दिग्गी का मुंह तक नहीं देखना चाहते पुराने कांग्रेसी, सिंधिया पहली पसंद

भोपाल। कांग्रेस के पुराने और बुजुर्ग नेताओं के साथ जनता से लिए जा रहे सुझावों ने प्रदेश कांग्रेस के एक खेमे की धड़कन बढ़ा दी है। सर्वे में प्रदेश में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है।

जनता उन्हें सुनना चाहती है, जबकि कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह को लोग सुनना नहीं चाहते। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस की बेहतर संभावनाओं को तलाशने के लिए एक सर्वे करवाया जा रहा है।

इस सर्वे में कांग्रेस पदाधिकारी क्षेत्र की जनता के साथ ही पार्टी के पुराने और बुजुर्ग नेताओं से भी संपर्क कर सुझाव मांग रहे हैं। इसमें यह बात सामने आ रही है कि इस बार लोग सिंधिया को सुनना चाहते हैं, इसलिए चुनाव के दौरान उनकी सभा ज्यादा से ज्यादा क्षेत्रों में करवाई जाए।

सिंधिया की सभा करवाने की डिमांड केंद्रीय मंत्री कमलनाथ के प्रभाव क्षेत्र तक से निकल कर आई है। वहीं पुराने और बुजुर्ग नेता मानते हैं कि दिग्विजय सिंह का दिमाग और प्रबंधन ही कांग्रेस को फिर से सत्ता में ला सकता है।

हालांकि सुझाव में यह बात भी सामने आई है कि दिग्विजय सिंह को जनता के बीच न आकर पर्दे के पीछे रहकर काम करना चाहिए। सर्वे और सुझाव लेने का काम अब भी जारी है।

फिलहाल यह विंध्य और महाकौशल में हो चुका है। सभाओं के लिए सिंधिया का नाम हर जगह से सामने आने से दिग्विजय सिंह खेमे की धड़कनें बढ़ गई है। दरअसल यह सर्वे और सुझाव लेने का काम प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया के कहने पर उनके विश्वसनीय लोग कर रहे हैं। यह सर्वे जून माह तक पूरा होने की संभावना है।

एकता भी जरूरी

सुझावों में यह बात भी निकल कर आई है कि सत्ता में वापसी के लिए सभी नेताओं को एकजुट होकर काम करना होगा। वहीं बुजुर्ग नेताओं को सम्मान देना होगा, ताकि वे पार्टी को जिताने की क्षेत्रवार रणनीति तय करने के अहम हिस्सा बन सकें।

एनएसयूआई और युवा कांग्रेस निष्क्रिय

सुझाव में यह बात भी सामने आ रही कि अधिकतर हिस्सों में एनएसयूआई और युवा कांग्रेस निष्क्रिय है। इसमें राहुल गांधी के नए फार्मूले को दोष्ाी माना जा रहा है। जिसमें उन्होंने चुनाव से अध्यक्ष और अन्य पदों का चयन करवाया। छात्र और युवा कार्यकर्ता क्षेत्र के वरिष्ठ नेताओं को तवोज्जो नहीं दे रहे हैं।

जिला और ब्लॉक कांग्रेस के कार्यक्रमों में भी इन दोनों संगठनों की भागीदारी न के बराबर होती है। वहीं दोनों संगठनों के प्रदर्शन में भी भीड़ नहीं जुट पाती है। इन दोनों संगठनों को चुनाव से पहले सक्रिय करने का सुझाव भी मिला है।
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