उत्तराखंड:विकास-मॉडल के मुंह पर तमाचा है यह

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राकेश दुबे@प्रतिदिन। उत्तराखंड की इस गाथा के पीछे विकास का वह मॉडल है, जो अधिकाधिक प्राकृतिक दोहन को विकास मानता है। हिमालय सदियों से है, ऐसा इतिहास और भूगोल प्रमाणित करता है।

हिमालय के टूटने ,बिखरने और पिघलने के भी अनेक वर्णन  अनेक किस्सों, कहानियों और प्रमाणिक लेखों में उपलब्ध हैं। इतिहास में ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है,वर्ष 1991, और वर्ष 1998 की घटनाएँ अभी ताज़ी है, परन्तु प्रकृति ने अपना इतना विकराल रूप तब नहीं दिखाया था। विकास की बयार और उसकी प्रतिशत में गणना से, उत्तराखंड में सडकों और टनलों की भरमार हो गई। कई आन्दोलन, ज्ञापन, धरने हुए लेकिन सड़क और टनल बांध नही रुके। देश प्रदेश के साथ इस विधि में निजी विकास भी तेज़ी से हुआ।

सारे नक्शे को उठाकर देखिये, प्राकृतिक प्रवाह अविरल होता तो क्या ऐसा होता ? यह सही है कि ऋतु चक्र में भी परिवर्तन आया है। जून के पहले पखवाड़े में कभी इतनी वर्षा नहीं हुई, प्रकृति के इस अपराध के मुकाबले नदियों और नालों को पाट कर बनाये गये भवन और बाज़ार की अनुमतियाँ बड़े अपराध हैं और उस बड़ा अपराध जमीन की अंधाधुध खुदाई है। सरकार तो किसी की सुनती नहीं है नियंत्रक महालेखापरीक्षक ने भी कहा था, उन्हें नहीं मानना था नहीं माना।

सोनिया गाँधी ने सांसदों की गैरत को ललकारा है और कहा है कुछ कीजिये, गैरतदार लोग जो देश को समझते है भगवा आतंकवादी की उपमा को नकारते हुए सबसे पहले पहुंचे हैं। सांसद, विधायक सोनिया गाँधी के कहने पर आर्थिक मदद दे देंगे। बडबोले कांग्रेस के पदाधिकारियों के श्रमदान के लिए भेज देना चाहिए। सच मानिये यह विकास का पैमाना तय  करने का भी यही समय है।

  • लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रख्यात स्तंभकार हैं। 
  • संपर्क  9425022703 
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