उदय मंडलोई/खंडवा। ख्यात पार्श्वगायक और हरफनमौला कलाकार स्व. किशोरकुमार के परिवार के सदस्यों ने खंडवा स्थित अपना पैतृक मकान बेचने की पहली बार सहमति दी है।
सरकार मकान को म्यूजियम बनाने की हामी भरती है तो किशोरदा की पत्नी लीना चंदारवरकर व बेटे अमित कुमार-सुमित कुमार बिना किसी आर्थिक लाभ के एनओसी देंगे। किसी निजी व्यक्ति द्वारा मकान खरीदे जाने पर बेटे और पत्नी हिस्सा लेंगे।
यह तथ्य किशोरदा के मुंबई में रहने वाले परिवार के बीच से उजागर हुआ है। उन्होंने खंडवा में रहने वाले अपने पारिवारिक मित्रों से इस संबंध में सलाह-मशविरा किया है।
किशोरदा का पैतृक मकान पारिवारिक हिस्से-बंटवारे में उनके भाई अनूपकुमार के हिस्से में गया था। अभी इस मकान पर मालिकी हक उनके बेटे अर्जुन कुमार और मां का है। अमित कुमार के पारिवारिक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार वर्तमान में अर्जुन की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है।
वह एक प्राइवेट कंपनी में जॉब कर रहा है। ऐसे हालात में उसने मकान बेचने की मंशा अमित, सुमित और लीना के सामने जाहिर की। इन तीनों ने उसे म्यूजियम बनाए जाने पर कोई हिस्सा नहीं लेने की स्वीकृति दी है।
पिछले 15 साल में सरकार के मंत्री और मुख्यमंत्री किशोरदा के मकान को म्यूजियम बनाए जाने की कई मर्तबा मंशा से अवगत करा चुके हैं, लेकिन परिवार द्वारा इसे बेचने या देने में सहमति नहीं दी गई। ऐसे में सरकार के भी हाथ टिक जाते थे। अब पहली बार परिवार की तरफ से बेचे जाने की सहमति मिलने पर खंडवा में रहने वाले पारिवारिक मित्रों द्वारा मुख्यमंत्री से बातचीत की तैयारी की जा रही है।
6800 वर्गफुट में मकान
शहर के बीच किशोरदा का मकान लगभग 10 हजार वर्गफुट में बना हुआ है। मकान के बाहरी हिस्से में 10-12 दुकानें हैं, जो किराए पर दी हुई हैं। कुछ हिस्सा एक दुकानदार को कई साल पहले दिया जा चुका है। वर्तमान में 6800 वर्गफुट मकान के हिस्से पर अर्जुन का आधिपत्य है। जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंचे मकान की देखरेख के लिए चौकीदार तो है, लेकिन कुछ हिस्से पर अतिक्रमण भी हो गया है।
वर्तमान बाजार मूल्य के हिसाब से सरकार किशोरदा के परिवार को इस मकान की कीमत नहीं चुका सकती। सरकारी नियमों के अनुसार इसकी कीमत महज कुछ लाख में ही तय होगी। ऐसे में सरकार के स्तर पर कोई बीच का रास्ता निकालकर मकान लिया जा सकता है। किसी अन्य व्यक्ति द्वारा मकान खरीदे जाने पर किशोरदा की स्मृतियों को सहेजकर रखना मुश्किल हो जाएगा।
पहले बिक चुका 'कर्मवीर'
एक भारतीय आत्मा के नाम से ख्यात पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की प्रेस वाला 'कर्मवीर' भवन सात-आठ साल पहले बिक कर अब व्यावसायिक भवन की शक्ल ले चुका है। दादा चतुर्वेदी जिस मकान में रहते थे, वह भी व्यावसायिक भवन की शक्ल ले रहा है। माखनदादा की स्मृतियों को सहेजने के लिए भी सरकार ने इन भवनों को लेने का प्रयास किया था, लेकिन सफलता नहीं मिली थी।
किशोरदा चाहते थे रहना
अपने जीवनकाल में किशोरदा ने 'दूध जलेबी खाएंगे.. खंडवा में बस जाएंगे..' गाने के साथ ही यहां रहने की इच्छा कई मर्तबा जताई थी। यह अलग बात है कि उनकी आकस्मिक मौत हो गई और मुंबई में निधन के बाद खंडवा में अंतिम संस्कार किया गया।