नवीन चंद्र कुम्भकार। शासन का सबसे महत्वपूर्ण कर्मचारी पटवारी होता है जो जनता के सबसे बड़े वर्ग किसान से सीधे सम्बन्ध रखता है और शासन की समस्त योजनाओ के क्रियान्वयन में महती भूमिका रखता है।
पटवारी पद का सृजन तो मुग़लकालीन है तथा अंग्रेजी शासन काल में भूमि बंदोबस्त के अतिरिक्त उसका काम किसानो के भूमि अभिलेखों को संधारित करने तक ही सिमित था। कालांतर में लोक कल्याणकारी शासन की अवधारणा को पूरा करने में पटवारी की जिम्मेदारियों को बड़ा दिया गया। पटवारी के कर्तव्यों का उल्लेख “ भू – अभिलेख नियमावली भाग-१” जो की 1959 में बनी थी के अध्याय 12 में किया गया है . जिसमे उसे विविध कर्तव्य जो समय समय पर सोंपे जाये का निर्वहन करना होता है। इन विविध कर्तव्यों की सूचि अत्यधिक लंबी है जो की अलिखित होकर परंपरा अनुसार बढ़ती ही जा रही है।
आज मध्यप्रदेश के सन्दर्भ में हम बात करें तो निम्नलिखित योजनाओ का क्रियान्वयन पटवारी के बगेर किया नहीं जा सकता है .
१- मुख्यमंत्री आवास योजना के भू अधिकार पट्टे को तैयार करना.
२- दखल रहित भूमि में अधिकार के आवासीय पट्टे .
३- दूसरे की भूमि में अ०जा ० / ज०जा० के निर्धनों को पट्टे दिए जाना
४- ग्रामीण और शहरी क्षेत्रो में गरीबी रेखा के निचे जीवन यापन करने वाले परिवारों की पहचान .
५- भूमि सम्बन्धी नामांतरण एवं बंटवारे के प्रतिवेदन .
६- सीमांकन प्रकरणों में राजस्व निरीक्षक को रिकार्ड उपलब्ध कराना .
७- भूमि कब्जे के सत्यापन की रिपोर्ट .
८- राष्ट्रीय फसल बीमा योजना के लिए आनावारी तैयार कर वास्तविक फसल उत्पादन की जानकारी
९- कृषको की फसलों का निरंतर अद्यतन करना जिसका उपयोग किसान द्वारा कृषि , वानिकी , बैंक के-सी-सी लेना आदि शमिल है.
१०- प्राकृतिक आपदा में मुआवजा तैयार करना और किसानो को लाभ पहुँचाना.
११- राजस्व अधिकारियो के साथ कानून व्यवस्था और सत्कार अधिकारी के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करना.
१२- शासन और जनता के बीच कड़ी का काम करना.
१३- २४*७ काम की अपेक्षा.
इसके अतिरिक्त अनेक ऐसे कार्य हैं जो पटवारी अपनी हिकमत अमली से करता है जिसे कोई अन्य नहीं कर सकता .
इन समस्त कार्यों के प्रतिफल के रूप में पटवारी को शासन से क्या मिलता है .
१- तनख्वाह जो की वर्तमान वेतन आयोग के अनुसार ५२००-२०२००-२१०० है.
२- इस पर महंगाई वेतन जो भी शासन द्वारा समय समय पर दिया जाता है.
३- पुरे माह हलके जिसमे एक पंचायत होती है एक से चार गांव का भ्रमण का फिक्स ट्रेवल भत्ता २५० रूपये दिया जाता है . जबकि पटवारी को हल्के से एक माह में लगभग २० दिन तहसील कार्यालय जाना पड़ता है
४- कार्यालय किराया ३ प्रतिशत वेतनमान का . जो की लगभग ३०० से ६०० के बीच होता है . कोई कार्यालय इतने कम राशि में कैसे खुल सकता है .
५- कागज पेन आदि का भत्ता २५० प्रतिमाह . जबकि एक माह में कम से कम १५ प्रतिवेदन और वर्ष में लगभग १०००० का कागज और उसको तैयार करने का खर्चा आता है .
६- अतिरिक्त हल्के के प्रभार के ९.०० नो रूपये प्रतिमाह जो को सन १९५९ से निर्धारित है . हमने अपनी नोकरी में कभी इसका बिल बनते नहीं देखा.
पटवारियों को शासन क्या नहीं देता है?
१- पटवारी प्रशिक्षण अवधि ( ९ माह )में कोई मानदेय नहीं दिया जाता है
२- प्रशिक्षण उपरांत ३-४ महीने बाद तक नियुक्ति नहीं दी जाती है.
३- कभी भी मुख्यालय से बहार शासकीय काम से जाने पर यात्रा भत्ता.
४- चिकित्सा भत्ता . (केवल गंभीर बीमारी में ही शायद किसी को मिला हो.)
५- सत्कार कार्यों में ली गयी सेवा का प्रतिफल .
६- समय पर पटवारियों की गोपनीय चरित्रावली नहीं लिखी जाती है .
७- पटवारी को अपने ही भविष्य निधि से आहरण करने में लंबी अडचने.
८- समय पर क्रमोन्नति और स्थायीकरण .(तहसील के बाबु पर निर्भर रहना पड़ता है )
९- एरियर और पिछले बकाया भुगतान प्राप्त करने में समस्या.
१०- प्रतिमाह वेतनसमय पर नहीं दिया जाता क्योंकि पटवारियों का वेतन अलग हेड से निकलता है जबकि . तहसीलदार और बाबू वर्ग का वेतन अलग हेड से. पटवारी के वेतन बिल ऑफिस कानूनगो बनाता है . और नाज़िर उसे ट्रेज़री में लगता है .
११- सार्वजानिक मंचों से पटवारी को एक महाभ्रस्ट के रूप में बताना .
१२- अतिक्रमण और बैंक वसूली जो की तहसीलदार का काम है तथा भू-राजस्व वसूली जो पटेल का काम है .भू-राजस्व और अतिक्रमण की वसूली और पटवारी के द्वारा करवाई जाती है . इसके लिए पटवारी को कोई भुगतान तो नहीं मिलता है अपितु तनख्वाह से वसूली अवश्य जमा करवा ली जाती है .
१३- पटवारी इस दुविधा में रहता है की वह भू-अभिलेख का कर्मचारी है या राजस्व का . क्योंकि इसकी नियुक्ति की प्रक्रिया अधीक्षक भू- अभिलेख द्वारा की जाती है और पदस्थापना तहसीलदार के अधीनस्थ की जाती है . उस पर नियंत्रण भू अभिलेख के राजस्व निरीक्षक राजस्व तहसीलदार ,अनुविभागीय अधिकारी और अधीक्षक भू-अभिलेख का रहता है.
१४- पटवारी पद से नायब तहसीलदार पद पर पदोन्नति के लिए पटवारियों का कोटा राजस्व निरीक्षक और सहायक ग्रेड २-३ द्वारा हड़प लिया जाता है.
इसके अतिरिक्त वर्तमान मुख्य समस्या इस प्रकार है .
१- शासन के पास किसानो को निशुल्क खसरा बी-१ बाँटने के लिए आवश्यक धन उपलब्ध है . किन्तु वर्ष २०११-१२ में हस्त लिखित रिकार्ड जमा करवाने के बाद से आज तक पटवारियों को कम्पुटरिकृत रिकार्ड नहीं उपलब्ध कराया गया . न ही इस बारे में कोई पहल की गयी है.
२- खसरा बी-१ नक्शा रिकार्ड कंप्यूटर से मिलने जरुर लगा है .किन्तु भू –अधिकार एवं ऋण पुस्तिका अभी भी पटवारियों से हस्त लिखित ही बनवायी जा रही है .
३- पटवारियों को प्रायः तहसील में उपलब्ध २-३ कंप्यूटर के भरोसे सारा रिकार्ड अद्यतन करना पड़ रहा है .
४- लोक सेवा गारंटी अधिनियम के अंतर्गत सीमांकन ,नामांतरण, बंटवारे, गरीबी रेखा की सूचि में नाम जोड़ना , के प्रकरणों में प्रतिवेदन के लिए अवधि कम रखी गई है.
५- कंप्यूटर के अधकचरे रिकार्ड और संसाधनों की कमी के कारण सहायक पत्रक(चिट्टा, पट्टेदारों की जानकारी,माफ़ी भूमि, भू राजस्व मुक्त खातेदार और बड़े कृषक) तैयार करने में समस्या आ रही है .
६- शासन के आदेश जैसे कोई भी कंही भी झोपडी बना ले सरकार उसे पट्टा देगी, ने पटवारियो. के सामने अतिक्रमण रिपोर्ट देने या न देने जैसे असमंजस की स्थिति उत्पन्न कर दी है .
७- लोकसेवा गारंटी अधिनियम के अंतर्गत भू अधिकार पुस्तिका निशुल्क प्रदाय का प्रावधान है जबकि अब ये पुस्तिकाएँ 11 रूपये भू अभिलेख में जमा करने पर तहसील में ऑफिस कानूनगो को जारी की जाती है पटवारी अपनी जेब से पैसे जमा कर इन्हें प्राप्त करता है । किसानो को निशुल्क कैसे बंटेगा ? शासन ये विसंगति कैसे दूर करेगी?
८- शासन द्वारा नक्शा बटांकन, फोती नामांतरण आदि के लिए अभियान चलाये जाकर पटवारियों को रिपोर्ट देने को कहा जाता है , जबकि हम सब जानते है की बंदोबस्त में जल्दबाजी में बिगड़े हुए नक्शों में आज भी सुधर नहीं हो सका है और मामला जब व्यव्हार न्यायलय में जाता तो पटवारी के पास कोई जवाब नहीं होता क्योंकि जल्दबाजी में और अभियानों. में विधि की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाती है.
९- पटवारी प्रशिक्षण में भू-मापन की परीक्षा उत्तीर्ण करता है लेकिन सीमांकन करने का अधिकार केवल राजस्व निरीक्षक को ही है . पटवारी द्वारा किये गए सीमांकन उच्च न्यायालय में ख़ारिज हो जाते हैं.
१०- पटवारी आज लोकायुक्त का आसान शिकार बन चुका है जब चाहो उसे ट्रैप कराया जा सकता है .उन मामलो के लिए भी जो उसके अधिकार क्षेत्र के नहीं होते हैं.
पटवारियों के हित में शासन निम्न निर्णय ले सकती है.
१- स्वच्छ प्रशासन और वास्तविक न्याय के लिए शासन नामांतरण पंजी को समाप्त कर दे और समस्त निर्णय केवल राजस्व न्यायालयों से किये जाये.पटवारी को केवल प्रतिवेदन प्रस्तुत करने का अधिकार दिया जाये और आदेशो को संग्रहित करने को कहा जाये तथा राजस्व निर्णय कंप्यूटर ओपेरटर को अमल हेतु सीधे दिए जाये .उन्ही आदेशो से कंप्यूटर में अमल किया जाये . इस प्रकार शासन तथाकथित रिकार्ड में हेराफेरी को रोक भी सकती है और पटवारी की छवि भी सुधर जायेगी और जनता को न्यायलय से न्याय मिल सकेगा . पटवारियों के विरूद्ध आने वाली शिकायतों में तीन चोथाई कमी आ जायेगी .
२- पटवारी वेतनमान पुनरीक्षित किया जावे. क्योंकि पूर्व में पांचवे वेतनमान में नायब तहसीलदार /सहायक अधीक्षक भू-अभिलेख का वेतनमान ४५००-७००० था राजस्व निरीक्षक का ४०००-६००० ओ पटवारी का ३५००-५२०० था . जवकि छटे वेतनमान में नायब तहसीलदार /सहायक अधीक्षक भू-अभिलेख का वेतनमान ५५००-९००० के अनुरूप ९३००-३४८००-३६०० कर दिया गया है जबकि राजस्व निरीक्षक और पटवारी को पूर्व के वेतनमान पर ही रख कर इस वर्ग के साथ भेदभाव किया गया है.अतः वेतनमान पुनरीक्षण की मान जायज है .
३- विकल्प के रूप में पटवारी जहाँ की पी० जी० डी० सी० ए० जैसी तकनिकी योग्यता रखता है तथा वह टोटल स्टेशन मशीन से और सर्वे फसल कटाई और पूर्वानुमान जैसे तकनिकी कार्य करता है .पटवारी पद को तकनिकी घोषित कर वेतनमान संशोधित किया जा सकता है.
४- विकल्प के रूप में पटवारी और राजस्व अधिकारी के बीच की कड़ी राजस्व निरीक्षकों को रिक्त पड़े सहायक अधीक्षक भू-अभिलेख के पद पर पदोन्नत कर दिया जाये और राजस्व निरीक्षक के कार्य के साथ भू अभिलेख अधिकारी और नायब तहसीलदार के भू अभिलेख सम्बन्धी अधिकार प्रदान कर दिए जाये, और स्वतः ही पटवारीयो को राजस्व निरीक्षक माना जाकर वेतनमान बड़ा दिया जाये. इस प्रकार पटवारियों का पदनाम भी बदल जायेगा . और वर्त्तमान राजस्व निरीक्षकों को राजस्व अधिकारी के वर्ग में सम्मिलित किये जाने से कार्य सुलभता बढेगी और राजस्व भू अभिलेख के कार्यों में गति और स्वछता भी बढेगी. इस प्रकार शासन को राजस्व निरीक्षकों के पदों को समाप्त माना जाकर केवल राजस्व अधिकारी के पदों में ही वृद्धि करनी पड़ेगी और वित्त भार भी नहीं बढेगा .
५- पटवारियों को अतिरिक्त हल्के के लिए सन १९५९ में जबकि पटवारी को १८ रूपये वेतन मिलता था तब अतिरिक्त हल्के का मानदेय ९ रूपये अर्थात मूल वेतन का ५० प्रतिशत था इस लिहाज से जबकि आज पटवारी को काम भी ज्यादा करना पड़ता है . अतिरिक्त हल्के का मानदेय भी ५२००- का ५० प्रतिशत अर्थात कम से कम २६०० रूपये प्रतिमाह होना चाहिए. जो की युक्तिसंगत है .
६- पटवारी पद हेतु चयनित होने वाले प्रशिक्षनार्थियो को कम से कम मूल वेतन प्रशिक्षण अवधि में दिया जाना चाहिए और प्रशिक्षण अवधि को सेवा काल में गिना जाना चाहिए. क्योंकि केवल पटवारी प्रशिक्षण में ही मानदेय नहीं मिलता है जबकि अन्य समस्त सेवा में जाने पर प्रशिक्षण अवधि में वेतन मिलना प्रारंभ हो जाता है, पटवारियों के साथ ये भेदभाव समाप्त किया जाना चाहिए तथा प्रशिक्षण उपरांत बिना परिणाम के प्रतीक्षा किये पटवारियों को हल्के/ सहायक पटवारी का कार्य सोंप देना चाहिए .क्योंकि आज के समय में जबकि बेरोजगारी चरम पर है पटवारी पद में चयनित होने की खुशी को बरक़रार रखने के लिए और अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए रोजगार होना जरुरी है और जब पटवारी प्रशिक्षण अवधि में ही वेतन या मंदी लेने लगेगा तो उसका लगाव इस देवा के लिए अलग ही होगा.और पटवारी शुरू से ईमानदारी से नोकरी का महत्व जान लेगा .
७- २-प्रदेश , संभाग और जिला स्तर पर संघ के कार्यालय / विश्राम गृह के निर्माण के लिए जगह चयनित करवाकर उसमे भवन बनवाए जाये .जिससे की पटवारी भी अपनी चर्चाओ के लिए स्थान पा सके.
८- वर्षों से लंबित नायब तहसीलदार / सहायक अधीक्षक भू अभिलेख की परीक्षा को नियमित रूप से आयोजित करवाई जाये . और उसमें पटवारियों का कोटा रिक्त स्थानों का ५० प्रतिशत रखा जाये. नियमित परीक्षा आयोजित होने से पटवारी साफगोई से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए अपने भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए ईमानदारी से कार्य करेगा
९- लंबित डी० पी० सी० को तत्काल पूरा करवाना जिससे की योग्य पटवारी उच्च पद पर पदोन्नति ले सके .पटवारी अभिलेख को त्रुटि रहित बनाने के लिए कार्य प्रणाली परिवर्तित करवाने का प्रयास किये जाये . कम्प्यूटरीकृत अभिलेख को वैधानिकता प्रदान करने के लिए संहिता में संशोधन किये जाये. समस्त भू अभिलेख विभाग को केंद्रीकृत प्रणाली से जोड़ा जाये जैसे की बैंक . सारा भू अभिलेख का रिकार्ड सीधे आयुक्त कार्यालय के कंप्यूटर में ही अद्यतित हो पटवारी / कंप्यूटर ओपेरटर को केवल टर्मिनल दिए जावे जो वाई फाई / मोबाइल / जी पी० एस ० से जुड़े हो तथ जिनमे सभी कार्य जैसे गिरदावरी नक्शा संशोधन सीमांकन एक ही समय में सम्पादित किये जा सकें.
१०- भू- अधिकार एवं ऋण पुस्तिका को पास बुक प्रिंटर से ही छपा जाये . जिससे की कंप्यूटर में दर्ज रिकार्ड और भू अधिकार पुस्तिका में एकरूपता रहेगी और फर्जीवाड़ा भी समाप्त हो जायेगा तथा रिकार्ड भी बिलकुल सही अद्यतित होता रहेगा.
११- पटवारियों को ७ इंच डिस्प्ले वाले टेबलेट फोन देना चाहीये जिसे लेकर वे हलके में चले जाए केवल पीडीऍफ़ से खसरा बी १ का उपयोग कर सके साथ ही एक गिरदावरी का छोटा सॉफ्टवेर बनाना चाहिए जिसे टेबलेट में लोड किया जा सके और गिरदावरी की जा सके और उसे स्क्रिप्ट के द्वारा भू - अभिलेख सॉफ्टवेर में मर्ज किया जा सके . साथ ही नक्शा भी पीडीऍफ़ या गिरदावरी सॉफ्टवेर के साथ लिंक करके देना चाहिए ताकि नक्से का दुरूपयोग न किया जा सके तथा पटवारी काम भी कर सके . इस प्रकार केवल एक बार लगभग ६-७ हजार के खर्चे में ही पटवारी आधुनिक हो सकते हैं . तथा पेपर लेस ई बस्ता भी पटवारियों को मिल सकेगा.
ये कुछ छोटी- छोटी समस्याएं और उनके समाधान है और शासन की सुराज कल्पना को पाने में निश्चित ही ये समाधान कारगर होंगे . ऐसा मेरा मानना है .
नवीन चंद्र कुम्भकार
पटवारी
तहसील अध्यक्ष मो० बडोदिया
म०प्र० पटवारी संघ