राकेश दुबे@प्रतिदिन। सलमान खुर्शीद को देर से नहीं, बहुत देर से समझ में आया है कि पाकिस्तान से रिश्तों में सतर्कता बरतना चाहिए। पता नहीं क्यों उन्हें अब यह अहलाम हो रहा है,कि पिछले अनुभव खराब रहे हैं।
1947 से अब तक का सारा इतिहास पाक की बदनीयती का गवाह है, पता नहीं वह कौन सी ताकत है, जो सलमान खुर्शीद को तवारीख की किताबों के खूनआलूदा वर्क पलटने से रोकती हैं। समझदार लोगों की सलाह उन्हें पसंद नहीं आती।
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री युसूफ राजा परवेज़ की अजमेर यात्रा की रोशनाई अभी सूखी नहीं है,इस यात्रा में राजा परवेज़ का ख़ैर-ए-मकदम करने वालों में सलमान खुर्शीद अगुआ थे।
शहीदों की सिरकटी लाशें इंसाफ मांग रही थीं,गरीब नवाज़ के आस्ता के मुतवल्ली समझा रहे थे और मियाँ खुर्शीद राजा परवेज़ को बिरयानी खिला रहे थे। सरबजीत की हत्या क्या थी? जिद और धोखे के अलावा कुछ नहीं। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. लाल बहादुर शास्त्री की ताशकंद यात्रा का किस्सा अब भी वतन परस्तों के खून को खौला देता है।
महज विदेश मंत्री का रुतबा पा लेने से आप मुल्क के मालिक नहीं हो जाते। मुल्क की तासीर समझना पहला फर्ज़ और सबक होता है । जुमला है " देर आयद दुरुस्त आयद" । मियाँ खुर्शीद देर आयद सही दुरुस्त आयद हो।
आमीन।
