भोपाल। संविदा शिक्षक वर्ग 2 एवं 3 की भर्ती के दौरान अचानक तय की गई 50 प्रतिशत से कम अंकों के साथ बीएड/डीएड वालों का सत्यापन ना करने की प्रक्रिया के विरोध में पीड़ितों ने आज मध्यप्रदेश के राज्यपाल से मुलाकात कर न्याय की गुहार लगाई।
सनद रहे कि सभी प्रक्रियाएं पूर्ण कर चुके संविदा शिक्षक वर्ग 2 एवं 3 के उम्मीदवारों को सत्यापन के समय अचानक एक नए नियम की जानकारी दी गई। उन्हें बताया गया कि जिन उम्मीदवारों को ग्रेजुएशन में 50 प्रतिशत से कम प्राप्तांक प्राप्त हुए हैं उन्हें नौकरी पर नहीं लिया जाएगा।
पूरी तरह से अनर्गल इस नियम के समर्थन में खुद सत्यापन अधिकारी भी नहीं थेए परंतु पालन किया गया क्योंकि साफ्टवेयर ही उसे स्वीकार नहीं कर रहा था। क्यों नहीं कर रहा था इसका जवाब किसी के पास नहीं था।
उम्मीदवारों के पास अपने पक्ष समर्थन में बहुत से तर्क हैंए उनका कहना है कि जब 45 प्रतिशत अंको के साथ बीएड/डीएड में प्रवेश मिल गया और बीएड/डीएड उत्तीर्ण कर लिया गया तो पिछली परीक्षा के परिणाम प्रभावी क्यों किए जा रहे हैं।
न्यूनतम 45 प्रतिशत अंकों के साथ स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र में 1 वर्षीय स्नातक (बी.एड.) में उत्तीर्ण या एक वर्षीय बी.एड. कोर्स अध्ययनरत जो संबंध में समय-समय पर जारी राष्ट्रीय शिक्षा परिषद (मान्यता, मानक और क्रियावधि) विनियम के अनुसार प्राप्त किया गया हो। भारत के राज्यपत्र से ही लिया जा रहा है। (संलग्न दस्तावेज)
इसके अलावा यदि ऐसी कोई शर्त निर्धारित करनी थी तो प्रक्रिया प्रारंभ होने के साथ ही निर्धारित क्यों की गई प्रक्रिया के अंतिम पड़ाव सत्यापन के समय ऐसा क्यों किया गया। उनके सवालों का जवाब किसी के पास नहीं है। अदने से लेकर उचले तक तमाम कर्मचारी अधिकारियों का एक ही जवाब था शासन का आदेश है।
अंतत: कुछ उम्मीदवारों ने न्यायालय की शरण ली तो कुछ ने न्याय की प्रत्याशा में आज मध्यप्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव से मुलाकात की। राज्यपाल ने उन्हें आश्वस्त किया है कि वो इस बारे में संबंधित विभाग से सवाल करेंगे।
सनद रहे कि सभी प्रक्रियाएं पूर्ण कर चुके संविदा शिक्षक वर्ग 2 एवं 3 के उम्मीदवारों को सत्यापन के समय अचानक एक नए नियम की जानकारी दी गई। उन्हें बताया गया कि जिन उम्मीदवारों को ग्रेजुएशन में 50 प्रतिशत से कम प्राप्तांक प्राप्त हुए हैं उन्हें नौकरी पर नहीं लिया जाएगा।
पूरी तरह से अनर्गल इस नियम के समर्थन में खुद सत्यापन अधिकारी भी नहीं थेए परंतु पालन किया गया क्योंकि साफ्टवेयर ही उसे स्वीकार नहीं कर रहा था। क्यों नहीं कर रहा था इसका जवाब किसी के पास नहीं था।
उम्मीदवारों के पास अपने पक्ष समर्थन में बहुत से तर्क हैंए उनका कहना है कि जब 45 प्रतिशत अंको के साथ बीएड/डीएड में प्रवेश मिल गया और बीएड/डीएड उत्तीर्ण कर लिया गया तो पिछली परीक्षा के परिणाम प्रभावी क्यों किए जा रहे हैं।
न्यूनतम 45 प्रतिशत अंकों के साथ स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र में 1 वर्षीय स्नातक (बी.एड.) में उत्तीर्ण या एक वर्षीय बी.एड. कोर्स अध्ययनरत जो संबंध में समय-समय पर जारी राष्ट्रीय शिक्षा परिषद (मान्यता, मानक और क्रियावधि) विनियम के अनुसार प्राप्त किया गया हो। भारत के राज्यपत्र से ही लिया जा रहा है। (संलग्न दस्तावेज)
इसके अलावा यदि ऐसी कोई शर्त निर्धारित करनी थी तो प्रक्रिया प्रारंभ होने के साथ ही निर्धारित क्यों की गई प्रक्रिया के अंतिम पड़ाव सत्यापन के समय ऐसा क्यों किया गया। उनके सवालों का जवाब किसी के पास नहीं है। अदने से लेकर उचले तक तमाम कर्मचारी अधिकारियों का एक ही जवाब था शासन का आदेश है।
अंतत: कुछ उम्मीदवारों ने न्यायालय की शरण ली तो कुछ ने न्याय की प्रत्याशा में आज मध्यप्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव से मुलाकात की। राज्यपाल ने उन्हें आश्वस्त किया है कि वो इस बारे में संबंधित विभाग से सवाल करेंगे।