राजेश शुक्ला/अनूपपुर। नया शिक्षण सत्र 17 जून से प्रारंभ हो रहा है। इसके लिये प्रदेश भर में राज्य शिक्षा केन्द्र व इससे संबंधित विभागों ने प्रवेश उत्सव मनाने की तैयारी कर रहे हैं। इस सब से अनभिज्ञ उच्च अधिकारी की विद्यालय खोलने के पूर्व यहां पर भृत्य से लेकर प्राचार्य तक के पद स्कूलों में खाली पड़े हैं, उन्हें भरने की जल्दी नहीं है, बल्कि मुख्यमंत्री को दिखाने के लिये व सरकार के पैसे की होली खेलने के लिये तैयारी कर ली है
किंतु इन्होंने अभी तक उन पुराने अनुभवों से सबक नहीं लिया है जहां पर एक भी शिक्षक स्कूलों में नहीं हैं। अतिथि शिक्षकों के दम पर विद्यालय चल रहे थे और इस प्रवेश उत्सव में उन विद्यालयों के ताले भी नहीं खुलेंगे। तब यह प्रश्न वाजिब है कि सरकार के नुमाइंदे प्रवेश उत्सव क्या कागज में मनायेंगे।
आज से नया शिक्षण सत्र प्रारंभ होगा जिसकी तैयारी शिक्षा के संबंधित सभी विभागों ने कागजों में कर ली है, परंतु अभी तक स्कूलों में पूरे शिक्षक, बच्चे व उनके पाठ्यक्रम से जुड़ी किताबों का अता-पता नहीं है और ना ही स्कूल में लगने वाले बच्चों के कपड़ों का भी दूर-दूर तक निशान दिखाई नहीं पड़ रहा है, परंतु सरकार में वातानुकूलित कक्ष में बैठे लोग योजनाएं बनाकर जिलों में भेज दिया हैं, उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं है कि विद्यालयों में किन चीजों की कमी से विद्यालय सुचारू रूप से संचालित नहीं हो पा रहे है और ना ही मूलभूत सुविधाओं का भी पता है। वहीं अधिकारी हर साल की तरह इस बार भी वहीं रटारटाया जवाब दे रहे हैं कि शीघ्र ही व्यवस्था को पटरी पे लाया जायेगा, परंतु कई वर्ष हो गये देखते यह शिक्षा व्यवस्था आज तक पटरी पर नहीं आ सकी और सत्र 2013—14 में भी कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है।
किताबें ना शिक्षक फिर कैसा प्रवेश उत्सव
सरकार चाहती है कि प्रवेश के साथ ही बच्चों को स्कूली वस्त्र, किताबें और बैग उन्हें देकर स्कूल आने के लिये प्रोत्साहित करें ताकि बच्चे स्कूल आने से ना हिचकिचायें, किंतु शासन में बैठे लोग इन चीजों से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं। इस सत्र में अभी तक शासन की ओर से जिले में किताबें, बच्चों के कपड़े व अन्य सामाग्री नहीं पहुंची है। इस बात की जानकारी शायद उन अधिकारियों को भी मालूम है जिन्हें इनकी जिम्मेदारी सौंपी गई है। और यह बात गत दिनों वीडियो कान्फ्रेसिंग के द्वारा दी गई समीक्षा में भी आई थी । शासन द्वारा सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों को नि:शुल्क पुस्तक देनी है, परंतु अनूपपुर सहित २० जिले शामिल हैं जहां किताबें नहीं पहुंची है।
बिना शिक्षक के होगा प्रवेश उत्सव
जिले में नजर डाले तो प्रथम श्रेणी प्राचार्य के २ पद हैं वो भी पूर्णत: खाली है। इसी तरह से हायरसेकेण्ड्री में ५२ प्राचार्य की जगह २६ की ही नियुक्ति है। हाईस्कूल में ६० की जगह ४६ पद भरे हैं। इतना ही नहीं विषय विशेषज्ञ शिक्षकों की भी कमी है जिसमें ५६ व्याख्याता, १३० प्रधानाध्यापक, ३७ सहायक शिक्षक और इससे कई गुना अध्यापकों की भी जगह खाली है तो फिर कैसे पूरी होगी भविष्य के निर्माताओं की शिक्षा? ऐसी दशा मे यह माना जा रहा है कि विद्यालयों मे पहुंचने वाले बच्चो को राज्य शिक्षा केन्द्र व इनके नुमांइदो द्वारा पूर्व योजना के तहत छले जाने की तैयारी की है।
पूर्व के ये थे हालात
जानकारी के मुताबिक सर्वशिक्षा अभियान द्वारा बीते वर्ष जिले के विद्यालयों को दिये गये सायकल, गणवेश की राशि शत् प्रतिशत छात्रो को आज तक नही मिल सकी थी । जिसका सबसे बड़ा कारण बैंको मे इन राशियों के चेको का क्लीयरेन्स न होना बताया जा रहा था। बीते वर्ष हुये शिक्षकों के समस्त प्रशिक्षणों का मानदेय भी शिक्षको को प्राप्त नही हुये थे। सर्वशिक्षा अभियान द्वारा जिले भर में विद्यालयों की मूलभूत सुविधाओं को दुरूस्त करने अतिरिक्त कक्ष, शाला भवन, शौचालय, किचनशेड, बांउन्ड्रीवाल इत्यादि आधे अधूरे बनकर आज भी जहां कमीशन की भेट चढे है वहीं आदिवासी जिले के विद्यालय अपनी व्यथा पर आंसू बहाने पर मजबूर है।
मॉनीटरिंग के नाम पर भरी जायेगी जेबे
बच्चों को पाठ्यक्रम से जुड़ी किताबे मिले या न मिले, शिक्षक विद्यालयो में पर्याप्त हो या ना हो, विद्यालयों की मूलभूत सुविधाएं दुरूस्त हो या ना हो, सायकल, गणवेश वितरण हुआ हो या ना हुआ हो इन गंभीर विषयों से परे मिशन मे जुडे अधिकारी, कर्मचारी आज से नये शिक्षणसत्र के प्रवेशोत्सव की मॉनीटरिंग के नाम पर अपनी जेबे भरेगे। मॉनीटरिंग के नाम पर बंद गाडियो में बैठे बैठे इनके द्वारा कोरम पूरा कर लिया जायेगा।
ऊपर से नीचे तक के लोगो ने क्या किया
स्कूल शिक्षा विभाग के ऊपर से नीचे तक के अफसरो ने पूरे साल क्या किया, यह किसी से छिपा नही है। जब पहले से ही पता था जून में नया सत्र शुरू होगा तो तैयारियां क्यो नही की गई। राज्य सरकार का सत्र को लेकर अंधा जोश इस बार भी कम नही हुआ जिसे केवल शासकीय औपचारिकता ही मानी जायेगी।
मजाक नही तो और क्या है?
हद हो गई व्यवस्था की जहां राज्य सरकार शिक्षा को सुधारने का हल्ला मचा रही है वहीं कई स्कूलो मे अतिथि शिक्षको के हाथो में पूरे स्कूल की बागडोर दे दी गई है। जहां पाठ्यक्रम संबंधित किताबों को शत् प्रतिशत प्रदाय नही हो पाया है, शिक्षको की कमी है ऐसी दशा मे नये सत्र को प्रांरभ करना बच्चो के साथ मजाक नही तो और क्या है। देखना यह है कि कब तक शिक्षा विभाग की रेल व्यवस्थित पटरी पर दौड़ती है।