यदि ऐसा हो गांववाले तो खुशियां ढूंढ ही लेंगी इनका पता

योगेश सोनी@धरती के रंग। यह छोटी सी कहानी है मध्यप्रदेश के सागर जिले में आने वाले गांव रहली की। 'सामाजिक सहयोग' का यहां एक ऐसा प्रमाण उपलब्ध हो गया है कि हर हृदय को छू जाएगा और आप भी कह उठेंगे कि 'यदि ऐसा हो गांववाले तो खुशियां ढूंढ ही लेंगी इनका पता।'

बात बहुत छोटी सी है, लेकिन है बहुत चमकदार बिल्कुल कोयले की खान में हीरे की तरह। हुआ यूं कि मई महीने के पहले सप्ताह में रहली के टेलर मास्टर बारेलाल बाबूलाल नामदेव की दुकान में अचानक आग लग गई। सबकुछ राख हो गया। लगभग 5 लाख रुपए का नुक्सान हुआ।

आग लगने के बाद कबाड़ तक नहीं बचा था इस दुकान में

दुकानों में आग कोई नई बात नहीं है और आजकल इससे जमाने का कोई सरोकार भी नहीं है, लेकिन उस एक परिवार के लिए तो दाने दाने को मोहताज हो जाने का विषय था। आखों के सामने अंधकार छा गया था। दुकान में काम करने वाले दो भाई, बेटा और 3 सहयोगी, सब के सब सड़क पर आ गए थे।

इस मामले में रहली की संवेदनाएं जागीं। लोगों ने इस परिवार की मदद का मन बनाया। जब गांव ने मन बनाया तो गढ़ाकोटा के पं. गोपाल भार्गव कहां पीछे रहने वाले थे। भले ही वो मध्यप्रदेश सरकार में केबीनेट मंत्री हों परंतु आम लोगों से उनका जुड़ाव कम नहीं है। उन्होंने झटपट 5 सिलाई मशीन खरीदीं और नामदेव परिवार को सौंप दी। विधायक निधि से नहीं, व्यक्तिगत निधि से।

गांववालों ने भी 30000 रुपए इकट्ठा किए और फिर से दुकान शुरू करने की हिम्मत बंधाई। देखते ही देखते बारेलाल बाबूलाल नामदेव की दुकान फिर से शुरू हो गई। आज इस दुकान को देखकर कोई कतई यह नहीं कह सकता कि कुछ दिनों पहले यहां कचरा भी शेष नहीं बचा था।

महज एक सप्ताह में लौट आईं खुशियां

ये कहानी है उस 'सामाजिक सहयोग' की, जो भारत की शक्ति हुआ करता था। अब से कोई 50 साल पहले इसी भारत के गांव शहरों में दिखाई देता था परंतु अब ना जाने कहां खो गया है। सहयोग तो दूर की बात, लोग किसी दुख में शामिल तक नहीं होते। दुखों को दूर करने के प्रयास ही नहीं होते और शायद इसीलिए सब के सब दुखी रहते हैं। शहर, गांव और ​बस्तियों में मौज, मस्ती तो है लेकिन खुशियां ना जाने कहां लापता हो गईं हैं।

अब तो आप कहेंगे ना कि 'यदि ऐसा हो गांववाले तो खुशियां ढूंढ ही लेंगी इनका पता।'

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