शिवराज सरकार को हाईकोर्ट ने लताड़ा: बंद करो आपदा प्रबंधन और फंड सेना को ट्रांसफर कर दो

जबलपुर। उत्तराखण्ड में फंसे लोगों को तत्काल सहायता न मिल पाने पर हाईकोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र व मप्र सरकार के रवैये को आड़े हाथों लिया। एक्टिंग चीफ जस्टिस केके लाहोटी और जस्टिस सुभाष काकड़े की युगलपीठ ने कहा- ‘लोगों की मदद के लिए सेना ही लगाना है तो इसके लिए बने आपदा प्रबंधन को तत्काल बंद कर देना चाहिए और उसका जो भी फंड है, वह सेना में ट्रांसफर कर देना चाहिए।’

युगलपीठ ने केंद्र व मप्र सरकार को कहा है कि वह उतराखण्ड में फंसे लोगों के संबंध में विस्तृत रिपोर्ट एक सप्ताह के भीतर पेश करे। मामले पर अगली सुनवाई 8 जुलाई को होगी।

मध्यप्रदेश के प्रख्यात हिन्दी अखबार दैनिक भास्कर में 21 जून के अंक में ‘अब गुस्से के बादल फटे’ और ‘बदइंतजामी में बही राहत’ शीर्षक से प्रकाशित समाचारों को जनहित याचिका का दर्जा देकर हाईकोर्ट उन पर सुनवाई कर रहा है। शुक्रवार को हुई सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता आरडी जैन और अतिरिक्त महाधिवक्ता पुरुषेन्द्र कौरव हाजिर हुए।

उन्होंने युगलपीठ को बताया कि 27 जून तक मिले आंकड़ों के मुताबिक जितने लोग मप्र से उतराखण्ड गए थे, जिनमें से 2652 वापस लौट चुके हैं। अभी 1114 लोग उतराखण्ड में फंसे तो हैं, लेकिन वो पूरी तरह से सुरक्षित हैं। इसके अलावा 683 लोग लापता हैं, 32 लोगों की मौत हो गई और 9 लोग घायल हैं।

यह पूरे देश के लिए शर्मनाक है

दैनिक भास्कर में ‘लाशों को कुत्ते नोच रहे और महिलाओं को वहशी’ शीर्षक से प्रकाशित खबर का हवाला देकर युगलपीठ ने यह भी कहा- ‘खबरों से स्पष्ट है कि त्रासदी में फंसे लोग किस तरह के संकट का सामना कर रहे थे। इस प्रकार की घटना पूरे देश के लिए शर्मनाक है। भगवान का शुक्र कीजिए कि आपदा प्रबंधन के नाम पर एसी रूम में बैठने वाले लोग वहां नहीं थे, अन्यथा उनको पता चलता कि उतराखण्ड में फंसे लोगों पर क्या बीती होगी।’

क्या कलेक्टर भी नहीं सुनते सरकार की

मप्र सरकार की रिपोर्ट देखने के बाद युगलपीठ ने कहा कि उसमें छतरपुर, सतना, राजगढ़ और अशोक नगर से उतराखण्ड गए लोगों के बारे में कोई जानकारी नहीं है। युगलपीठ ने कहा-‘हमने सरकार से मध्यप्रदेश से गए लोगों की जिलेवार सूची मांगी थी, लेकिन चार जिलों से रिपोर्ट न आने का आशय यही है कि वहां के कलेक्टर सरकार की ही नहीं सुन रहे हैं।’ युगलपीठ ने यहां तक कहा-‘त्रासदी के दौरान लोगों की सुनने वाला स्थानीय लोगों के अलावा और कोई नहीं था। जब चौथे दिन प्रधानमंत्री वहां पहुंचे, तब सेना लोगों की मदद के लिए लगाई गई।’

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