारा 138 को असंवैधानिक करार देने की मांग वाली याचिका के जवाब में कहा कि अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए संसद ने 1988 में अधिनियम में संशोधन कर चेक बाउंस को अपराध की श्रेणी में लिया गया। मगर सभी चेक बाउंस अपराध की परिधि में नहीं आते।