भोपाल। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक ने रीयल एस्टेट रेग्यूलेटरी बिल को मंजूरी दे दी है। उम्मीद की जा रही है कि ये बिल संसद के मानसून सत्र में पास हो जाएगा। 22 राज्यों ने तो बिल के मसौदे को पहले ही मंजूरी दे दी है। इसके अलावा पांच राज्यों ने कुछ संशोधन सुझाए थे जिन्हें मान लिया गया है।
केवल छत्तीसगढ़ ने इस बिल को मंजूरी नहीं दी है। इस बिल के अनुसार हर राज्य को रीयल एस्टेट रेग्यूलेटर निकाय गठित करना होगा।
बिल्डरों के खिलाफ शिकायतों के शीघ्र निपटारे के लिए रीयल एस्टेट अपील ट्राइब्यूनल का गठन भी इस बिल के जरिए किया जाना है। उच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश या सेवा निवृत्त न्यायधीश इस ट्राइब्यूनल का मुखिया होगा।
बिल्डरों के लालच ने इस सेक्टर को मनमानी और फरेब का अड्डा बना लिया है। समय पर मकान का कब्जा न मिलने से खरीददार सबसे ज्यादा परेशान रहते हैं। इन दोनों शिकायतों से इसके जरिए मुक्ति मिलने की उम्मीद की जा सकती है।
एक नियामक, अनेक फायदे
मकानों के कब्जे में निलंबन का सबसे बड़ा कारण यह है कि बिल्डर एक प्रोजेक्ट को शुरू कर खरीददारों से अग्रिम किस्त लेकर जमा राशि को दूसरे प्रोजेक्ट में लगा देते हैं खासकर जमीन खरीदने में लेकिन इस कानून के लागू होने के बाद से बिल्डरों को दूसरे प्रोजेक्ट में पैसा लगाना टेढ़ी खीर हो जाएगा।
अब एक प्रोजेक्ट में बेचे गए मकानों का 70 फीसदी हिस्सा एक अलग बैंक खाते में जमा कराना बिल्डरों के लिए अनिवार्य हो जाएगा। यानी अब बिल्डर एक प्रोजेक्ट का पैसा दूसरे में नहीं लगा पाएंगे और समय पर प्रोजेक्ट पूरा करना उनकी मजबूरी हो जाएगी।
इसके अलावा अगर बिल्डर निर्धारित समय पर मकान के खरीददारों को कब्जा नहीं दे पाता तो इस कानून में भारी जुर्माने का प्रावधान किया गया है। खरीददारों को यह अधिकार दिया जा रहा है कि परियोजना के विलंब होने की स्थिति में वह बिल्डर से ब्याज समेत मूल धन वापस ले सकता है।
इस कानून के अमल में आने के बाद से ही बिल्डरों के लिए ये अनिवार्य हो जाएगा कि वो प्रोजेक्ट लांच करने के पहले नियामक के यहां उसका पंजीकरण कराएं। इसके लिए उन्हें पहले वैधानिक मंजूरी भी लेनी पड़ेगी। यानी पंजीयन और वैधानिक मंजूरी के बाद ही कोई प्रोजेक्ट शुरु हो पाएगा।
आजकल जयपुर, इंदौर जैसे शहरों में भी कृषि भूमि को प्लाट बनाकर बेचने का धंधा चरम पर है। ऐसी हेराफेरी से खरीददारों को अब मुक्ति मिल जाएगी। दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में भ्रामक सूचनाओं के आधार पर बेचे गए मकानों की पुनरावृत्ति नहीं होगी।
इस कानून के बाद बिल्डरों को नियामक को सारी जानकारी देनी होगी। निर्माण से पहले प्रोजेक्ट से संबंधित सारी जानकारी जैसे ले आउट, कारपेट एरिया, फ्लैटों की संख्या, रियल एस्टेट के एजेंटो के नाम, ठेकेदार, वास्तुविद, इंजीनियर आदि का विवरण भी देना होगा। विज्ञापन के भ्रामक साबित होने की स्थिति पर बिल्डर को जेल या जुर्माना या फिर दोनों हो सकता है।
टूटेगा ठगी का जाल
कारपेट एरिया, सुपरबिल्ट एरिया के नाम पर लोगों को सबसे अधिक ठगा जाता रहा है। 1400 वर्ग फुट का मकान बताकर लोगों को फ्लैट दिए गए 1200 फुट के होते हैं। अब नए कानून के मुताबिक कारपेट एरिया को ही बिल्डर को बिक्री का आधार बनाना होगा।
कारपेट एरिया का मतलब उस एरिया से है जिसका ग्राहक इस्तेमाल करता है। इसमें दीवारों का क्षेत्रफल शामिल नहीं होता। जबकि सुपर बिल्ट एरिया में दीवार, छज्जे शामिल नहीं होते। सुपर बिल्ट एरिया में मकान बड़ा दिखता है जबकि बिल्ट एरिया में वही मकान छोटा हो जाता है।
भू संपदा क्षेत्र में यह जालबट्टे का बड़ा आधार है। अब इस जालबट्टे से खरीददार को मुक्ति की उम्मीद की जा सकती है। इस नियामक से मकान की कीमत कम होगी यह नामुमकिन लगता है क्योंकि कीमत बढ़ाने के कई रास्ते हैं।
मकान में लगी सामग्री और क्वालिटी को लेकर भी क्या खरीददार को अधिकार मिलेंगे इसका अंदाजा तो केवल कानून के अमल में आने के बाद ही होगा।
हां, इतना तय है कि खरीददार को वायदे के मुताबिक मकान नहीं मिला तो बिल्डर की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। इसलिए बिल्डर लॉबी इस बिल का विरोध कर रही है। 2009 से ही ये लटका पड़ा था।