आफत में भी सियासत

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राकेश दुबे@प्रतिदिन। बहुत ही भद्दी कहावतें है, मतलबपरस्तों के लिए और वह मतलब चुनाव हो तो और नीचे उतर जाते हैं वे लोग, जो राजनेता कहलाते हैं। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने आज जो फरमान जारी किया है, वह इसी श्रेणी में रखा जायेगा। बहुगुणा जी का फरमान है कि "उत्तराखंड में किसी भी प्रकार की सहायता के लिए उनकी अनुमति आवश्यक है।

"यह सब उन्होंने नरेंद्र मोदी, शिवराज सिंह और रमनसिंह सरकारों द्वारा की गई घोषणा के बाद किया है। गुजरात, मध्यप्रदेश , छत्तीसगढ़ ने अभी भी अपने हेलीकाप्टर और हवाईजहाज उपलब्ध कराए थे। ये सब सरकारें है और इनका दायित्व है आपदा में फंसे हर भारतीय की मदद।

सच मायने में देश में जब-जब कोई प्राकृतिक सबसे पहले सेना और फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बिना किसी भेदभाव के आपदा से संघर्ष किया है। वोट के लिए  हर त्रासदी को राजनीतिक दलों ने भुनाया था और अभी भी भुना रहे हैं। जैसे भोपाल गैस त्रासदी।

सरकार का इन्ही कारणों से भारत में सरकार का स्वरुप प्रायवेट लिमिटेड कम्पनी सा होता जा रहा है। प्रजातांत्रिक ढांचा तो लगभग समाप्त होता जा रहा है। बहुगुणा का यह आदेश एक पृथकता वादी आदेश है आफत में पड़े व्यक्ति की सहायता तो एक पवित्र कार्य होता है उसे राजनीतिक  रंग देना ठीक नहीं। यही से पृथकता के बीज का रोपण होता है और यह क्षेत्रीयवाद तो सब के लिए घातक  है। इससे चुनाव जीता जा सकता है दिल नहीं।


  • लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रख्यात स्तंभकार हैं। 
  • संपर्क  9425022703 
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