काश! गांधीजी की बात मानी होती

राकेश दुबे@प्रतिदिन। आज खबरों के संसार में में एक खबर है। जिसे सबसे कम महत्व मिला है। वह है केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा मंडल[सीबीएसई] द्वारा 11 नये रोजगार मूलक पाठयक्रम प्रारम्भ करने बाबत। यह खबर देश के लिए महत्वपूर्ण है और इसके परिणाम आगे आने वाले 15 वर्षों में दिखाई देंगे।

महात्मा गाँधी तो आज़ादी के पहले और उसके बाद भी रोजगारमूलक शिक्षा पर जोर देते रहे। सरकारों की रूचि आयोग बनाने में रही। शिक्षा- नौकरी प्राप्त करने का साधन बन कर रह गई। आज भी देश में 12 वीं कक्षा उतीर्ण होने के बाद बच्चों के सामने स्पष्ट दिशा का अभाव होता है। माता -पिता के दबाव में या सामाजिक भेडचाल के चलते अरुचिकर शिक्षा के परिणाम स्वरूप के कई नौजवान प्रतिभाओं से हम हाथ धो बैठे हैं।

आज़ादी के बाद देश में कुछ ऐसी हवा चली कि परम्परागत व्यवसाय लगभग समाप्त ही गये गाँधी जी कुटीर उद्धयोग के माध्यम से इसकी सुरक्षा चाहते थे। परम्परागत व्यवसाय देश में सिर्फ एक ही बचा है और फलाफूला है, वह है राजनीति और इसी राजनीति के चलते देश की शिक्षा व्यवस्था के साथ अनेक प्रयोग हुए और देसी बच्चे विदेश में नौकर हो गये और अब विदेश में पढना प्रतिष्ठा का सूचक होता जा रहा है।

देश में अधिकांश निजी विश्व विद्यालय और महाविध्यालय राजनीतिक  संप्रभुओं  द्वारा संचालित हैं और उनमे  डिग्री प्रवीणता के आधार  के स्थान पर मोती फीस के आधार पर मिलती है।

संविधान के अनुच्छेद 45 में सरकार का वादा निशुल्क शिक्षा का जरुर है, पर सरकारी स्कूल तो इस देश में मजाक से हो गये हैं। गाँधी जी की बात मानी  होती तो  देश में कुटीर उद्योगों का जाल  होता यहाँ और विदेशी सीखने आते। अभी इन ११ से कुछ नहीं होगा। ऐसे कई पाठ्यक्रम शुरू करना होंगे।

  • लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रख्यात स्तंभकार हैं। 
  • संपर्क  9425022703 
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